अरविंद केजरीवाल की निगाहें जब दिल्ली पर लगी हुई हैं, तब वह निशाना हरियाणा पर भी साधने में जुटे हैं. कल सुबह 11.30 बजे आम आदमी पार्टी के विधायक दल की बैठक दिल्ली के मुख्यमंत्री आवास पर होगी. सीएम आवास पर ही कल विधायक दल के नए नेता का चुनाव होगा. कल शाम 4.30 बजे अरविंद केजरीवाल एलजी के साथ बैठक करेंगे. खबर है कि कल ही शाम को एलजी को अपने इस्तीफे के साथ विधायक दल के नेता यानी दिल्ली के नए मुख्यमंत्री का नाम भी देंगे.
हरियाणा पर केजरीवाल पर निगाहें
जब सभी की निगाहें दिल्ली पर लगी हुई हैं, तब अरविंद केजरीवाल की पार्टी हरियाणा को लेकर भी अपना निशाना सेट कर चुकी है. जहां यूं तो अब तक सीधा मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच होता आया है. लेकिन एक-एक सीट पर जब कई उम्मीदवारों में कांटे की टक्कर होती है तो क्या इस बार जेल से बेल पर बाहर आकर हरियाणा चुनाव में प्रचार करने जाने वाले केजरीवाल खेल बना और बिगाड़ सकते हैं? सवाल कई हैं, क्या 2019 हरियाणा विधानसभा चुनाव में NOTA से भी कम वोट पाने वाली केजरीवाल की पार्टी अबकी बार अपना खेल बना नहीं तो बहुतों का बिगाड़ जरूर सकती है? क्या आज तक जो आम आदमी पार्टी हरियाणा में 10 साल में किसी चुनाव में पांच फीसदी वोट नहीं पाई वो बहुतों की जीत की उम्म्मीद को पंचर कर सकती है? क्या 10 हजार के कम अंतर से हार जीत वाली हरियाणा की 32 सीटों पर आम आदमी पार्टी किसी का भी गेम बिगाड़ सकती है?
सोमवार को दिन में पहले मनीष सिसोदिया और राघव चड्ढा के साथ एक घंटे बैठक हुई. शाम को करीब एक घंटे तक आम आदमी पार्टी की पीएसी की बैठक हुई. अरविंद केजरीवाल ने इस बैठक में दिल्ली के अगले मुख्यमंत्री के बारे में भी चर्चा कर ली है.
खुद को 'हरियाणा का बेटा' बताकर वोट मांगेंगे केजरीवाल
क्या हरियाणा के विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल प्रचार करने उतरेंगे तो कांग्रेस का गेम बिगड़ सकता है? इस सवाल की वजह बने हैं संदीप दीक्षित, कांग्रेस नेता और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे, जो एक बड़ा दावा करते हैं. कुछ लोग संदीप दीक्षित की बात से सहमत हो सकते हैं, कुछ असहमत हो सकते हैं. असहमत होने वालों का तर्क ये हो सकता है कि अरविंद केजरीवाल हरियाणा में क्या ही कर लेंगे, जबकि 2014 से 2024 तक लोकसभा और विधानसभा चुनावों में हरियाणा के भीतर आम आदमी पार्टी का ना कोई सांसद प्रत्याशी जीता, ना कोई विधायक बना. चार चुनाव में कभी भी AAP का वोट शेयर साढ़े चार फीसदी तक नहीं पहुंच पाया. पिछली बार विधानसभा चुनाव में तो पार्टी के सारे उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हुई थी. अबकी बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ उतरने पर भी केजरीवाल के कैंडिडेट की हरियाणा में जीत नहीं हो पाई.
अरविंद केजरीवाल, संजय सिंह, मनीष सिसोदिया जैसे सारे बड़े नेता अभी बेल पर बाहर हैं. जो दिल्ली सीएम का चुनाव होने के तुरंत बाद अपना फोकस हरियाणा के चुनाव प्रचार पर करेंगे. हरियाणा केजरीवाल की जन्मभूमि है तो 'दिल्ली का बेटा' होने के साथ ही वो खुद को 'हरियाणा का बेटा' बताकर वोट मांगने निकलेंगे. दिल्ली के सीएम की कुर्सी छोड़ने वाले त्याग का हवाला देंगे और 177 दिन के जेल के लिए बीजेपी को जिम्मेदार बताएंगे. दिल्ली के मुफ्त बिजली, पानी के वादे याद कराएंगे और स्कूल-मोहल्ला क्लीनिक का हवाला देकर वोट मांगेंगे.
आंकड़ों से समझिए कैसे AAP कर सकती है खेल?
आखिर केजरीवाल ऐसा क्या कर सकते हैं जिससे पिछले विधानसभा चुनाव में नोटा से भी कम वोट पाने वाली पार्टी इस बार के हरियाणा चुनाव में खेल कर सकती है? कुछ आंकड़ों से संभावनाओं को टटोलते हैं. पहली संभावना जिसमें ये लगता है कि आम आदमी पार्टी खेल बनाने, बिगाड़ने का काम कर सकती है. वो है, पिछली बार 25 सीटों पर हार जीत का अंतर 5 हजार से भी कम होना, जिसमें 12 सीटें कांग्रेस ने जीतीं, 9 बीजेपी ने जीतीं थी, 2 जेजेपी, 1 एचएलपी और 1 निर्दलीय के खाते में गई. इन 25 सीटों पर अभी के मौजूदा सियासी माहौल में अगर अरविंद केजरीवाल बड़े स्तर पर प्रचार करते हैं और वोटों का जरा सा संतुलन बिगड़ा तो किसी भी पार्टी की सीटों का संतुलन बिगड़ जाएगा.
32 सीटों पर 10 हजार से भी कम था हार-जीत का अंतर
अब दूसरा आंकड़ा देखिए, इससे आप समझेंगे कि आम आदमी पार्टी कैसे हरियाणा में अहम हो सकती है. हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से 32 सीटें महत्वपूर्ण हैं. इन 32 सीटों पर पिछले चुनाव में जीत का अंतर 10,000 वोटों से भी कम था. 2019 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने इन 32 में से 18 सीटों पर चुनाव लड़ा था. कई जगहों पर उसने दूसरे दलों का खेल बिगाड़ दिया था.
आखिरी खेल कैसे बनता या बिगड़ता है?
खेल कैसे बनता या बिगड़ता है, इसके लिए ये तीसरा आंकड़ा देखिए. सिरसा में गोपाल कांडा 602 वोट से जीते थे. जबकि AAP को 868 वोट मिले थे. हरियाणा की बदखल सीट पर हार जीत का अंतर 2 हजार 545 वोट का था और AAP के उम्मीदवार को 9481 वोट मिले थे. एक और सीट का उदाहरण देखिए. फरीदाबाद NIT सीट पर जीत का अंतर 3 हजार 242 वोट का था और आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को 3 हजार 240 वोट मिले थे. यानी इन तीन सीटों के उदाहरण से आप समझ लीजिए कि अगर इस बार ऐसी ही कई और सीटों पर केजरीवाल की पार्टी के उम्मीदवार थोड़ा मजबूती से लड़े तो भले वो ना जीतें लेकिन बहुतों की जीत हार का तराजू ऊपर नीचे कर सकते हैं.
जीत को हार में बदल सकता है AAP को मिला वोट
अब चौथा प्वाइंट समझिए. हरियाणा में 2019 विधानसभा चुनाव में 13 सीटें ऐसी थीं जहां दो उम्मीदवारों में सीधी टक्कर थी. 46 सीटें ऐसी थीं, जहां त्रिकोणीय लड़ाई थी और 24 सीटों पर चतुष्कोणीय यानी चार उम्मीदवारों के बीच सीधी टक्कर थी. यानी हरियाणा में ज्यादातर सीटें ऐसी हैं जहां दो से ज्यादा उम्मीदवारों में टक्कर होती है. ऐसी ही सीटों पर जीत हार का अंतर कम होता है और ऐसी ही सीटों पर AAP को मिला वोट किसी की जीत को हार में बदल सकता है.