दिल्ली यूनिवर्सिटी के LLB छात्रों को मनुस्मृति (मनु के नियम) पढ़ाने के प्रस्ताव पर शुरू हुआ विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. लॉ फैकल्टी के इस प्रस्ताव को भले ही डीयू के कुलपति योगेश सिंह ने खारिज कर दिया हो लेकिन तमाम राजनीतिक दल इस प्रस्ताव को लेकर बीजेपी और पीएम मोदी पर निशाना साध रहे हैं.
कांग्रेस ने उठाए सवाल
कांग्रेस पार्टी के एससी डिपार्मेंट चीफ राजेश लिलोठिया ने कहा कि इस प्रस्ताव को खारिज कर देना काफी नहीं है. बल्कि यूनिवर्सिटी यह बताए कि ये प्रस्ताव किसके कहने पर दिया गया था और उस शख्स के खिलाफ मुकदमा भी कराया जाए. कांग्रेस ने गुरुवार को हमला बोलते हुए कहा कि यह प्रस्ताव RSS द्वारा संविधान पर 'हमला' करने की दशकों पुरानी कोशिश को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'सलामी रणनीति' का हिस्सा है.
कांग्रेस के अनुसूचित जाति विभाग ने राज्य और जिला स्तर पर इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया है. बता दें कि एलएलबी छात्रों को 'मनुस्मृति' पढ़ाने के प्रस्ताव पर शुक्रवार को अकादमिक परिषद की बैठक में चर्चा होनी है.
जयराम रमेश ने बोला हमला
सोशल मीडिया (X) पोस्ट के जरिए कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि यह 'संविधान और डॉ.भीमराव अंबेडकर की विरासत पर हमला करने की RSS की पुरानी कोशिशों को पूरा करने के लिए गैर-जैविक प्रधानमंत्री की सलामी रणनीति का हिस्सा है.'
उन्होंने कहा, '30 नवंबर, 1949 के अपने अंक में आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइज़र ने कहा था कि भारत के नए संविधान के बारे में सबसे बुरी बात यह है कि इसमें कुछ भी भारतीय नहीं है. संविधान के रचनाकारों ने इसमें ब्रिटिश, अमेरिकी आदि के तत्वों को शामिल किया है. इसमें प्राचीन भारतीय संवैधानिक कानूनों, संस्थानों और नामकरण का कोई निशान नहीं है.'
मायावती ने भी साधा निशाना
बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपनी 'एक्स' पोस्ट में इस प्रस्ताव को खारिज करने के फैसले की तारीफ करते हुए कहा कि भारतीय संविधान के मान-सम्मान और मर्यादा व इसके समतामूलक एवं कल्याणकारी उद्देश्यों के खिलाफ जाकर डीयू की लॉ फैकल्टी के प्रस्ताव का तीव्र विरोध स्वाभाविक था.
अपनी दूसरी पोस्ट में मायावती ने कहा कि डॉ अंबेडकर ने खासकर उपेक्षित महिलाओं के आत्म सम्मान और स्वाभिमान के साथ मानवतावाद व धर्मनिरपेक्षता को मूल में रखकर भारतीय संविधान की संरचना की, जो मनुस्मृति से कतई मेल नहीं खाता है.