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जब राजामौली ने बताया ईश्वर में विश्वास न रखने के बावजूद, फिल्म में कैसे लिख लेते हैं 'बाहुबली' जैसे माइथोलॉजी वाले सीन

इंडिया के सबसे बेहतरीन फिल्ममेकर्स में शुमार एसएस राजामौली की फिल्मों में माइथोलॉजी एक महत्वपूर्ण थीम होती है. और उनकी फिल्मों में माइथोलॉजी वाला एंगल बस रेफरेंस के लिए नहीं होता, बल्कि स्क्रीन पर एक अद्भुत मोमेंट भी क्रिएट करता है. राजामौली खुद बताते रहे हैं कि ईश्वर में नहीं मानते. तो फिर इतनी खूबसूरती से कहानी में ऐसा रेफरेंस कैसे ले आते हैं?

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राजामौली, प्रभास और 'बाहुबली'
राजामौली, प्रभास और 'बाहुबली'

'बाहुबली' और RRR जैसी शानदार फिल्में बनाने वाले डायरेक्टर एसएस राजामौली का एक बयान चर्चा में है. 'बियोंड फेस्ट' में राजामौली की फिल्मों पर एक सेशन चल रहा था. जिसमें सवाल-जवाब के दौरान राजामौली ने कहा कि इस समय जो हिन्दुत्व है बहुत लोग उसे धर्म मानते हैं. उन्होंने कहा कि अगर आज के हिंदुत्व के हिसाब से देखा जाए तो वो भी हिंदू नहीं हैं.

राजामौली का बयान 
इस इवेंट पर उन्होंने कहा, 'बहुत लोगों को लगता है कि आज का हिंदुत्व एक धर्म है. लेकिन इस हिंदुत्व से बहुत पहले एक हिंदू धर्म रहा है, जो एक जीवन शैली है, एक फिलोसॉफी है. अगर आप हिंदुत्व की बात करेंगे तो मैं हिंदू नहीं हूं. लेकिन अगर आप उस हिंदू धर्म की बात करेंगे, तो मैं हिंदू हूं. मैं अपनी फिल्मों में जो दिखाता हूं वो एक जीवन शैली है जो सदियों से और अनंत काल से चल रही है.'

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए राजामौली ने यह भी कहा कि RRR में राम चरण ने भगवद्गीता का जो श्लोक बोला, अगर आप उसे भगवान कृष्ण के अर्जुन को संदेश की तरह देखेंगे तो वो हिंदी धर्म की शिक्षा होगी, लेकिन जब आप उसका अर्थ समझते हैं तो ये हर भारतीय को सिखाया गया है, चाहे उसकी कोई भी जाति हो या वो कहीं भी पैदा हुआ हो. राजामौली के इस बयान को लेकर सोशल मीडिया  कुछ लोग उन्हें ट्रोल भी करने लगे हैं. 

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अपनी फिल्मों में इतने शानदार तरीके से धार्मिक कथाओं को एक प्लॉट एलिमेंट की तरह लेकर चलने वाले राजामौली ईश्वर में विश्वास नहीं रखते! ये बात कई मौकों पर राजामौली खुद कह चुके हैं. वो खुद को 'एग्नोस्टिक' कहते हैं यानी अनीश्वरवादी, जिसे भगवान वाली फिलोसॉफी पर यकीन नहीं है. ऐसे में एक बहुत दिलचस्प सवाल उठता है जब राजामौली धार्मिक हैं ही नहीं, तो वो अपनी फिल्मों में धर्म से जुड़ी कथाओं को इतना बेहतरीन कैसे दिखा पाते हैं?

फिल्मों में माइथोलॉजी का बेहतरीन प्रयोग 
एसएस राजामौली की 'बाहुबली' फ्रैंचाइजी को बहुत आराम से उन फिल्मों में गिना जा सकता है, जिन्हें देशभर के दर्शकों ने खूब देखा है. बाहुबली जैसा आइकॉनिक कैरेक्टर वैसे तो राजामौली की कल्पना से निकला लेकिन उसकी पूरी कहानी में हिंदू माइथोलॉजी एक मजबूत चेन की तरह है ये न सिर्फ पूरे स्क्रीनप्ले को बांध के रखता है, बल्कि स्क्रीन पर बहुत सारे ऐसे मोमेंट भी रचता है जिन्हें देखकर थिएटर में बैठे दर्शकों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं और बहुत से लोग तो भावुक भी हो जाते हैं.

'बाहुबली' में प्रभास

'बाहुबली' में कंधे पर शिवलिंग उठाए शिवा (प्रभास) के साथ बैकग्राउंड में, कैलाश खेर की आवाज में गाया हुआ शिव स्त्रोत है. अमरेन्द्र बाहुबली की कहानी में, प्रभु श्रीराम के जीवन की तरह आने वाले मोड़ हैं जैसे राजा बनने की जगह राजमहल से दूर किया जाना. या फिर माहिष्मती राज्य में 26 साल बाद राक्षस दहन की बजाय, भल्लाल देव का संहार. 

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और ये माइथोलॉजिकल रेफरेंस राजामौली की एक ही फिल्म में नहीं है. उनकी सबसे ताजा रिलीज RRR में एक्टर राम चरण का भगवान राम जैसे गेटअप में आकर धनुष-बाण से दुश्मनों से लड़ना, स्क्रीन पर एक अद्भुत मोमेंट था. 'मगधीरा' में राम चरण के किरदार काल भैरव का 100 सैनिकों से युद्ध, 'सिंहाद्री'  में जूनियर एनटीआर की क्लाइमेक्स फाइट और राजामौली की कॉमेडी फिल्म 'मर्यादा रामन्ना' में सुनील का शिवलिंग सीन भी ऐसे ही माइथोलॉजी से जुड़े बेहतरीन स्क्रीन मोमेंट हैं. 

RRR में राम चरण

माइथोलॉजी दिखाने के लिए कैसे सोचते हैं राजामौली?
बिजनेस टुडे के अगस्त एडिशन में राजामौली ने इस सवाल पर डिटेल में बात की थी. उन्होंने कहा, 'मेरी व्यक्तिगत राय, मेरे विचार और मेरे लाइफस्टाइल का मेरे काम से कोई लेना देना नहीं है. मैं इन्हें बिल्कुल अलग रखता हूं. प्रोफेशनली मैं अलग हूं. मैं अपने विचारों को अपने किरदारों या अपनी स्टोरीटेलिंग पर थोपने की कोशिश नहीं करता.'

राजामौली ने बताया कि वो धर्म की जगह माइथोलॉजी की इमोशनल अपील को पकड़ते हैं. आगे बात करते हुए उन्होंने कहा, 'जब मैं एक कहानी लिखना शुरू करता हूं, तो मेरे लिए जरूरी है कि वो इमोशन मुझे झकझोर दे. मैं भले एग्नोस्टिक हूं लेकिन जब मैं एक अच्छी फिल्म देखता हूं, जैसे उदाहरण के लिए 'अन्नामय्या', जो भगवान वेंकटेश्वर के एक भक्त के बारे में है और जब मैं क्लाइमेक्स देखता हूं, मुझे रोना आ जाता है. वो एक भगवान और उसके भक्त, एक आदमी के बारे में है. मैं भले ईश्वर में विश्वास नहीं रखता, मगर मैं एक भक्त और भगवान के बीच के इमोशन से जुड़ाव महसूस करता हूं. और मैं उस इमोशन से कनेक्ट कर पाता हूं जो जनता को मूव करता है- भक्ति और खुद से ऊपर एक शक्ति के के अधीन हो जाना. मैं उस भावना की शक्ति को समझता हूं, और मुझे भी वह महसूस होता है. मैं भले ईश्वर में विश्वास नहीं रखता, लेकिन इस इमोशन में यकीन रखता हूं और अगर ये मुझे अंदर तक छूता है, तो मैं इसे लिखता हूं.'

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