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किडनी और दिल के लिए 'साइलेंट किलर' है ये जरूरी मिनरल, नजर नहीं आते लक्षण, समय रहते ऐसे करें कंट्रोल

क्रॉनिक किडनी डिजीज के मरीजों के लिए इस मिनरल से अलग ही खतरा रहता है. जबकि ये शरीर के लिए जरूरी होता है, लेकिन क्रॉनिक किडनी डिजीज वालों के लिए इसका अतिरिक्त होना नुकसानदेह हो सकता है.

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खान-पान का हमेशा ध्यान रखना चाहिए. (Photo: AI-generated)
खान-पान का हमेशा ध्यान रखना चाहिए. (Photo: AI-generated)

किडनी हमारे शरीर का सबसे जरूरी अंग है,क्योंकि ये खून को साफ करता है.इसके साथ ही ये नमक और पानी का संतुलन भी बनाने में हमारी मदद करती है, क्योंकि शरीर में कितनी नमक और पानी होना चाहिए, ये सब किडनी का काम होता है. किडनी का सही से काम करना बहुत जरूरी है, किडनी से जुड़ी बीमारियां काफी खतरनाक साबित हो सकती है. क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD) एक ऐसी स्थिति है जिसमें किडनी धीरे-धीरे अपना काम खो देती है. ये बीमारी अचानक नहीं होती है, बल्कि धीरे-धीरे बढ़ती रहती है. 

क्रॉनिक किडनी डिजीज में किडनी की फिल्टरिंग शक्ति घटना, क्रिएटिनिन बढ़ना, या इलेक्ट्रोलाइट्स का बदलना शामिल है, इसकी एक वजह फॉस्फोरस का धीरे-धीरे शरीर में जमना भी है. क्रॉनिक किडनी डिजीज के मरीजों के लिए ये मिनरल किसी छुपे हुए खतरे की तरह है. फॉस्फोरस क्रॉनिक किडनी डिजीज के मरीज के शरीर में जमा होकर हड्डियों और रक्त वाहिकाओं (ब्लड वेसल्स) को नुकसान पहुंचा सकता है. 

अगर सही डाइट, दवा और इसका जल्दी पता लगाना और उसका प्रबंधन बहुत अहम है. फॉस्फोरस को कंट्रोल करने से हड्डियों की मजबूती, ब्लड वेसल्स का लचीलापन और किडनी के काम करने की ताकत बनाए रखने में मदद मिलती है. इसे अक्सर साइलेंट किलर कहा जाता है, क्योंकि ये परेशानी तब भी बनती रहती है जब तक कोई लक्षण नहीं दिखाई देते हैं.

फॉस्फोरस का क्या काम होता है? 

फॉस्फोरस एक जरूरी खनिज भी है जो शरीर को फायदे भी देता है. ज्यादातर मांस, दूध, नट्स, बीज, दालें, और पैकेज्ड फूड्स से फॉस्फोरस मिलता है. 

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  • हड्डियों को मजबूत रखता है.
  • कोशिकाओं में एनर्जी पैदा करता है.
  • डीएनए की रक्षा करता है.
  • खून में एसिड और बेस का बैलेंस बनाए रखता है.

ज्यादा फॉस्फोरस का असर

नॉर्मल किडनी इसे आसानी से पेशाब के साथ बाहर निकाल देती है, लेकिन क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD) में ये बाहर नहीं निकल पाता और खून में बढ़ने लगता है. जब फॉस्फोरस खून में ज्यादा हो जाता है तो ये कैल्शियम, हार्मोन के साथ खेलता है और लंबे समय में कई नुकसान पहुंचाता है. 

  • ज्यादा फॉस्फोरस हड्डियों से कैल्शियम खींच लेता है, हड्डियां टूटने और दर्द होने लगती हैं. इसे रीनल ऑस्टियोडिस्टॉफी कहते हैं.
  • कैल्शियम और फॉस्फोरस की क्रिस्टल धमनियों में जमकर उन्हें कठोर कर देती हैं, इससे ब्लड प्रेशर बढ़ता है और हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है.
  • सबसे खतरनाक बात यह है कि इसके शुरुआत में कोई लक्षण नहीं दिखते हैं, इसलिए नुकसान धीरे-धीरे होता है.

फॉस्फोरस को कंट्रोल कैसे करें ?

  • डाइट पर ध्यान: हम खाने के जरिए फॉस्फोरस लेते हैं और इसलिए पैक्ड फूड्स से बचें, लेबल पढ़ें, घर का खाना ज्यादा खाएं.रीनल डाइटिशियन की मदद से प्रोटीन की जरूरत पूरी करते हुए फॉस्फोरस कम किया जा सकता है.
  •  फॉस्फेट बाइंडर्स: ये दवाएं फॉस्फोरस को आंत में रोक देती हैं ताकि खून में न जाए. इन्हें खाना खाने के साथ लेना जरूरी है, मगर कोई भी दवा लेने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें. 
  • डायलिसिस: डायलिसिस से फॉस्फोरस काफी हद तक निकल जाता है, लेकिन अकेले ये काफी नहीं है. इसलिए डाइट और बाइंडर्स जरूरी होते हैं.
  •  मॉनिटरिंग: शुरुआती लक्षण कम दिखाई देते हैं, इसलिए खून में फॉस्फोरस, कैल्शियम और पैराथायरॉइड हार्मोन का टेस्ट करना जरूरी है. समय-समय पर बढ़ोतरी या कमी देखकर ही सही कदम उठाए जा सकते हैं.
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