बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा का सोमवार सुबह निधन हो गया. वह 82 साल के थे और पिछले काफी लंबे समय से बीमार थे. जगन्नाथ मिश्रा की गिनती बिहार के बड़े नेताओं में होती रही है, जिनकी लोकप्रियता देशभर में रही. हालांकि, उनका करियर विवादों से भरा भी रहा क्योंकि जगन्नाथ मिश्रा का नाम बहुचर्चित चारा घोटाले में आया. वह पहले दोषी पाए गए लेकिन बाद में कोर्ट ने उन्हें बरी भी कर दिया.
जिस चारा घोटाले की वजह से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव जेल में सजा काट रहे हैं, उसी में जगन्नाथ मिश्रा का नाम भी शामिल था. अदालत ने उन्हें दोषी भी करार दिया था, लेकिन बाद में एक फैसले में सीबीआई की विशेष अदालत ने सबूतों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया.
कहां से हुई थी मामले की शुरुआत...
कहा जाता है कि चारा घोटाला जगन्नाथ मिश्रा के कार्यकाल के दौरान ही शुरू हुआ था. जिसने बाद में बिहार की राजनीति में घुन की तरह जड़ जमा लिया.
दरअसल, साल 1996 में पशुपालन विभाग के दफ्तरों में छापेमारी हुई जिसमें पता चला कि पशुओं के चारा की आपूर्ति के नाम पर पैसों की हेराफेरी हुई है. इसी के बाद चारा घोटाला का जिन्न बाहर निकला है और बाद में पटना हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने अपना काम शुरू किया.
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CBI की तरफ से जब इस मामले में FIR दर्ज हुई और पहला आरोप पत्र दायर किया गया तो उसमें जगन्नाथ मिश्रा, लालू प्रसाद यादव और चंद्रदेव प्रसाद वर्मा का नाम शामिल था. 2013 को रांची की CBI की विशेष अदालत ने उन्हें चारा घोटाले में सजा सुनाई थी. उनपर दुमका और डोरंडा निधि से धोखाधड़ी से रूपए निकालने का आरोप था.
आरोप लगा कि जगन्नाथ मिश्रा ने विपक्ष के नेता के रूप में 3 अफसरों के सेवा विस्तार के लिए सिफारिश की थी. लेकिन इसके बदले में क्या उन्होंने कुछ पैसा लिया या कोई अन्य फायदा उठाया, इस आरोप को सीबीआई सिद्ध नहीं कर पाई थी. बाद में अदालत ने कहा था कि जगन्नाथ मिश्रा पर इस मामले में सीधे तौर पर कोई आरोप सिद्ध नहीं होता है, इसी कारण उन्हें 2018 में बरी कर दिया गया था.