
सोशल मीडिया पर चर्चा है कि डीएवी कॉलेज, लाहौर को बनवाने के लिए दान सिर्फ हिंदुओं ने दिया था, लेकिन आज इस कॉलेज में एक भी हिंदू नहीं बचा है. ऐसा कहने वाले एक पत्थर के स्मारक की फोटो शेयर कर रहे हैं जिसमें कुछ लोगों के नाम लिखे हैं. नामों के ऊपर लिखा है कि ये डीएवी कॉलेज, लाहौर को पांच हजार या उससे अधिक रुपये देने वाले लोगों की लिस्ट है.
‘#dav_कॉलेज_लाहौर’ हैशटैग के साथ बहुत सारे लोग आक्रोश जाहिर करते हुए कह रहे हैं कि अगर डीएवी कॉलेज, लाहौर के हश्र से हिंदुओं ने सीख नहीं ली, तो जल्द ही दुनिया से उनका नामो-निशान मिट जाएगा.
एक फेसबुक यूजर ने वायरल लिस्ट शेयर करते हुए लिखा, “ये लाहौर कॉलेज के दानदाताओं की सूची है, जिसमे कोई मुसलमान नही है, मगर दुर्भाग्य है आज इस कॉलेज में कोई हिन्दू नही है. कब जागोगे हिन्दू.”

इंडिया टुडे के एंटी फेक न्यूज वॉर रूम (AFWA) ने पाया कि डीएवी कॉलेज, लाहौर 1948 में अम्बाला शिफ्ट कर दिया गया था. दावे के ठीक उलट, वर्तमान में इस कॉलेज में पढ़ने वाले ज्यादातर छात्र हिंदू हैं. पाकिस्तान के लाहौर में जिस जगह पर ये कॉलेज बना था, वहां अब गवर्नमेंट इस्लामिया कॉलेज है. हालांकि, ये बात सच है कि गवर्नमेंट इस्लामिया कॉलेज में वर्तमान में कोई हिंदू छात्र नहीं है.
डीएवी कॉलेज, लाहौर में वर्तमान में एक भी हिंदू छात्र न होने का दावा करने वाली एक ट्विटर पोस्ट का आर्काइव्ड वर्जन यहां देखा जा सकता है.
क्या है सच्चाई
डीएवी (दयानंद एंग्लो वैदिक) कॉलेज, लाहौर की स्थापना 1886 में पाकिस्तान के लाहौर शहर में हुई थी. इस कॉलेज की वेबसाइट के अबाउट सेक्शन में साफ लिखा है कि भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद इसे हरियाणा के शहर अम्बाला स्थानांतरित कर दिया गया था.

अब इस कॉलेज का पूरा नाम डीएवी कॉलेज (लाहौर), अम्बाला सिटी है. इस बारे में और जानकारी पाने के लिए हमने यहां के कार्यवाहक प्रिंसिपल सलिल दोसाज से संपर्क किया. उन्होंने ‘आजतक’ को बताया, “पाकिस्तान के लाहौर शहर से इस कॉलेज का इतिहास जुड़ा है. कॉलेज के लाहौर स्थित कैंपस में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री आई के गुजराल जैसी कई मशहूर हस्तियों ने पढ़ाई की थी. सरकारी कागजों में भी इस कॉलेज का नाम ‘डीएवी कॉलेज, लाहौर’ ही लिखा हुआ है. यही वजहें हैं जिनके चलते कॉलेज भारत शिफ्ट कर दिए जाने के बाद भी इसके नाम से लाहौर शब्द नहीं हटाया गया. इस कॉलेज में ज्यादातर छात्र हिंदू धर्म से हैं.”
सलिल ने हमें कॉलेज की एक ताजा तस्वीर भी भेजी जिसमें बोर्ड पर ‘डीएवी कॉलेज, लाहौर’ लिखा हुआ देखा जा सकता है.

वायरल लिस्ट की कहानी
वायरल लिस्ट को कीवर्ड के साथ रिवर्स सर्च करने पर हमें ऐसी कई सोशल मीडिया पोस्ट्स मिलीं, जिनमें लोगों ने लिखा है कि ये स्मारक आज भी लाहौर के ‘गवर्नमेंट इस्लामिया कॉलेज’ में मौजूद है.
गूगल मैप्स पर ‘गवर्नमेंट इस्लामिया कॉलेज’ सर्च करने से भी हमें वायरल फोटो से मिलती-जुलती एक लिस्ट की फोटो मिली. दोनों में एक ही नाम हैं, बस इतना फर्क है कि गूगल मैप वाली लिस्ट में ये नाम अंग्रेजी में लिखे हैं.
इस लिस्ट के बारे में पुख्ता जानकारी पाने के लिए हमने ‘गवर्नमेंट इस्लामिया कॉलेज, सिविल लाइंस, लाहौर’ के ऑफिस में संपर्क किया. कॉलेज के प्रवक्ता ने हमें बताया कि वायरल फोटो वाला स्मारक गवर्नमेंट इस्लामिया कॉलेज के जिन्ना हॉल में आज भी मौजूद है. आगे वो कहते हैं, “इस लिस्ट में उन लोगों के नाम हैं, जिन्होंने इस हॉल के निर्माण के लिए दान दिया था. आज इस हॉल को जिन्ना हॉल कहते हैं पर पहले इसे कम्यूनिटी हॉल कहा जाता था. जिन्ना हॉल में ऐसे दो स्मारक हैं. एक पर हिंदी में नाम लिखे हैं तो दूसरे पर अंग्रेजी में.” उन्होंने हमें इन दोनों स्मारकों की तस्वीरें भी भेजीं जिनकी तुलना वायरल फोटो से करने पर साफ हो जाता है कि वो एक ही हैं.

गवर्नमेंट इस्लामिया कॉलेज, लाहौर के प्रवक्ता ने हमें ये भी बताया कि हालांकि उनके कॉलेज में किसी भी धर्म के छात्र एडमिशन ले सकते हैं, पर ये बात सच है कि वर्तमान में वहां कोई हिंदू छात्र नहीं है.
साफ है कि डीएवी कॉलेज, लाहौर के लिए दान देने वालों की वायरल लिस्ट से जुड़ा आधा सच ही लोगों को बताया जा रहा है. पूरा सच ये है कि ये कॉलेज भारत-पाक विभाजन के बाद भारत शिफ्ट कर दिया गया था और वर्तमान में इसमें ज्यादातर हिंदू छात्र हैं.