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'हाथ' को फिर मिलेगा जनता का साथ या बिगड़ेगी 'साइकिल' की चाल, ये है रायबरेली का चुनावी हाल

उत्तर प्रदेश में ऐलान से पहले ही चुनावी घमासान अपने चरम पर पहुंच चुका है. हर जिले में अपनी-अपनी पार्टी के लिए देश के प्रधानमंत्री के साथ ही उत्तर प्रदेश के सभी बड़े नेता मैदान में डटे हुए हैं.

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प्रियंका गांधी की रैली में महिलाओं की भारी भीड़
प्रियंका गांधी की रैली में महिलाओं की भारी भीड़
स्टोरी हाइलाइट्स
  • रायबरेली में कांग्रेस के लिए अपना गढ़ बचाने की चुनौती
  • बीजेपी और सपा ने भी लगाया जोर, प्रियंका ने संभाली है कमान

उत्तर प्रदेश में कुछ सालों पहले तक रायबरेली को कांग्रेस और गांधी परिवार का गढ़ माना जाता था, लेकिन बीते कुछ समय में कांग्रेस की पकड़ यहां कमजोर हुई है जिसका फायदा दूसरे सियासी दलों ने उठाया है.

यूपी में ऐलान से पहले ही चुनावी घमासान अपने चरम पर पहुंच चुका है. हर तरफ हर जिले में अपनी अपनी पार्टी के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही उत्तर प्रदेश के सभी बड़े नेता मैदान में डटे हुए हैं.

सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की कमान जहां उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथों में है तो वही उनका साथ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दे रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी को फिर से सत्ता में लाने का जिम्मा अखिलेश यादव के कंधों पर है.  

कांग्रेस के लिए गढ़ बचाने की चुनौती

32 सालों से उत्तर प्रदेश में अपनी जमीन तलाश रही कांग्रेस पार्टी की जिम्मेदारी इस बार खुद कांग्रेस की महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी ने संभाल रखी हैं. प्रियंका गांधी के साथ कदम से कदम मिलाकर प्रमोद तिवारी की बेटी मोना तिवारी नजर आ रही हैं.

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रायबरेली में कार्यक्रम के बाद प्रियंका गांधी ने गेस्ट हाउस में करीब चार दर्जन से ज्यादा प्रत्याशियों से मुलाकात की और उनकी तैयारियों का मूल्यांकन किया. बीता हफ्ता रायबरेली की राजनीतिक सरगर्मियां के लिए खासा महत्वपूर्ण रहा था. 

2012 की जीत दोहराना चाहती है सपा

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने रायबरेली में अपनी 2 दिनों की विजय यात्रा के दौरान छह विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी के लिए जनसभा की. पार्टी कार्यकर्ताओं ने भी बढ़-चढ़कर उनके कार्यक्रमों में हिस्सा लिया और जगह-जगह अखिलेश यादव का स्वागत किया. 

समाजवादी पार्टी 2012 की जीत दोहराने के लिए अपने पूरे दमखम के साथ सड़कों पर उतर चुकी है. अखिलेश यादव ने अपनी विजय यात्रा के दौरान हर विधानसभा क्षेत्र में करीब 6 से 7 प्रत्याशी दावेदारों के साथ इलाके के लोगों को पार्टी के सहयोग के लिए सड़कों पर उतरने की अपील की.

रायबरेली में कमल खिलाना चाहती है बीजेपी

वहीं राज्य की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी जिले में किसी ना किसी तरीके से अखबारों की सुर्खियों में बनी रहती है. संघ की नई-नई नीतियों के सहारे बीजेपी हिंदुत्व की राह पर हर दिन नए कार्यक्रम और योजना के साथ अपनी तैयारी को अंजाम देने में जुटी है. इस वक्त बीजेपी अमृत महोत्सव के रूप में गांव-गांव में तिरंगा यात्रा निकाल कर लोगों को अपने पक्ष में करने का प्रयास कर रही है.

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बीते एक महीने की बात करें तो उत्तर प्रदेश के कई मंत्रियों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के दोनों उप मुख्यमंत्रियों का दौरा रायबरेली में हो चुका है. अलग-अलग कार्यक्रमों में उन्होंने शिरकत की है और संगठन के लोगों के साथ महत्वपूर्ण बैठकें भी की है.

प्रियंका ने संभाला मोर्चा

दूसरी तरफ रायबरेली में अपने गढ़ को बचाने के लिए प्रियंका गांधी भी अपने कार्यकर्ताओं के साथ जुटी हुई हैं. प्रियंका गांधी ने अपने नारे 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' के नाम से रायबरेली के रिफॉर्म क्लब में 5000 लड़कियों के साथ महिला कार्यकर्ताओं को संदेश देने का प्रयास किया. उन्होने कहा, देश की आधी आबादी ना सिर्फ घरों को चला सकती है बल्कि प्रदेश को भी चलाने में सक्षम हैं. 

प्रियंका गांधी ने कहा, उसे अपनी शक्ति को समझना होगा और अपने लिए वोट करना होगा. फिलहाल प्रियंका गांधी के सामने 40 फीसदी महिला आरक्षण बड़ी चुनौती है, क्योंकि संगठनात्मक तौर पर इतने प्रत्याशी खोज पाना उनके लिए आसान नहीं होगा.

कांग्रेस के लिए बड़ी चिंता का सबब उनके पुराने विधायकों का पार्टी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी के खेमे में जाना भी है.  रायबरेली सदर विधानसभा सीट से अदिति सिंह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो चुकी हैं जबकि हरचंदपुर के राकेश सिंह शामिल होने के लिए माकूल वक्त के इंतजार में है.

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सूत्रों के मुताबिक वो एक बड़े कार्यक्रम के जरिए अपनी भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर सकते हैं, लेकिन अभी सही वक्त का इंतजार कर रहे हैं .

कांग्रेस के लिए इस बार योग्य प्रत्याशी खोज पाना खासा चुनौतीपूर्ण हो चुका है. कैमरे पर तो कोई भी विधायक बोलने को तैयार नहीं लेकिन सूत्रों की माने तो कांग्रेस के पूर्व विधायकों में कई लोग अलग-अलग पार्टियों के टिकट के लिए संघर्षरत हैं.

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