
उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने पार्टी आलाकमान को लोकसभा चुनाव 2024 में पार्टी के खराब प्रदर्शन के कारणों की रिपोर्ट सौंप दी है. इस रिपोर्ट में बीजेपी की हार के कई कारण गिनाए गए हैं. इनमें राज्य में पार्टी के वोट शेयर में 8 प्रतिशत की गिरावट, कुर्मी और मौर्यों का कम समर्थन और दलित वोटों में आई कमी को पार्टी के खराब प्रदर्शन के कारणों के रूप में प्रमुखता से सूचीबद्ध किया गया है.
पार्टी में मची अंदरूनी कलह के बीच यह रिपोर्ट आग में घी डालने का काम कर रहा है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चुनावी हार के लिए 'अति आत्मविश्वास' को जिम्मेदार ठहराया. तो वहीं उनके डिप्टी केशव प्रसाद मौर्य ने इसका खंडन करते हुए कहा कि 'संगठन सरकार से बड़ा है.'
रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि राज्य इकाई को अपने मतभेदों को तुरंत सुलझा लेना चाहिए. साथ ही इस मतभेद को 'अगड़ा बनाम पिछड़ा' संघर्ष में बदलने से रोकने के लिए जमीनी स्तर पर काम शुरू करना चाहिए.
उत्तर प्रदेश में भाजपा का उदय
भाजपा ने 2014 में उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीट में से 71 और 2019 में 62 सीटें जीती थीं. इसने 2017 में राज्य का विधानसभा चुनाव जीता और 2022 में भी राज्य में अपनी सत्ता बरकरार रखी. लोकसभा चुनाव की बात करें तो उत्तर प्रदेश में भाजपा का वोट शेयर 2009 में 18 प्रतिशत के मुकाबले 2014 में बढ़कर 42 प्रतिशत और 2019 में 50 प्रतिशत हो गया. 2014 के आम चुनाव में पार्टी को गैर-यादव ओबीसी का 60 प्रतिशत (31 प्रतिशत की बढ़त) तो वहीं गैर-जाटव अनुसूचित जातियों का 45 प्रतिशत (37 प्रतिशत की बढ़त) समर्थन मिला.
पार्टी ने अपने सामाजिक आधार को ब्राह्मण-बनिया समाज से आगे बढ़ाया और गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलितों को अपने पाले में शामिल किया. ऐसा करने से एक ऐसा गठबंधन तैयार हुआ जो राज्य की आबादी का लगभग 60 प्रतिशत है. इतने समर्थन के साथ यूपी में चुनाव हारने की गुंजाइश लगभग खत्म हो जाती है. पार्टी राज्य में इन जातीय समूहों को समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी से अलग करने में सफल रही. भाजपा इन वर्गों को यह समझाने में कामयाब रही कि कैसे यादव और जाटव सपा और बसपा में पार्टी और सत्ता के प्रमुख पदों पर काबिज हैं. जिससे बाद यादव और गैर-यादव ओबीसी और जाटव और गैर-जाटव दलितों के बीच दरार पैदा हो गई.
2024 में लगा झटका
राजनीतिक विश्लेषकों और सर्वेक्षणकर्ताओं ने भविष्यवाणी की थी कि राम मंदिर उद्घाटन और मोदी-योगी जोड़ी की लोकप्रियता के दम पर भाजपा आम चुनावों में राज्य में जीत हासिल करेगी. हालांकि, नतीजों ने भाजपा के साथ-साथ विरोधी INDIA ब्लॉक को भी चौंका दिया. भाजपा राज्य में सिर्फ 33 सीटें (29 सीट का नुकसान) जीतने में कामयाब रही जबकि सपा ने 37 सीटें जीतीं (32 सीट का लाभ). राज्य में भाजपा का खराब प्रदर्शन उन प्रमुख कारणों में से एक रहा जिसके कारण पार्टी लोकसभा में अपने दम पर बहुमत से दूर रह गई. एनडीए और INDIA ब्लॉक दोनों को लगभग 44 प्रतिशत वोट मिले. INDIA ब्लॉक को 19 प्रतिशत वोट मिला जबकि बसपा का 10 प्रतिशत और भाजपा को आठ प्रतिशत वोटों का नुकसान उठाना पड़ा.

इसका मुख्य कारण गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलितों के समर्थन में कमी आना रहा. सीएसडीएस के चुनाव बाद सर्वेक्षण के आंकड़ों से पता चलता है कि भाजपा को कुर्मी-कोइरी से 61 प्रतिशत समर्थन (19 प्रतिशत का नुकसान), गैर-यादव ओबीसी से 59 प्रतिशत समर्थन (13 प्रतिशत का नुकसान) और गैर-जाटव दलितों से 29 प्रतिशत समर्थन (19 प्रतिशत का नुकसान) मिला.

भाजपा ने राज्य में आखिर आठ प्रतिशत वोट कैसे गंवा दिया? पार्टी ने उच्च जातियों का एक प्रतिशत, कुर्मी और कोइरी का दो प्रतिशत, यादवों का एक प्रतिशत, गैर-यादव ओबीसी का तीन प्रतिशत, गैर-जाटव दलितों का दो प्रतिशत और मुसलमानों का एक प्रतिशत वोट खो दिया. हालांकि, जाटवों का उसे लगभग एक प्रतिशत वोट अधिक मिला.

असफलता के कारण
पार्टी ने राज्य में 2017 का चुनाव जीता और योगी आदित्यनाथ (एक ठाकुर) को सीएम के रूप में स्थापित किया. अभियान का नेतृत्व करने वाले पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य (एक गैर-यादव ओबीसी) को डिप्टी सीएम बनाया गया. उस वक्त अस्वीकृति की सुगबुगाहटें थीं. लेकिन दिनेश शर्मा (ब्राह्मण) को भी डिप्टी सीएम बनाया गया था. शीर्ष तीन पदों में से दो पर उच्च जाति के नेताओं का कब्जा था जो राज्य की आबादी का अनुमानित 18-20 प्रतिशत ही हैं.
पहले योगी मंत्रिमंडल में ब्राह्मणों और राजपूतों के पास 30 प्रतिशत पद थे, जबकि अन्य उच्च जातियों के पास अतिरिक्त 17 प्रतिशत पद थे. तो वास्तव में लगभग आधे मंत्री पद ऊंची जाति के नेताओं के पास थे. ओबीसी के पास 37 फीसदी मंत्री पद थे और अनुसूचित जाति के पास सिर्फ 15 फीसदी मंत्री पद थे.
2022 के विधानसभा चुनावों में, 44 प्रतिशत टिकट उच्च जाति के उम्मीदवारों को दिए गए, 35 प्रतिशत ओबीसी को और 22 प्रतिशत एससी को दिए गए. योगी के दूसरे मंत्रिमंडल में 56 सदस्यीय मंत्रिमंडल में 22 मंत्री उच्च जाति, 22 ओबीसी और 10 एससी थे. शीर्ष तीन पदों में से दो पद भी ऊंची जाति के थे.
2024 के आम चुनावों में भाजपा के 45 प्रतिशत उम्मीदवार उच्च जाति के थे, 33 प्रतिशत ओबीसी थे और 21 प्रतिशत एससी से थे. जबकि सपा ने अगड़ी जातियों को 17, ओबीसी को 50 और एससी-एसटी को 23 प्रतिशत उम्मीदवार बनाए थे. वहीं, आबादी के लिहाज से यूपी में अगड़ी जातियां 18-20 फीसदी है. यादव 10-11 फीसदी, गैर-यादव ओबीसी 30-31 फीसदी, जाटव 12 फीसदी, गैर-जाटव दलित 9 फीसदी और मुस्लिम 18-19 फीसदी हैं
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भाजपा की इस रणनीति का फायदा उठाया, मंत्रिमंडल में कम प्रतिनिधित्व और किंगमेकर होने के बावजूद भाजपा में गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलितों को कम टिकट दिए. उन्होंने पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्याक पर ध्यान केंद्रित करते हुए इस बार 'पीडीए सरकार' का नारा दिया. उन्होंने मुकाबले को "अगड़ा बनाम पिछड़ा" बना दिया.
उन्होंने कुर्मियों, कुशवाहों और अनुसूचित जाति को अधिक टिकटों का लालच दिया. कुछ बीजेपी नेताओं के संविधान बदलने के बयानों और गठबंधन में कांग्रेस की मौजूदगी से सपा को 50 फीसदी से ज्यादा गैर-जाटव दलित वोट और एक तिहाई गैर-यादव ओबीसी वोट हासिल करने में मदद मिली.
इंडिया ब्लॉक के कुर्मी-कोइरी और गैर-यादव ओबीसी वोट 2019 की तुलना में छह और 13 प्रतिशत बढ़ गए. लोकसभा में समाजवादी पार्टी की 37 जीतों में से 21 ओबीसी (पांच यादव सहित), सात दलित, चार मुस्लिम और पांच अगड़ी जाति के उम्मीदवारों ने जीती हैं.
2027 के लिए सुधार जरूरी
भाजपा मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुपात में टिकट या मंत्री पद नहीं देती है, इसलिए टिकटों/मंत्रालयों का पूरा कोटा गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलितों, समूहों के बीच वितरित करने के बजाय उच्च जातियों को आवंटित किया जा रहा है. राज्य में पार्टी को आगे बढ़ाया.
इस असंतुलन को ठीक करने की जरूरत है. अन्यथा यह अखिलेश यादव की "अगड़ा बनाम पिछड़ा" राजनीति की कहानी को और मजबूत करेगा. यूपी में 2027 का विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई होगी और उसे 10 सीटों के लिए आगामी उपचुनाव से पहले व्यवस्था दुरुस्त करने की जरूरत है.