
इंडियन सिनेमा के सबसे शानदार शाहकारों में से एक ‘बाहुबली’, एक बार फिर से बड़े पर्दे पर लौट रहा है. 2015 में पहली बार बड़े पर्दे पर आई इस फिल्म को एक दशक पूरा हो चुका है. सिनेमा में स्टाइल, स्केल और स्टोरी का संयोजन ‘बाहुबली’ में ऐसा उतरा कि तमाम दर्शकों के लिए आज भी लाइफ का बेस्ट थिएट्रिकल एक्सपीरियंस है. इसे रचने वाले जादूगर एसएस राजामौली अब ‘बाहुबली- द एपिक’ लेकर आ रहे हैं. अपनी दोनों ‘बाहुबली’ फिल्मों को राजामौली ने दोबारा एडिट और री-मास्टर करके एक सिंगल फिल्म में बदला है.
3 घंटे 44 मिनट की ‘बाहुबली- द एपिक’ आज के सारे नए सिनेमा फॉर्मेट्स जैसे IMAX और 4D वर्जन में आ रही है. 31 अक्टूबर को ‘बाहुबली’ का एक्सपीरियंस पहले से भी ग्रैंड होने जा रहा है. ये एक्सपीरियंस क्रिएट करने में राजामौली अपनी फिल्ममेकिंग को किस पैमाने पर लेकर गए थे, इसकी डिटेल्स जानने के बाद ‘बाहुबली’ के लिए आपका प्यार-सम्मान भी अलग लेवल पर चला जाएगा…
10,000 तलवारें और फाइटिंग आर्मर
‘बाहुबली’ के प्रोडक्शन डिज़ाइनर साबू सायरिल ने द हिंदू को बताया था कि इस फिल्म पर काम करने का अनुभव ‘किसी फैक्ट्री में काम करने जैसा था.’ जबतक फिल्म का शूट निपट नहीं गया, साबू और उनकी 200 लोगों की टीम कुछ ना कुछ नया डिज़ाइन ही कर रहे थे.

तलवारों और आर्मर को बनाने में सबसे बड़ा चैलेंज था कि ये स्टील जैसा मजबूत भी दिखे और बहुत भारी भी ना हो, ताकि एक्टर्स आराम से इस्तेमाल कर सकें. इसके लिए कार्बन फाइबर इस्तेमाल किया गया, जो हेलीकॉप्टर के ब्लेड और रेसिंग कारों में यूज होता है. आर्मर के लिए फ्लेक्सी-फोम यूज की गई, जिसे जरूरत के हिसाब से लेदर या स्टील की तरह पेंट किया गया. विदेशों से भी अलग-अलग मैटेरियल मंगाए गए. फिल्म का स्केल इससे समझिए कि साबू एंड टीम ने 10,000 तलवारें, हेलमेट और आर्मर बनाए थे.
3D प्रिंटिंग से बनी मूर्ति, 45 फुट का आर्टिफिशियल झरना
साबू कभी अपने काम में लेटेस्ट टेक्नोलॉजी इस्तेमाल करने से नहीं हिचकिचाते. इसका एक उदाहरण ‘बाहुबली’ में भल्लाल देव की 100 फुट ऊंची विशालकाय मूर्ति है. इस मूर्ति का सिर उन्होंने 3D प्रिंटिंग से तैयार करवाया था.
माहिष्मती साम्राज्य के इर्द-गिर्द जो रहस्यमयी से लगने वाले बाग-बगीचे और झरने आपको फिल्म में दिखते हैं, वो पूरी तरह VFX नहीं है. बल्कि 6 महीने की मेहनत से तैयार सेट पीस हैं. इसी तरह माहिष्मती का महल भी अजंता-एलोरा के पल्लव कालीन मंदिरों से इंस्पायर डिज़ाइन था. ब्रास और ग्रेनाइट के, एम्बोसिंग से तैयार पीस इस्तेमाल हुए. महल का सिंहासन और बाकी कुर्सियां, सिंगल स्टोन पर नक्काशी से बनाए गए थे. मगर कहानी में महल भी दो तरह के थे.
माहिष्मती का महल शक्ति का प्रतीक था, जबकि देवसेना के मायके, कुंतल राज्य का महल शांति और कला का. इसलिए देवसेना का महल सफेद संगमरमर का बना दिखाया गया था. साबू एंड टीम ने हैदराबाद की एक एल्युमीनियम फैक्ट्री को देवसेना के महल में बदला था. ये फैक्ट्री चार एकड़ में फैली हुई थी.
रथ में रॉयल एनफील्ड का इंजन
'बाहुबली' की सबसे बड़ी हाईलाइट्स में से एक था भल्लालदेव का रथ. ऐसा रथ जिसमें आगे तेजी से घूमने वाले ब्लेड लगे थे. युद्धभूमि में सामने आने वाले शत्रु सैनिकों को ये रथ, भल्लाल तक पहुंचने से पहले ही गाजर-मूली की तरह काट डालता था. कितने ही लोगों ने ट्रैफिक में फंसने पर, कार की जगह इस रथ पर सवार होने की कल्पना की है! मगर क्या आप जानते हैं कि इस रथ के आगे लगे ब्लेड्स को ये तगड़ी पावर मिल कैसे रही थी?

रॉयल एनफील्ड के इंजन से. एक इंटरव्यू में साबू ने बताया था, 'हमने रॉयल एनफील्ड का इंजन इसलिए इस्तेमाल किया था ताकि इसे वो पावर और स्पीड मिले जिसकी जरूरत है.' इस रथ में बाकायदा कार का स्टीयरिंग और एक ड्राईवर भी था. साबू बताते हैं की ये रथ डिजाईन करने में उन्हें बहुत मजा आया था.
सेट पर बना 45 फुट का झरना
प्रभास का झरने वाला आइकॉनिक सीन तो आपको याद ही होगा. उसका एक हिस्सा केरल में एक 98 फुट के झरने पर शूट हुआ था. मगर दूसरे हिस्से का जिम्मा साबू को मिला. खड़ी चट्टानों के 8 पोर्शन डिज़ाइन किए गए, 45 फ़ीट ऊंचे, एक बड़े टैंक से लगातार पानी पंप किया जाता था. इसपर शूट हुए सीन फिर VFX की मदद से एनहान्स किए गए. रियल शूट और VFX के बेहतरीन कॉम्बिनेशन ने ‘बाहुबली’ के वो ग्रैंड विजुअल क्रिएट किए थे जिन्हें पहली बार देखते हुए लोगों के मुंह खुले रह गए थे.

और VFX डिपार्टमेंट भी अपने आप में किसी असेंबली लाइन से कम नहीं था. पूरी फिल्म के लिए 15000 से ज्यादा स्टोरीबोर्ड स्केच किए गए थे. 90% से ज्यादा शॉट्स विजुअली एनहान्स किए गए थे. इस काम में 18 अलग-अलग कंपनियों के 600 से ज्यादा आर्टिस्ट लगे थे. मगर गर्व की बात ये थी कि ‘बाहुबली’ के ग्राफिक्स का अधिकतर हिस्सा इंडियन कंपनियों ने तैयार किया था.
'बाहुबली' डायरेक्टर राजामौली ने कागज पर एक विजन तैयार किया था. बड़े पर्दे पर उसे उतारने के लिए साबू और टीम ने जी-जान लगा दी थी. तब जाकर 400 करोड़ रुपये से ज्यादा के खर्च में ये विजन, दो पार्ट्स में बड़े पर्दे तक पहुंचा. दोनों पार्ट्स का टोटल फुटफॉल 15 करोड़ से ज्यादा था. अकेले 'बाहुबली 2' को करीब 11 करोड़ फुटफॉल मिला था, जो भारतीय सिनेमा के इतिहास में केवल एक फिल्म, 'शोले' से कम है.
'शोले' के बाद 'बाहुबली' को वो दूसरी फिल्म माना जाता है जिसने इंडियन सिनेमा को बदलकर रख दिया. और इसमें सिर्फ राजामौली की कहानी या डायरेक्शन का ही नहीं, बल्कि प्रोडक्शन के स्केल का योगदान भी बहुत बड़ा था. 'बाहुबली' से इंस्पायर होकर प्रशांत नील, ऋषभ शेट्टी और नाग अश्विन जैसे फिल्ममेकर्स के सपनों को पंख मिले. इन मेकर्स ने फिर 'KGF', 'कांतारा' और 'कल्कि 2898 AD' जैसी फिल्में इंडियन सिनेमा को दीं.