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ट्रंप की टैरिफ और चीन-अमेरिका टकराव के साइड इफेक्ट क्या हो सकते हैं? दुनिया के लिए इतिहास के सबक क्या हैं

डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में हलचल मचाई है, जिससे निवेश प्रभावित हुआ है और वैश्विक व्यापार में रुकावट आई है. अमेरिकी राष्ट्रपति की इस फैसले ने भारत जैसे देशों के लिए चिंताएं बढ़ा दी हैं, जिनके साथ अमेरिका का व्यापारिक रिश्ता अहम है. इस कदम का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव होगा, जानें पूरी कहानी...

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डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ से दुनिया मंदी के मुहाने पहुंची
डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ से दुनिया मंदी के मुहाने पहुंची

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी टैरिफ नीति से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर बड़ा हमला किया है. चिंता की बात ये है कि, ट्रंप का ये फैसला दुनिया के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है. इससे इन्वेस्टमेंट, ग्लोबल ट्रेड प्रभावित हो रहा है और लोग खर्च करने से कतरा रहे हैं. ट्रंप ने 2 अप्रैल को "लिबरेशन डे" बताया था, लेकिन असल में ये बाकी दुनिया के लिए "रिसेशन डे" साबित हो सकता है.

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डोनाल्ड ट्रंप, अगर सचमुच लॉन्ग टर्म के लिए टैरिफ को लागू करने का फैसला करते हैं, तो इससे अर्थव्यवस्था में खपत कम होगी, सप्लाई चेन बाधित होगा और देशों की आर्थिक विकास की स्थिति कमजोर होगी - जिससे दुनिया के बड़ी मंदी की चपेट में जाने की आशंका है. ट्रंप के फैसले से दुनिया में हलचल मची है, और ठीक इसी तरह की हलचल, उन्हीं के नक्शेकदम पर चलने वाले एक अमेरिकी राष्ट्रपति ने 1930 में किया था. पढ़ें पूरी कहानी...

डोनाल्ड ट्रंप का टैरिफ टाइमलाइन

इस साल 2025 की शुरुआत में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन समेत कुछ देशों पर टैरिफ लगाना शुरू किया था. 4 फरवरी को ट्रंप ने कनाडा-मेक्सिको के अलावा सभी चीनी इंपोर्ट्स पर 10% टैरिफ लगाने का फैसला किया. हालांकि, बाद में उन्होंने टैरिफ पर 30 दिनों का ब्रेक लगाया, लेकिन चीन पर 10% टैरिफ बरकरार ही रखा, जिससे ट्रेड के मोर्चे पर दोनों मुल्कों में कहासुनी हुई.

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ट्रंप ने कई देशों 2 अप्रैल को 10% बेसलाइन टैरिफ ऐलान किया, जो 5 अप्रैल से प्रभावी हुआ. इसके बाद उन्होंने उन देशों पर अतिरिक्त "रेसिप्रोकल" टैरिफ लगाने का फैसला किया, जिनके साथ अमेरिका का व्यापार घाटे में है. ये रेसिप्रोकल टैरिफ 9 अप्रैल से लागू हुए, जिससे पूरी दुनिया में हड़कंप मच गया.

ट्रंप ने रेसिप्रोकल टैरिफ के मोर्चे पर दोस्तों को भी नहीं बख्शा, और भारत-इजरायल समेत दर्जनों मुल्कों पर ट्रेड डेफिसिट के हिसाब से टैरिफ लगा दिए. हालांकि, इसके कुछ ही घंटों बाद, उन्होंने इसके  इम्पलीमेंटेशन पर 90 दिनों (9 जुलाई तक) के लिए रोक लगा दी, और 10% बेस टैरिफ को बरकरार रखा.

चीन पर अमेरिका का टैरिफ

चीन के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा लगभग 295 अरब डॉलर है, और उस पर अमेरिका ने ताबड़तोड़ टैरिफ लगाए हैं. फरवरी में शुरुआती 10% टैरिफ के बाद, ट्रंप ने मार्च में इस रेट को 34% तक बढ़ा दिया, और अप्रैल तक, उन्होंने इसे 125% तक कर दिया. जवाबी कार्रवाई में चीन ने भी अमेरिकी इंपोर्ट पर टैरिफ को बढ़ाकर ट्रंप के लेवल तक - 125% कर दिया.

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आलम ये है कि, दोनों मुल्क एक-दूसरे के प्रोडक्ट्स पर 100% से ज्यादा का टैक्स लगा रहे हैं, जिससे लोकल मार्केट प्रभावित हो रहा है. हालांकि, व्हाइट हाउस ने बाद में स्पष्ट किया कि असल में अमेरिका ने चीन पर 145% टैरिफ लगाए हैं. 

इन दोनों मुल्कों की राइवलरी से सिर्फ इनका ही नुकसान नहीं हो रहा है, बल्कि इससे वैश्विक बाजार गिरावट मोड में चले गए हैं. ट्रंप का मानना ​​है कि टैरिफ काम करते हैं, उन्होंने अपने पिछले कार्यकाल के कुछ कथित रिसर्च का हवाला दिया है.

ट्रंप को इस बीच अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करते भी देखा गया, जहां उन्होंने दावा किया कि कुछ देश उनके सामने टैरिफ हटाने और डील साइन करने के लिए गिड़गिड़ा रहे हैं. माना जा रहा है कि ट्रंप ने ऐसा उन मुल्कों के लिए कहा है, जो अमेरिका पर जवाबी कार्रवाई करने की बजाय, उनके साथ ट्रेड और टैरिफ कम करने के लिए डील करने पर जोर दे रहे हैं.

भारत पर लगाए गए टैरिफ

भारत के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा 49 अरब डॉलर है और - भारत भी ट्रंप के टैरिफ से अछूता नहीं रहा. अमेरिका को किए जाने वाले एक्सपोर्ट वाल्यूम के हिसाब से भारत को बड़े नुकसान का खतरा है. टैरिफ पर 90-दिनों के विराम से पहले ट्रंप ने भारत पर 26% टैरिफ लगाया था, लेकिन तमाम मुल्कों को मिली राहत से भारत को भी ट्रेड डील पर बातचीत के लिए थोड़ी मोहलत मिली है. भारत पर फिलहाल रेसिप्रोकल टैरिफ 10% लागू है.

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भारतीय एक्सपोर्टर्स ने अपने बिजनेस पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में गंभीर चिंता जाहिर की है. दिल्ली बेस्ड थिंक-टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशियेटिव की एक एनालिसिस के मुताबिक, अगर ट्रंप की ज्यादती चलती रही तो भारत को एक्सपोर्ट के मोर्चे पर 5.76 अरब डालर या 6.4% की गिरावट देखने को मिल सकती है.

भारत ने 2024 में अमेरिका को 89 अरब डॉलर से ज्यादा का एक्सपोर्ट किया था. अगर डील साइन होने में अड़चनें आती हैं, और ट्रंप अपने टैरिफ पर अड़े रहते हैं, तो यह भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है, जो अमेरिका के साथ व्यापार पर निर्भर है.

टैरिफ पर भारत ने क्या एक्शन लिया?

डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ के जवाब में भारत की प्रतिक्रिया अब तक नपी-तुली रही है. जवाबी टैरिफ लगाने की बजाय, भारत ने आर्थिक नुकसान को कम करने के लिए अमेरिका के साथ बातचीत करने पर जोर दिया है. भारत अमेरिका के साथ जल्द से जल्द ट्रेड डील साइन करने की जद्दोजहद में है.

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अगर दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच ट्रेड राइवलरी चलती रही तो इससे अमेरिका-चीन में तो बड़ी मंदी आ ही सकती है, लेकिन इससे भारत जैसे विकासशील देशों समेत बाकी दुनिया भी प्रभावित होगी - जो अपने एक्सपोर्ट के लिए रॉ मटेरियल के इंपोर्ट पर निर्भर हैं. ऐसे में भारत को कई मोर्चे पर सतर्क रहने की जरूरत होगी. 

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अगर ऐसा होता है, तो इसका भारत पर द्विपक्षीय टैरिफ से कहीं ज्यादा असर हो सकता है. स्थिति यहां इसलिए भी कमजोर पड़ जाती हैं, क्योंकि भारत कच्चे माल के लिए अमेरिका और चीन दोनों पर ही निर्भर हैं. मसलन, भारत इन मुल्कों से कच्चे माल का इंपोर्ट करता है, और उसे तैयार कर यूरोप और अन्य मुल्कों में एक्सपोर्ट करता है - जो कि भारत के व्यापार का मूल आधार भी है.

भारत, अमेरिका को स्टील, एल्युमीनियम और जेनरिक मेडिसिन-फार्मास्यूटिकल्स का भारी मात्रा में एक्सपोर्ट करता है. अगर सिर्फ जेनरिक दवाई-फार्मास्यूटिकल्स एक्सपोर्ट्स की बात करें तो भारत ने 2023-24 में अमेरिका को 9.7 अरब डॉलर का एक्सपोर्ट किया है. ट्रंप ऐलान कर चुके हैं कि आने वाले दिनों में उनका टार्गेट फार्मा सेक्टर होगा - जो भारत को सीधे तौर पर टार्गेट करेगा. भारत इस सेक्टर में ग्लोबली 20% का योगदान देता है, और इसका रेवेन्यू 2023 में करीब 50 अरब डॉलर रहा है. 

भारत को कपड़ा और कुछ खास क्षेत्रों में थोड़ा फायदा जरूर हो सकता है, क्योंकि निर्माता सस्ती मैन्यूफैक्चरिंग के लिए चीन का विकल्प तलाश रहे हैं, लेकिन ग्लोबल इकोनामिक स्लोडाउन से होने वाला बड़ा नुकसान, इन फायदों से कहीं ज्यादा बड़ा हो सकता है.

भारत-चीन की दुविधा

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चीन का कहना है कि अमेरिका के साथ उसका व्यापार कोई एहसान नहीं है - यह आपसी लाभ का मामला है. यही बात भारत पर भी लागू होती है, जो चीन से API (एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट) इंपोर्ट करता है और उसे दवाइयों में बदल कर पूरी दुनिया में एक्सपोर्ट करता है. बहुत से चीनी कच्चे माल भारत आते हैं, उन्हें असेंबल या कहें वैल्यू एड किए जाते हैं और फिर एक्सपोर्ट किया जाता है. अमेरिका के साथ राइवलरी के बीच चीन ने भारत को भी साथ मिलकर इससे निपटने की अपील की है.

डोनाल्ड ट्रंप की कार्रवाई इस म्यूचुअल बेनिफिट्स को नुकसान पहुंचा रही हैं और दुनिया को अब इस बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत होगी, तभी 1930 जैसी संभावित मंदी को रोका जा सकता है. एक ऐसी आर्थिक मंदी जिसके बारे में जेपी मॉर्गन जैसी कई रेटिंग एजेंसियां 60% संभावना जता रही हैं, कह रही हैं - डिप्रेशन आ सकता है. वहीं गोल्डमैन सैक्स और मार्निंगस्टार जैसी एजेंसियों का संभावित रूप से 40-50 फीसदी अनुमान है कि आर्थिक मंदी ऑन द वे है.

टैरिफ युद्ध का वैश्विक आर्थिक प्रभाव

डोनाल्ड ट्रंप द्वारा शुरू किए गए ट्रेड वॉर का परिणाम सिर्फ, अमेरिका चीन और भारत तक ही सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि इसका नतीजा कई देशों की जीडीपी में गिरावट के रूप में नजर आएगा. इसका प्रभाव ज्यादातर उन देशों पर पड़ सकता है, जिनका अमेरिका को एक्सपोर्ट वाल्यूम ज्यादा है.

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इंटरनेशनल ट्रेड सेंटर का कहना है कि ट्रंप के टैरिफ की वजह से ग्लोबल ट्रेड में 3-7% और ग्लोबल जीडीपी में 0.7% की गिरावट आ सकती है, इससे विकासशील देश सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे. जैसे कि अगर टैरिफ पर विराम के बाद ट्रंप इसे जारी रखते हैं तो सबसे बड़े टेक्सटाइल एक्सपोर्टर के रूप में बांग्लादेश को 2029 तक 3.3 अरब डालर के नुकसान की संभावना है.

टैरिफ से शेयर बाजार में हाहाकार

अब तक शेयर बाजार का रिएक्शन भी गंभीर रहा है. ट्रंप के टैरिफ के ऐलान के बाद, अमेरिका के शेयर बाजार के इतिहास में दो दिनों में सबसे बड़ा नुकसान हुआ है. रेसिप्रोकल टैरिफ के ऐलान के बाद शुरुआती दो दिनों में अमेरिकी बाजार से 6.6 ट्रिलियन डालर साफ हो गया. बाजार के तीन दिनों के नुकसान ने वैश्विक इक्विटी में लगभग 10 ट्रिलियन का सफाया कर दिया - जो कि ग्लोबल जीडीपी का 10% और 150 मुल्कों की कुल जीडीपी से भी ज्यादा है.

पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के पेन व्हार्टन बजट मॉडल के मुताबिक, ट्रंप की टैरिफ योजना से अमेरिका को कुछ रेवेन्यू हासिल होने का अनुमान तो है, लेकिन उससे कहीं ज्यादा उसे नुकसान की आशंका है. मसलन, टैरिफ को सख्ती से लागू करने पर अगले 10 सालों में अमेरिका को 5.2 ट्रिलियल डालर का रेवेन्यू हो सकता है, लेकिन जीडीपी में 8% की गिरावट, और रोजगार में 7% की गिरावट देखने को मिल सकती है, जिससे सीधे तौर पर आम लोग प्रभावित होंगे.

ट्रंप, टैरिफ और इतिहास

अब आइए थोड़ा इतिहास पर भी नजर डालते हैं, जिसके आधार पर एक्सपर्ट्स और अर्थशास्त्रियों की चिंता बढ़ रही है. मसलन, ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी 1930 के स्मूट-हॉली टैरिफ एक्ट से काफी मिलती-जुलती हैं, जिसके बारे में कई इतिहासकारों का मानना ​​है कि दुनिया में महामंदी आई. यह टैरिफ एक्ट राष्ट्रपति हर्बर्ट हूवर के प्रशासन के दौरान पारित किया गया था, जो ट्रंप की तरह रिपब्लिकन पार्टी से थे. 

1929 और 1934 के बीच इंटरनेशनल ट्रेड में 65% की गिरावट दर्ज की गई. अमेरिकी अर्थव्यवस्था डिप्रेशन में डूब गई, जीडीपी में लगभग 30% की गिरावट आई और 1933 तक बेरोजगारी 25% तक बढ़ गई थी.

आज कई एक्सपर्ट्स भी चेतावनी दे रहे हैं कि, ट्रंप के टैरिफ ग्रेट डिप्रेशन-एरा स्मूट-हॉली टैरिफ की तरह ही हैं और इसी तरह आर्थिक स्थिति को खराब कर सकते हैं. कुछ विश्लेषण बताते हैं कि ट्रंप कार्यकाल के तहत मौजूदा टैरिफ का लेवल स्मूट-हॉली युग के दौरान लगाए गए टैरिफ से भी कहीं ज्यादा हैं.

अब देखने वाली बात होगी कि 90 दिनों के बाद डोनाल्ड ट्रंप का क्या रुख रहता है - वह टैरिफ पर अपने कदम पीछे खींचते हैं, या फिर वैश्विक अर्थव्यवस्था को कुचलते हुए आगे बढ़ते हैं - जिसका नुकसान ना सिर्फ दुनिया, बल्कि खुद अमेरिका को भी उठाना पड़ेगा.

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