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ज्यादा शक्की होना भी मेंटल ड‍िसऑर्डर? ये हैं 9 तरह के भ्रम जो डालते हैं पर्सनैलिटी में खराब असर

पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका के आपसी रिश्तों में प्यार के बाद सबसे जरूरी शर्त है विश्वास. अगर इन रिश्तों में अविश्वास या शक घुस जाए तो ये रिश्तों को धीरे-धीरे खोखला कर देता है. इस शक की शुरुआत अक्सर आत्मविश्वास की कमी और असुरक्षा की भावना से होती है. मगर, यही शक अगर रिश्तों पर हावी होने लगे तो सचेत हो जाइए, ये मेंटल डिसऑर्डर हो सकता है.

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प्रतीकात्मक फोटो (Getty)
प्रतीकात्मक फोटो (Getty)

शालिनी (बदला हुआ नाम) शादी के तुरंत बाद से ही अपने पति पर शक करने लगी थी. उसे लगता था कि पत‍ि का कहीं अफेयर है. दो सालों तक वो लगातार पति के बारे में पता कराती रही. लेकिन कोई ऐसा सबूत नहीं मिला. यहां तक कि उसका फोन कई-कई दिनों तक अपने पास रखा, तब भी वो शक से उबर नहीं पा रही थी. उसका शक उसके जीवन में इस कदर हावी होने लगा कि वो कई काल्पनिक घटनाएं बताने लगी, जैसे कि उसने पति को फलां से बात करते देखा, फलां जगह किसी से मिलते देखा आदि-आदि. इन सब घटनाओं ने पति के साथ साथ उसका जीवन भी कष्टप्रद बना दिया था. शालिनी के घर वाले उसे मनोचिकित्सक के पास ले गए. 

जाने-माने मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि शालिनी का केस मेरे पास आया था. उस युवती ने सिर्फ शक के चलते अपना करियर तक छोड़ दिया था. उसके व्यक्त‍ित्व की एक पहचान भी उससे छिन रही थी. असल में उसे डिल्यूजनल डिसऑर्डर यानी भ्रांति संबंध‍ी विकार के सिंप्टम्स थे. इस डिसऑर्डर से ग्रसित व्यक्ति शक के जाल में घुसता ही चला जाता है. ऐसी घटनाएं जो सुनने में असल लगती हैं, लेकिन घट‍ित नहीं हुई होती हैं, ऐसी तमाम घटनाएं वो बताता है. इस डिसऑर्डर का श‍िकार स्त्री व पुरुष कोई भी हो सकता है. 

क्‍या है मनोचिकित्‍सक का कहना

IHBAS दिल्ली के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि अगर आपको भी भीतर से यह पता है कि रिश्ते में शक की गुंजाइश नहीं है, फिर भी आप शक करने की अपनी आदत में कंट्रोल नहीं कर पाते या पाती हैं, तो आपको इसके बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए. ये डिल्यूजनल डिसऑर्डर का एक लक्षण भी हो सकता है. इस डिसऑर्डर से ग्रसित व्यक्त‍ि किसी एक मनगढंत वास्तविकता पर झूठा विश्वास करने लगता है. ड‍िल्यूजन एक अजीबोगरीब स्थ‍िति होती है. इसमें सामने वाले को बाहरी वास्तविकता पर एक अलग तरह का गलत विश्वास हो जाता है, भले ही उस वास्तविकता के गलत होने के सारे सबूत मौजूद हैं.

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डॉ सत्ययकांत कहते हैं कि ड‍िल्यूजनल डिसऑर्डर यानी भ्रांति संबंधी विकार को पहचानने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि जब कोई व्यक्ति ऐसी स्थ‍ितियों की बात करे जो वास्तविक जीवन में घट‍ित हो सकती हैं, लेकिन उसके जीवन में वो वास्तविकता में नहीं घटी नहीं हैं, तो सचेत हो जाएं. यदि लगातार एक महीने या उससे अधिक के लिए ऐसे भ्रमपूर्ण विचार आते हैं, जो वास्तविकता में हैं ही नहीं तो उसे डॉक्‍टर की मदद लेनी चाहिए. वैसे तो सिजोफ्रेनिया, ओसीडी, बाइपोलर डिसऑर्डर, डिप्रेशन आदि सभी मरीजों में शक के लक्षण होते हैं, लेकिन मनोचिकित्सक साइकोलॉजिकल परीक्षण से ये पता लगाते हैं कि मरीज में आ रहे लक्षण किस रोग या डिसऑर्डर से संबंध‍ित हैं. 

9 प्रकार का होता है ये डिल्यूजन डिसऑर्डर

डिल्यूजनल जेलेसी - जब व्यक्ति को लगातार इस बात के ख्याल आते हैं कि उसका यौन साथी विश्वासघाती है. वो उसे धोखा दे रहा है.

बिज़ार (Bizzare) - एक भ्रम जिसमें ऐसी घटना शामिल है जो असंभव है, आम व्यक्त‍ि के समझ में भी नहीं आती है, और सामान्य जीवन से संबंधित नहीं है. जैसे किसी को लगता है कि उसने ईश्वर से बात की या उससे ब्याह कर लिया है. कई बार ऐसे लोग अंधविश्वास में बुरी तरह डूब जाते हैं. 

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इरोटोमैनिक - एक ऐसा भ्रम है जिसमें लगता है कि उससे ऊंची स्थ‍िति वाला व्यक्त‍ि उसके प्यार में है. इससे संबंध‍ित घटनाएं वो क्र‍िएट करता है और उसे विस्तारित करता है. 

भव्यता (Grandiose)- इसमें व्यक्त‍ि को खुद के भीतर एक अद्भुत शक्त‍ि, कोई अलौकिक ज्ञान या प्रत‍िभा होने का भ्रम होता है. उसे ऐसा भी लगता है कि किसी महान प्रतिभा जैसे देवी देवता या कोई सेलिब्र‍िटी उससे प्रभाव‍ित है.

परसेक्यूटरी - इसमें व्यक्ति को लगता है कि कोई मेन कैरेक्टर चाहे वो घर का मुख‍िया हो कोई सामाजिक हस्ती वगैरह, उसके खिलाफ साजिश रची जा रही है, हमला किया जा रहा है, परेशान किया जा रहा है, उसके जीवन में बाधाएं डाली जा रही हैं.

सोमैट‍िक - इसमें व्यक्त को शारीरिक कार्य और अपनी संवेदनाओं को लेकर भ्रम की स्थ‍ित‍ि बनती है.

मिक्स्ड- इस भावना में कोई एक थीम भ्रम का हिस्सा नहीं होती, बल्क‍ि एक से ज्यादा भावनाएं होती हैं.

थॉट ब्रोडकास्ट‍िंग - यह भ्रम कि मेरे विचार दूसरों द्वारा प्रोजेक्ट किए जाते हैं. उसे लगता है कि जो वो सोच रहा है, उस विचार को कोई पहले ही जान जाता है. 

थॉट इनसर्शन - एक ऐसा भ्रम कि उसका अमुक विचार उसका अपना नहीं है, बल्कि किसी बाहरी स्रोत या संस्था द्वारा उसके दिमाग में डाला गया है.

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क्या होती हैं वजहें और इलाज 
सिज़ोफ्रेनिया की तुलना में यह दुर्लभ है. ये बाद की उम्र में शुरू होता है. सिजोफ्रेनिया में भी शक का लक्षण सबसे प्रबल दिखता है लेकिन डिल्यूजन विकार से ग्रसित लोग सामान्य जिंदगी जीते हैं. लेकिन उनके व्यक्त‍ित्व पर ये डिसऑर्डर बेहद खराब असर डालता है. लोग ऐसे लोगों से दोस्ती करने से बचते हैं, फिलहाल इसके सटीक कारण अभी तक पता नहीं चले हैं. फिर भी एक्सपर्ट ये कुछ कारण मानते हैं- 

डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि अभी तक हुए अध्ययनों में ऐसा देखा गया कि कई बायोलॉजिकल कंडीशंस जैसे सब्सटेंस यूज, मेडिकल कंडीशंस, नर्व रिलेटेड कंडीशंस डिल्यूजन पैदा कर सकतीहैं. कई बार हाइपरसेंसिटिव व्यक्ति और ईगो सेफ्टी मेकैनिज्म वाले व्यक्त‍ित्व वाले इससे प्रभावित होते हैं. कई बार सामाजिक अलगाव, ईर्ष्या, अविश्वास, संदेह और कम आत्म-सम्मान कुछ ऐसे कारक हैं जो असहनीय होने पर एक व्यक्ति को स्पष्टीकरण की तलाश में ले जाते हैं और इस प्रकार समाधान के रूप में उसके मष्त‍िस्क में भ्रम पैदा करते हैं. 

डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि वैसे तो इसका इलाज काफी मुश्क‍िल माना जाता है, क्योंकि इस तरह के मरीजों में डॉक्टर रोगी संबंध इतना बेहतर समझदारी भरा बनना मुश्क‍िल होता है. लेकिन मनोचिकित्सा को साइकोफार्माकोलॉजी के साथ जोड़कर उपचार की प्रतिक्रिया बेहतर होती है. इसमें दवाओं के साथ काउंसिलिंग की भी मदद ली जाती है. 

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