फरवरी 2022 में रूस और यूक्रेन में जंग शुरू होते ही दोनों के बीच शांति की कोशिशें भी चलने लगीं. दोनों देशों के अधिकारी बेलारूस और फिर तुर्की में मिले और कूटनीतिक बातचीत करने लगे ताकि लड़ाई रुक जाए, हालांकि चार साल बाद भी स्थिति वही है. अमेरिका दोनों में सुलह की काफी कोशिश करता रहा. हाल में डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने इसपर 28 पाइंट्स की शांति योजना दी है.
शुरुआत से ही चल रही है शांति की कोशिश
लगातार चल रही शांति वार्ता में तुर्की मध्यस्थ था. ये रूस-यूक्रेन जंग शुरू होने के महीनेभर बाद की बात है. तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगन ने बताया कि यूक्रेन नाटो से अपनी सदस्यता की मांग रद्द करने को राजी है, साथ ही वो रशियन भाषा को भी आधिकारिक लैंग्वेज का दर्जा देने को तैयार है. इसके बाद रूस ने डिप्लोमेटिक सूझबूझ दिखाते हुए कीव से अपनी सेना हटाने की बात भी की, लेकिन ये सब वक्ती था. जल्द ही जंग ने तेजी पकड़ी और लड़ाई चलती रही.
अब रूस की मांग भी बढ़ चुकी. उसे क्रीमिया पर आधिकारिक कब्जा तो चाहिए ही, साथ ही यूक्रेन के कई और हिस्से भी चाहिए जो इस युद्ध के दौरान उसके कब्जे में आ चुके. ये रूसी-भाषा बहुल क्षेत्र हैं जिनपर पहले से ही रूस अपना दावा करता रहा. जंग की शुरुआत में मध्यस्थता कर रहे तुर्की और बेलारूस अब बीच-बचाव से दूरी बना चुके. लेकिन अमेरिका पिक्चर में आ गया है. उसने शांति प्रयास के नाम पर 28 सूत्रीय प्लान दे दिया. इसमें अमेरिका खुले तौर पर मॉस्को के पक्ष में दिख रहा है.

ट्रंप का पीस प्लान क्या कहता है
प्रस्ताव में क्रीमिया के अलावा लुहान्स्क और डोनेट्स्क भी रूसी अधिकार में आते हैं, जो पहले यूक्रेन का हिस्सा रहे थे.
पीस प्लान के अनुसार यूक्रेन को अपनी सेना का साइज घटाकर 6 लाख सैनिकों तक लाना होगा. साथ ही वो लंबी-दूरी के हथियार नहीं रख सकता.
यूक्रेन लंबे समय से NATO से जुड़ना चाह रहा है. ट्रंप का कहना है कि उसे अपनी दावेदारी छोड़नी होगी, तभी शांति की बात हो सकती है.
एक तरफ यूक्रेन का नुकसान ही नुकसान है, दूसरी तरफ रूस को अपर-हैंड मिलता दिख रहा है.
ट्रंप ने वादा किया कि अगर रूस सीजफायर के लिए मान जाए तो उसपर से सारे प्रतिबंध हटा लिए जाएंगे, जो पिछले एक दशक से लगे हुए हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि प्लान यूक्रेन से बहुत बड़े समझौते करवाता है. इसमें कहा गया है कि युद्ध की मौजूदा सीमाओं को ही अंतिम मान लिया जाए. इसका मतलब यह है कि रूस जिस जमीन पर कब्जा कर चुका है, उसे छोड़ना नहीं पड़ेगा. इसको लेकर यूरोप का कहना है कि इससे एक तरह से कब्जे को कानूनी मान्यता मिल जाएगी और यूक्रेन अपनी ही जमीन खो देगा.

क्यों रूस को लेकर उदार दिखते रहे ट्रंप
डोनाल्ड ट्रंप कई कारणों से यूक्रेन की बजाए रूस के करीब दिखते हैं, और यह बात उनके बयानों और विदेश नीति के रवैये में बार-बार दिखती है. ट्रंप अक्सर कहते रहे हैं कि अमेरिका को यूक्रेन पर बहुत पैसा खर्च नहीं करना चाहिए. वे अमेरिका फर्स्ट पर जोर देते हैं और दूसरे देश की लड़ाई पर पैसे लगाना गैरजरूरी मानते हैं. यही वजह है कि दूसरे कार्यकाल में वे यूक्रेन से बिदके हुए दिखने लगे. इसके अलावा ट्रंप व्यक्तिगत तौर पर भी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए नरम रवैया रखते दिखे. वे कई मौकों पर उन्हें स्ट्रॉन्ग कह चुके.
एक बड़ी वजह NATO को लेकर अविश्वास है. ट्रंप पहले टर्म में भी नाटो से दूरी बरतते रहे. वे मानते हैं कि किसी भी देश की सुरक्षा अकेले अमेरिका का जिम्मा नहीं, बल्कि तमाम नाटो देशों को इसके लिए पैसे लगाने चाहिए. यही बात यूक्रेन जंग शुरू होने पर भी हुई. अमेरिका इस लड़ाई में भारी पैसे झोंक चुका, जबकि इसमें उसे कुछ सीधा फायदा नहीं दिख रहा.