
दिल्ली की नौकरशाही पर आखिरकार केंद्र का नियंत्रण हो ही गया. सोमवार को राज्यसभा में भी दिल्ली सेवा बिल पास हो गया. अब बस राष्ट्रपति की मुहर बाकी है. राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही ये कानून बन जाएगा.
लोकसभा में ये बिल तीन अगस्त को ही पास हो गया था और सोमवार को राज्यसभा में जब इसे पेश किया गया, तो इसके समर्थन में 131 वोट पड़े. जबकि, विरोध में 102 वोट ही पड़े.
राज्यसभा में इस बिल पर छह घंटे तक चर्चा भी हुई. इस दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि पहले अध्यादेश और अब बिल लाने की जरूरत इसलिए पड़ी, ताकि दो हजार करोड़ रुपये के शराब घोटाले से जुड़े अधिकारियों का ट्रांसफर करने से आम आदमी पार्टी को रोका जा सके.
बैकडोर से दिल्ली की सत्ता हथियाने के आरोपों पर अमित शाह ने जवाब दिया कि देश के कई राज्यों में बीजेपी सत्ता में है और उसे दिल्ली को हथियाने की जरूरत नहीं है.
इतना ही नहीं, अमित शाह ने ये भी दावा किया कि ये बिल किसी भी तरह से सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन नहीं करता.
दरअसल, इसी साल 11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि दिल्ली की नौकरशाही पर वहां की चुनी हुई सरकार का नियंत्रण और अधिकार है, साथ ही यह भी कहा था कि पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर को छोड़कर बाकी सभी मसलों पर उपराज्यपाल को दिल्ली कैबिनेट की सलाह माननी होगी.
इसी फैसले के हफ्तेभर बाद केंद्र सरकार एक अध्यादेश लेकर आई थी. इस अध्यादेश को कानून की शक्ल देने के लिए बिल लाया गया है.
क्या है इस बिल में?
- इस बिल में सबसे जरूरी प्रावधान नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी (NCCSA) के गठन से जुड़ा है. ये अथॉरिटी ही दिल्ली में अफसरों की ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़ी सिफारिशें उपराज्यपाल को करेगी.
- इसके अलावा बिल में अथॉरिटी, कमिशन, बोर्ड या दूसरी बॉडीज के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार भी केंद्र सरकार को देने का प्रावधान है.
- बिल के मुताबिक, अगर किसी अथॉरिटी का गठन संसदीय कानून के जरिए होता है तो उसके अध्यक्ष और सदस्यों को राष्ट्रपति नियुक्त करेंगे. वहीं, अगर दिल्ली विधानसभा से होता है तो उसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति की सिफारिश नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी करेगी, जिसके आधार पर उपराज्यपाल ये नियुक्तियां करेंगे.

अब बात ये अथॉरिटी क्या होगी?
- इस बिल के तहत, राजधानी दिल्ली में नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी का गठन किया जाएगा. इस अथॉरिटी में एक अध्यक्ष और दो सदस्य होंगे.
- अथॉरिटी के अध्यक्ष दिल्ली के मुख्यमंत्री होंगे. उनके अलावा मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव (गृह) होंगे.
- दिल्ली में अगर किसी अफसर की पोस्टिंग या ट्रांसफर करना है, तो उसकी सिफारिश यही अथॉरिटी उपराज्यपाल से करेगी.
- अथॉरिटी की सिफारिश के आधार पर ही उपराज्यपाल नियुक्ति करेंगे या ट्रांसफर करेंगे. अगर कुछ मतभेद होता है तो आखिरी फैसला उपराज्यपाल का ही माना जाएगा.
सीएम अध्यक्ष तो चिंता की बात क्या?
- ऐसे में सवाल उठता है कि जब इस अथॉरिटी के अध्यक्ष मुख्यमंत्री होंगे तो फिर चिंता की बात क्या है? असल में इससे आम आदमी पार्टी को कई सारी चिंताएं हैं.
- दरअसल, मुख्यमंत्री भले ही इसके अध्यक्ष होंगे. लेकिन अथॉरिटी के बाकी सदस्य- मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव (गृह) की नियुक्ति तो केंद्र सरकार ही करती है.
- ऐसे में डर इस बात का रहेगा कि अगर किसी तरह का मतभेद होता है और बहुमत के फैसले की स्थिति बनती है तो दोनों केंद्र की बात ही सुनेंगे.
- इतना ही नहीं, इस अथॉरिटी के फैसले पर आखिरी मुहर उपराज्यपाल की ही लगेगी. ऐसे में जाहिर तौर पर चुनी हुई सरकार के अधिकार कम होंगे.
अध्यादेश से कितना अलग है बिल?
- धारा 3A हटाई गईः अध्यादेश में धारा 3A थी, जो दिल्ली विधानसभा को स्टेट पब्लिक सर्विसेस और स्टेट पब्लिक सर्विस कमिशन से जुड़े कानून बनाने से रोकती थी. बिल से ये धारा हटा ली गई है. इसकी बजाय, बिल संविधान के अनुच्छेद 239AA पर केंद्रित है जो केंद्र सरकार को राजधानी में नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी का गठन करने का अधिकार देता है.
- सालाना रिपोर्ट की जरूरत नहींः अब तक दिल्ली में NCCSA जो भी फैसले लेती थी या काम करती थी, उसकी सालाना रिपोर्ट संसद और दिल्ली विधानसभा, दोनों जगह पेश करनी होती थी. लेकिन अब बिल में इसे हटा दिया गया है. इसका मतलब हुआ कि अब NCCSA सालाना रिपोर्ट पेश करने के लिए बाध्य नहीं है.
- धारा 45D को कमजोर किया गयाः इस बिल में धारा 45D के प्रावधानों को भी कमजोर कर दिया गया है. ये धारा अलग-अलग अथॉरिटी, बोर्ड, कमिशन या दूसरी किसी बॉडीज के अध्यक्ष या सदस्यों की नियुक्ति से जुड़ी है. अब तक होता ये था कि उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री को भेजे जाने वाले प्रस्तावों को पहले मंत्रियों के आदेश या निर्देश की जरूरत होती थी. पर अब इसकी जरूरत नहीं होगी.
- उपराज्यपाल ही होंगे बॉसः इस बिल में एक नया प्रावधान जोड़ा गया है. अब उपराज्यपाल NCCSA की सिफारिश पर किसी भी बोर्ड और कमिशन में नियुक्तियां करेंगे. अगर दिल्ली विधानसभा से किसी अथॉरिटी या बोर्ड का गठन होता है तो मुख्यमंत्री की सिफारिश भी शामिल होगी.

बिल की जरूरत क्यों पड़ी?
- साल 1991 में संविधान में 69वां संशोधन किया गया. इससे दिल्ली को 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र' यानी 'नेशनल कैपिटल टेरेटरी' का दर्जा मिला. इसके लिए गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरेटरी एक्ट 1991 बना.
- 2021 में केंद्र सरकार ने इस कानून में संशोधन किया. केंद्र ने कहा कि 1991 में कुछ खामियां थीं. पुराने कानून में चार संशोधन किए गए. इसमें प्रावधान किया गया कि विधानसभा कोई भी कानून बनाएगी तो उसे सरकार की बजाय 'उपराज्यपाल' माना जाएगा. साथ ही ये भी प्रावधान किया गया कि दिल्ली की कैबिनेट प्रशासनिक मामलों से जुड़े फैसले नहीं ले सकती.
- दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. इस पर 11 मई को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि दिल्ली की नौकरशाही पर चुनी हुई सरकार का ही कंट्रोल है और अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग पर भी अधिकार भी उसी का है.
- सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया है कि पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर को छोड़कर बाकी सभी दूसरे मसलों पर उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह माननी होगी.
- इसी फैसले के खिलाफ 19 मई को केंद्र सरकार एक अध्यादेश लेकर आई. अध्यादेश के जरिए अफसरों की ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़ा आखिरी फैसला लेने का अधिकार उपराज्यपाल को दे दिया गया. इसी अध्यादेश को कानून की शक्ल देने के लिए संसद में ये बिल लाया गया है.