scorecardresearch
 

Movie Review: चालू मसालों से बनी इस जंजीर की कई कड़ियां हैं कमजोर

अगर आप 1973 में आई प्रकाश मेहरा की अमिताभ बच्चन, जया भादुड़ी, प्राण और अजीत स्टारर फिल्म जंजीर के फैन हैं, तो आज रिलीज हुई जंजीर की रीमेक मत देखिए, निराश होंगे और इस रीमेक कल्चर को बिना पानी पिए भी कोसेंगे. पहली जंजीर में सब कुछ असल और याद रह जाने वाला था. मगर नई के साथ ऐसा कुछ भी नहीं है.

Advertisement
X
जंजीर ने किया निराश
जंजीर ने किया निराश

फिल्म रिव्यू: जंजीर
डायरेक्टर: अपूर्व लखिया
एक्टर: प्रियंका चोपड़ा, रामचरण तेजा, संजय दत्त, प्रकाश राज, चेतन पंडित, माही गिल
ड्यूरेशन: दो घंटा 17 मिनट
पांच में से दो स्टार (**)

1. अगर आप 1973 में आई प्रकाश मेहरा की अमिताभ बच्चन, जया भादुड़ी, प्राण और अजीत स्टारर फिल्म जंजीर के फैन हैं, तो आज रिलीज हुई जंजीर की रीमेक मत देखिए, निराश होंगे और इस रीमेक कल्चर को बिना पानी पिए भी कोसेंगे. पहली जंजीर में सब कुछ असल और याद रह जाने वाला था. मगर नई के साथ ऐसा कुछ भी नहीं है.

2. नई जंजीर कस्बों की दीवारों पर कुछ बरसों पहले तक चिपकने वाले उन पोस्टरों की पहली लाइन की तरह है, जिसमें लिखा होता है अखिल भारतीय महान प्रदर्शन, एक्शन, रोमांस, सस्पेंस और मारधाड़ से भरपूर. मगर दिक्कत यह है कि इन सारे एलिमेंट्स में कुछ भी नया नहीं है. फ्रिज में रखकर भूली हफ्तों पहले की सब्जी की तरह गाने ठूंसे गए हैं. कहानी के ट्विस्ट का एक बालक भी अंदाजा लगा सकता है. एक्टिंग नहीं है, क्योंकि फिल्म में स्टार हैं और जो एक्टर हैं, उनसे भी एक्टिंग नहीं करवाई गई.

Advertisement

पढ़ें फिल्म शुद्ध देसी रोमांस का रिव्यू

3. फिल्म की कहानी पहले हाफ में असल जंजीर की लगभग कॉपी है. इंस्पेक्टर विजय अब एसीपी विजय खन्ना बन गया है. गुस्सैल है और न्याय को चौराहों पर तवायफों की तरह नाचता नहीं देखना चाहता. ट्रांसफर से मुंबई पहुंचता है और एक मर्डर के सिलसिले में भिड़ता है तेल माफिया तेजा से. उसकी मदद और फिर प्यार करते हैं कतल की चश्मदीद माला, चोरी की कारों के धंधे का बादशाह शेर खान और पत्रकार जयदेव. धार्मिक कथा की तर्ज पर अंत में पापी का नाश होता है.और हिंदी फिल्मों की तर्ज पर इस कथा में सिर्फ भावनाओं के रथ पर सवार बाहुबली हीरो की विजय.

4. फिल्म के हीरो रामचरण तेजा बताया जाता है कि तेलुगू फिल्मों के सुपरस्टार हैं. जाहिर है स्टार हैं, तो एक्टिंग पर कम और डोले दिखाने, चीखने और कदम थिरकाने पर ज्यादा जोर रहता होगा. जंजीर में इंस्पेक्टर विजय खन्ना के रोल में वह किसी भी भाव को ढंग से नहीं दिखा पाते हैं. एक तनाव, क्रोध और निश्चय जिससे मिलकर विजय बना होगा, नदारद रहता है. तेजा जी आपका तेज नजर नहीं आया इस किरदार में.

5. प्रियंका चोपड़ा माला बनी हैं, मगर चक्कू छुरियां नहीं बेचती यहां. गुज्जू एनआरआई हैं, फेसबुक फ्रेंड के बियाह में थिरकने और बॉलीवुड स्टाइल इंडिया देखने आई हैं. उसके बाद एक मर्डर की चश्मदीद बन जाती हैं, विजय से टकराती हैं और पहले डर और फिर प्यार हो जाता है. जब वह डरती हैं तो लगता है कि कॉमेडी सर्कस का कोई किरदार डर रहा है, ताकि अगले पल हंसा सके. प्रियंका ने इंटरव्यू में पहले ही कहा था कि कोई गलती हो गई हो, तो माफ कर दें. जाओ माफ किए तुम्हारे ये सब खून डार्लिंग.

Advertisement

6. शेर खान के रोल को प्राण आसमान की बुलंदियों पर ले गए थे. नई जंजीर में संजय दत्त वैसा कुछ तो नहीं करते, मगर बाकी सबकी तरफ फर्श पर फैल भी नहीं जाते हैं. कुछ सूजा हुआ सा चेहरा और आंखें, पठानों जैसी बिल्ट, चेहरे पर कट मार्क और कई जगह से काटकर तराशी गई दाढ़ी और शेर दिल जवानों सा रौब जचता है. मगर आखिरी में उनका किरदार कमजोर पड़ जाता है. कव्वाली सीक्वेंस भी चोरी के माल जैसा ही है.

7. प्रकाश राज बेहद शानदार एक्टर हैं, ये हम भाग मिल्खा भाग में देख चुके हैं, जहां वह बेरहम मगर ममता से भरे पीटी इंस्ट्रक्टर बने हैं. वह बतौर विलेन लुभा सकेत हैं यह हम सिंघम के जयकांत शिकरे में देख चुके हैं. मगर जंजीर में तेजा के रोल में वह बेबस से नजर आते हैं. इसकी वजह है नए डायरेक्टर्स की वह जिद कि वह एक अच्छे खासे संभावित विलेन को भांड की तरह हरकतें करते दिखाने पर उतारू हैं. तेजा चमकीले, भड़कीले रंगों में रंगा एक विदूषक नजर आता है, जिसके पास धोखे से कुछ ताकत आ गई हों जैसे.

8. माही गिल ने मोना डार्लिंग के रोल का नाश मार दिया. वह हर वक्त अपने तेजा सेठ को बस बिस्तर पर खींचने की जुगत में म्याऊं म्याऊं करती दिखती हैं. विलेन की यार में एक जो महीन, कातिल चमक होनी चाहिए, वह नदारद है. एक्टर को बेकार में खर्च करने का एक और नमूना हैं वह.

Advertisement

9. अतुल कुलकर्णी ने पत्रकार जयदेव का किरदार निभाया है. इस दौरान वह फिल्म पेज 3 के क्राइम रिपोर्टर वाले रोल को आगे बढ़ाते दिखते हैं. उनका रोल साफ तौर पर कुछ बरस पहले मुंबई में मार दिए गए मशहूर क्राइम रिपोर्टर जे डे से प्रेरित दिखता है. अतुल थिएटर बैकग्राउंड से हैं और इस तरह के रोल उनके लिए आसान ही होते हैं. चेतन पंडित भी पुलिस कमिश्नर के रोल में बाकियों के औसत काम की भरपाई करते दिखते हैं.

10. फिल्म का संगीत गैप भराऊ है और डायरेक्शन बेहद लचर. डायरेक्टर अपूर्व लखिया का जोश बस कुछ एक्शऩ सीक्वेंस में ही नजर आता है. बाकी कहानी की बात करें तो जंजीर की कहानी दमदार थी ही. मगर बेहतर होता कि अपूर्व डॉन और अग्निपथ के रीमेक से कुछ सबक लेते और टाइम मशीन के फासले को तय करने से पहले अपना होमवर्क अच्छे से करते. फिल्म के गाने कहीं से भी आत्मा को नहीं छूते. हर वक्त असल जंजीर के यारी है ईमान मेरा, बनाके क्यूं बिगाड़ा रे और दीवाने हैं दीवानों को न घर चाहिए...याद आते रहते हैं.

और अंत में
फिल्म में कई चीजें समझ ही नहीं आतीं. विलेन ने हीरो के बाप को मारा था, तो हीरो को डरावने सपने आते हैं, मगर उसमें घोड़ा क्यों आता है, समझ नहीं आता. इसी तरह आखिरी में विलेन के मरते वक्त मुहर्रम जैसे धार्मिक शहादत के पर्व को दिखाने की भी वजह समझ नहीं आती. मुंबई में फिल्म है तो क्या कसम खा ली है गणेश विसर्जन का सीन डालने की. क्या देश के सारे मुसलमान अपने त्योहारों पर कव्वाली करते हैं. क्या हर पुलिस डिपार्टमेंट में हीरो के इर्द गिर्द क्रूर सिंह के आमिर नाजिर की तरह दो बेवकूफ और जबरन हंसाने की कोशिश करते इंस्पेक्टर होते हैं. जंजीर की ये रीमेक फिल्म औसत मसालों से लैस है, अगर यही हिंदी सिनेमा है आपकी नजर में तो जाकर तड़प दूर करें. वर्ना और भी फिल्में हैं इस जंजीर में फंसने के सिवाय.

Advertisement
Advertisement