scorecardresearch
 

पुण्यतिथि: जानें- व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के बारे में..

जानें- हिंदी साहित्य के सबसे बड़े व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के बारे में... ऐसे की थी लिखने की शुरुआत..

Advertisement
X
Harishankar Parsai
Harishankar Parsai

हमारे देश के दिग्गजों ने व्यंग्य को लेकर नए कीर्तिमान रचे जिन्होंने व्यंग्य को हल्के-फुल्के होने के भाव से उठाकर नई पहचान दिलाते हुए लोकप्रिय बनाया है और उनमें से एक व्यंग्यकार हैं हरिशंकर परसाई. उनका निधन आज ही के रोज 22 अगस्त 1995 में हुआ था. आज उनकी 63वीं पुण्यतिथि है. आइए जानते हैं उनके बारे में..

जीवन परिचय

हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त 1924 को मध्य प्रदेश के इटारसी के पास जमाली में हुआ. गांव से शुरुआती शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे नागपुर चले आए थे. 'नागपुर विश्वविद्यालय' से उन्होंने एम. ए. हिंदी की परीक्षा पास की. कुछ दिनों तक उन्होंने छात्रों को पढ़ाया. इसके बाद उन्होंने स्वतंत्र लेखन शुरू कर दिया. उन्होंने जबलपुर से साहित्यिक पत्रिका 'वसुधा' का प्रकाशन भी किया, परंतु घाटा होने के कारण इसे बंद करना पड़ा.  हरिशंकर परसाई जी ने खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को बहुत ही बारीकी से पकड़ा है. उनकी भाषा-शैली में खास किस्म का अपनापन है, जिससे पाठक यह महसूस करता है कि लेखक उसके सामने ही बैठा है.

Advertisement

नोबेल जीतने वाले पहले भारतीय थे टैगोर, 2 देशों को दिए राष्ट्रगान

साहित्यिक परिचय

परसाई के कुछ मशहूर निबंध संग्रह हैं, जिसमें 'तब की बात और थी', 'भूत के पांव पीछे', 'बेईमानी की परत', 'पगडंडियों का जमाना', 'सदाचार का ताबीज', 'वैष्णव की फिसलन', 'विकलांग श्रद्धा का दौर', 'माटी कहे कुम्हार से', 'शिकायत मुझे भी है' और अन्त में, 'हम इक उम्र से वाकिफ हैं' शामिल हैं. 

दीनदयाल उपाध्याय: हिंदू धर्म को माना भारतीय संस्कृति, ये था मुगलसराय स्टेशन से कनेक्शन

परसाई ने 'ठिठुरता लोकतंत्र' में लिखा,' स्वतंत्रता-दिवस भी तो भरी बरसात में होता है. अंग्रेज बहुत चालाक हैं. भरी बरसात में स्वतंत्र करके चले गए. उस कपटी प्रेमी की तरह भागे, जो प्रेमिका का छाता भी ले जाए. वह बेचारी भीगती बस-स्टैंड जाती है, तो उसे प्रेमी की नहीं, छाता-चोर की याद सताती है. स्वतंत्रता-दिवस भीगता है और गणतंत्र-दिवस ठिठुरता है.

Advertisement
Advertisement