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इस देश के वैज्ञानिकों ने लैब में तैयार की इंसानी किडनी, मरीजों के लिए जगी उम्मीद

इजरायल में वैज्ञानिकों की एक टीम ने इंसानी किडनी तैयार की है. खास बात है कि यह किडनी 34 सप्ताह तक जिंदा रही है. यह प्रयोग उम्मीद जगाता है कि आगे चलकर किडनी की बीमारी को अधिक प्रभावी ढंग से रोकने, इलाज करने और ट्रांसप्लांट के लिए किडनी तलाशने की निर्भरता कम हो सकती है.

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इस देश में लैब में बनाई गईं इंसानी किडनी (Photo: AI generated)
इस देश में लैब में बनाई गईं इंसानी किडनी (Photo: AI generated)

पिछले कुछ सालों में दुनिया भर में मेडिकल साइंस में तेजी से विकास हुआ है. डायबिटीज से लेकर लिवर, हार्ट और किडनी की बीमारियों के इलाज की तकनीकें विकसित हो रही हैं. इसी कड़ी में अब इजराइल ने एक ऐसी सफलता हासिल की है जो रिजर्नेटिव मेडिसिन के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है.

रिजर्नेटिव (किसी चीज को दोबारा बनाना) मेडिसिन एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें रोग या चोट के इलाज के लिए कोशिकाओं, ऊतकों या अंगों को पुनर्स्थापित, उनकी मरम्मत और बदला जाता है. 

लैब में तैयार हुई किडनी

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, शेबा मेडिकल सेंटर ने तेल अवीव यूनिवर्सिटी की मदद से एक सिंथेटिक 3D ऑर्गेनॉइड (लैब में बनाया गया अंग) सफलतापूर्वक बनाया है जो 34 हफ्तों से ज्यादा समय तक जीवित रहने वाला पहला ऑर्गेनॉइड है.

ये पहली लंबे समय तक जीवित रहने वाली किडनी

शेबा की पीडियाट्रिक नेफ्रोलॉजी यूनिट और स्टेम सेल रिसर्स इंस्टीट्यूट के निदेशक बेंजामिन डेकेल ने बताया कि इससे पहले बनाए गए ऑर्गेनॉइड चार हफ्तों तक भी जीवित नहीं रह पाए थे.

क्यों मील का पत्थर है ये रिसर्च

डेकेल के अनुसार, किडनी ऑर्गेनॉइड रिसर्चस को किडनी रोग को समझने, उनके सिस्टम को समझने, इलाज करने और समय पर बीमारी को रोकने में मदद मिलेगी. इसके साथ ही इस खोज से दवाओं की निर्भरता कम करने में भी मदद मिलती है.

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उन्होंने इस शोध के प्रति उम्मीद जताते हुए कहा, 'मैं आगे की राह को लेकर बहुत आशावादी हूं. इस तकनीक के जरिए क्षतिग्रस्त गुर्दों की मरम्मत के लिए कोशिका प्रत्यारोपण की आवश्यकता नहीं होगी बल्कि अणु ही क्षतिग्रस्त गुर्दों की मरम्मत कर सकते हैं.'

भारत में किडनी रोग 

किडनी रोग विशेष रूप से क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. अनुमान है कि भारतीयों की एक बड़ी संख्या इससे प्रभावित है. जब यह बीमारी अंतिम चरण की ओर बढ़ जाती है तो फिर किडनी के ट्रांसप्लांट की ही जरूरत होती है लेकिन कई लोगों को यह सुविधा नहीं मिल पाती है. डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और हृदय रोग किडनी रोग के प्रमुख जोखिम कारक हैं.

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