ब्लैक एंड व्हाइट मूक बधिर फिल्मों से बोलती हुई फिल्में और फिर ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों से रंगीन फिल्में. उसके बाद डॉल्बी साउंड तकनीक आई और फिर मल्टीप्लेक्स ने थिएटर्स में तमाम नए प्रयोग किए. वक्त के साथ सिनेमा ने फिल्मों की स्क्रीनिंग के मामले में खुद को बहुत हद तक बदला है. वर्तमान में भारतीय सिनेमा जो सबसे एडवांस तकनीक स्क्रीनिंग के लिए इस्तेमाल कर रहा है उसका नाम है iMAX. तो चलिए जानते हैं कि iMAX क्या बला है?
आई मैक्स को ईजाद किया है कनाडा की कंपनी आईमैक्स कॉर्पोरेशन ने. इस तकनीक का एक बड़ा फायदा ये है कि इसके जरिए ज्यादा हाई रेजोल्यूशन वाली और ज्यादा बड़े सीन्स को रिकॉर्ड किया और प्रदर्शित किया जा सकता है. आई मैक्स की स्क्रीन नॉर्मल सिनेमाघरों की स्क्रीन से कई गुना ज्यादा बड़ी होती है. हिंदी सिनेमा ने इस तकनीक का इस्तेमाल सबसे पहले यशराज फिल्म्स की मल्टीस्टारर फिल्म धूम-3 के प्रदर्शन में किया था.
आईमैक्स पर कोई भी फिल्म आम सिनेमाघरों से कई मायनों में बेहतर दिखेगी. आईमैक्स का सीक्रेट है डीएमआर यानि डिजिटल री-मास्टरिंग. इसे आईमैक्स कॉरपोरेशन ने इंवेट किया है. आईमैक्स लोकेशन्स पर कई महीने बिताता है और एडिटिंग रूम में डीएमआर की सुविधाओं के साथ डायरेक्टर और टेक्निकल टीम के साथ वक्त बिताता है ताकि शॉट्स, साउंट रिमिक्स, सैचुरेशन, ब्राइटनेस और कई तरह की डिटेल्स पर अधिक से अधिक काम किया जा सके और दर्शकों को सिनेमाघरों में एक अद्भुत अनुभव से रूबरू कराया जा सके.
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साल 2014 में आई क्रिस्टोफर नोलन की फिल्म इंटरस्टेलर को आईमैक्स के इतिहास में सबसे यादगार अनुभव के तौर पर देखा जाता है क्योंकि इस फिल्म में धरती से लाखों-करोड़ों वर्ष दूर वॉर्महोल के सहारे कुछ ग्रहों की कहानियों को दिखाया गया था. इस फिल्म के अलावा क्रिस्टोफर नोलन की डार्क नाइट और डनकर्क भी आईमैक्स भी रिलीज हो चुकी है. आईमैक्स को क्रिस्टोफर नोलन जैसे कई विजनिरी डायरेक्टर काफी पसंद करते हैं क्योंकि इससे बेहतरीन सिनेमाई अनुभव प्राप्त होता है.