संघ विचारक और तुगलक के संपादक एस गुरुमूर्ति सोमवार को इंडिया टुडे कॉन्क्लेव साउथ के मंच पर थे. एस गुरुमूर्ति ने तमिलनाडु की सत्ताधारी डीएमके पर हमला बोलते हुए कहा कि यह पार्टी न तो द्रविड़ विचारधारा के प्रति वफादार है, और ना ही तमिल पहचान के प्रति. उन्होंने डीएमके के तमिल गौरव वाले दावे को चुराई हुई पहचान बताया और कहा कि तमिल संस्कृति को गलत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है.
एस गुरुमूर्ति ने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के मंच पर कहा कि ईवी रामास्वामी (पेरियार) ने द्रविड़ विचारधारा का पता लगाया था. यह ऐसे लोग थे, जिन्होंने आर्य और द्रविड़ के नस्लीय विभाजन को अपना लिया था. उन्होंने जोर देकर कहा कि द्रविड़ पहचान की कोई भाषा नहीं होती, यह नस्लीय है. एस गुरुमूर्ति ने कहा कि अगर आप यह कहते हो कि तमिल द्रविड़ हैं, तो मलयालम, कन्नड़ और तेलुगु का क्या?
उन्होंने पेरियार को ईमानदार विचारक बताया और कहा कि ईवी रामास्वामी ने ब्राह्मणवादी प्रभुत्व का विरोध किया था. संघ विचारक ने डीएमके की आलोचना करते हुए कहा कि द्रविड़ नस्लवाद से अनाथ हो जाने के बाद इसने तमिल साहित्य और पहचान को अपना लिया. उन्होंने डीएमके की अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई को प्राथमिकता देने वाली नीति की चर्चा करते हुए कहा कि यह तमिल भाषा और संस्कृति को कमजोर करने वाला कदम है.
यह भी पढ़ें: 'भारत फर्स्ट... हम हर चुनाव में NDA के साथ', तेलुगु प्राइड और उपराष्ट्रपति चुनाव पर बोले नारा लोकेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए एस गुरुमूर्ति ने कहा कि वह तमिलनाडु को फिर से भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जड़ों से फिर से जोड़ रहे हैं. उन्होंने तमिल इतिहास सेलिब्रेट करने से लेकर राजराजा चोल जैसे शासकों की प्रतिमा लगाने तक, पीएम मोदी की पहल गिनाईं और इन्हें विभाजनकारी द्रविड़ नैरेटिव दरकिनार कर तमिल विरासत को मान्यता दिए जाने का उदाहरण बताया.
यह भी पढ़ें: 'आइडिया सही, लेकिन टाइमिंग...', बिहार SIR पर क्या बोले पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत
उन्होंने यह भी कहा कि पीएम ऐसी स्थिति उत्पन्न कर रहे हैं, जहां डीएमके द्रविड़ छोड़ तमिल को अपना लेगी या तमिल छोड़ द्रविड़ को. संघ विचारक एस गुरुमूर्ति ने तमिलनाडु में बीजेपी की मौजूदगी को लेकर कहा कि पार्टी, कांग्रेस के कमजोर होने से आए खालीपन को भर रही है. उन्होंने यह भी ककहा कि संघ और बीजेपी का विकास ही इसीलिए हुआ, क्योंकि इन्होंने स्थानीय भावनाओं का सम्मान किया. कांग्रेस ने यह कभी नहीं किया. उन्होंने बीजेपी के सांस्कृतिक दृष्टिकोण को उत्तर केंद्रित राजनीति से अलग बताया.