3 इडियट्स
निर्देशकः राजकुमार हीरानी
कलाकारः आमिर खान, करीना कपूर, बोमन ईरानी, आर. माधवन, शरमन जोशी
बतौर निर्देशक अपनी तीसरी ही फिल्म में राजकुमार हीरानी ने तीन लोक नहीं तो भी सिनेमा की दुनिया की एक खासी लंबी जमीन नाप ली है. 3 इडियट्स साल की श्रेष्ठतम फिल्म तो है ही, यह काबिल की बजाए कामयाब बनने पर जोर देने वाली हमारी मौजूदा रट्टामार प्रणाली का तगड़ा पोस्टमार्टम है.
एक इंजीनियरिंग कॉलेज का असाधारण प्रतिभा वाला छात्र रांचो (आमिर) रटंत विद्या की बजाए जिज्ञासाओं को सहज शांत करते हुए ज्ञान हासिल करना चाहता है. घर वालों की अनंत आशाओं का बोझ लादे वह अपने दो दोस्तों फरहान (माधवन) और राजू (शरमन), यहां तक कि अपने प्रिंसिपल वाइरस (ईरानी) और हर किसी को उस जड़ता से निकालना चाहता है. पूरी फिल्म उसके इसी संघर्ष की कहानी है.
निर्देशक के अलावा फिल्म के संपादक, पटकथाकार और संवाद लेखक हीरानी ने एक-एक दृश्य को अच्छे विजुअल्स, टकसाली .जबान, माकूल रफ्तार और कुल मिलाकर संप्रेषणीयता के ऐसे सांचे में ढाला है कि कमोबेश हर प्रसंग दिल और दिमाग को छूता हुआ जाता है. कहानी की बुद्धिमानी भरी बारीक बुनावट की ही खूबी है कि शैक्षिक प्रणाली के बखिए उधेड़ते दृश्यों को देखकर हम हंसते भी हैं और कराहते भी हैं. चाहे वह रैगिंग के दौरान चड्ढी पहने छात्रों की कोरियोग्राफी हो, या 'सबसे तेज' रट्टामार छात्र का गलती से चमत्कार की जगह बलात्कार रटकर प्रिंसिपल की फजीहत करवाना. सब कुछ यथार्थ के एकदम आसपास घटता दिखता है.
3 इडियट्स सिर्फ मनोरंजन की नहीं बल्कि हमारी तालीम से जुड़े बड़े सवालों को सतह पर लानी वाली फिल्म है. पांचों प्रमुख कलाकारों ने अपने किरदारों को आखिर तक जीवंत बनाए रखा है. बेशक आमिर-करीना की प्रेम कथा उतनी दिलचस्प नहीं रह पाती. हीरानी यह भी साबित करते दिखते हैं कि सशक्त किस्सागोई के लिए कोई संजय दत्त, आमिर खान, विद्या (बालन) या करीना उनकी कमजोरी नहीं बन सकते. किस्सागोई और दिलचस्प, दमदार किरदारों के गठन आदि के नजरिए से वे शांताराम से लेकर सलीम-जावेद तक की याद दिलाते हैं.