'भारत सरकार ने पद्मश्री सम्मान से सम्मानित करने की घोषणा की, तब मुझे लगा कि आसमान से मेरे पिताजी स्वर्गीय राजेंद्र प्रसाद मुस्कुराते हुए मुझे देख रहे हैं, जैसे कह रहे हों कि बेटा तू अभी और आगे बढ़, मंजिल तो अभी तेरी बहुत ही दूर है और अपनी अंतिम सांस तक कुछ ऐसा प्रयास कर कि मेरे देश के किसी भी मां-बाप को यह कष्ट न उठाना पड़े कि पैसे के अभाव में उनके बेटे-बेटियों कि पढ़ाई न छूट जाए.'
अपने लिए पद्मश्री की घोषणा पर सोशल मीडिया पर आनंद कुमार ने जो लिखा, यही शब्द उनकी पहचान हैं. गरीब बच्चों के सपने पूरा कराने के सफर पर निकले गणितज्ञ और शिक्षक आनंद कुमार को आज एक बड़ा मुकाम मिला है. एक गरीब परिवार में जन्मे आनंद कुमार की पूरी जिंदगी संघर्षों से भरी है. आज इस मौके पर आइए जानते हैं, एक गणितज्ञ के सुपर 30 कोचिंग के जरिये एक ऐसा शिक्षक बनने की कहानी, जिसने जो कहा-कर दिखाया.
गणित ने दिलाए सबसे ज्यादा मौके
01 जनवरी 1973 को आनंद कुमार का जन्म बिहार की राजधानी पटना में हुआ था. एक निम्न मध्यम वर्ग के परिवार से ताल्लुक रखने वाले आनंद के पिता डाक विभाग में क्लर्क थे. बचपन में आनंद का दूसरे बच्चों की तरह ही हिंदी माध्यम के सरकारी स्कूल में एडमिशन करा दिया गया. आनंद ने शुरुआती शिक्षा पूरी करने के बाद पटना के बीएन कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली.
आनंद को सबसे ज्यादा पहचान उनके गणित के प्रति विशेष लगाव ने दिलाई. वो बचपन से ही गणित में बहुत तेज थे. उनकी प्रतिभा के कारण उन्हें कैंब्रिज और शेफ़ील्ड विश्वविद्यालयों में पढ़ने के मौके थे. लेकिन, पिता की मृत्यु और आर्थिक तंगी ने उन्हें मजबूर कर दिया. वो आगे की पढ़ाई के लिए बाहर नहीं जा सके. अपने परिवार की दिक्कतों और संघर्ष करते हुए भी उन्होंने स्नातक में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया. स्नातक की पढ़ाई के दौरान आनंद कुमार ने अपनी नंबर थ्योरी पर जो पेपर जमा किए. वही पेपर बाद में मैथमेटिकल स्पेक्ट्रम और मैथमेटिकल गजट नाम के अखबार में भी प्रकाशित हुए.
संघर्षों भरी रही जिंदगी
आनंद कुमार शिक्षक बनने का सपना देखने लगे थे. लेकिन घर की माली हालत इतनी अच्छी नहीं थी. उनके पिता की मृत्यु के बाद संघर्ष के हालात एकदम अलग थे. इन्हीं दिनों में उनकी मां ने घर पर एक छोटी सी पापड़ की दुकान खोली. दिनभर दुकान खुलती थी, फिर और पैसा कमाने के लिए वो शाम के समय लोगों के यहां डिलीवरी भी किया करते थे.
उनके सपनों की राह में हालातों ने रोड़ा अटका दिया था. पारिवारिक स्थिति और आर्थिक तंगी के कारण उन्होंने तीसरी श्रेणी की नौकरी के प्रस्ताव को अपनाया. फिर भी वो अपने सपनों को नहीं छोड़ना चाहते थे. इस सपने को वो दूसरे छात्रों के जरिए पूरा करने की सोचने लगे. गणित पढ़ाने के अपने शौक के कारण, आनंद ने प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए छात्रों को पढ़ाने के लिए कोचिंग संस्थान शुरू किया. शुरूआती दौर में केवल 2 छात्र थे और फिर बाद में साल के अंत तक गिनती बढ़कर 36 हो गई. वह 1000 रुपये की बेहद कम फीस पर छात्रों को सालाना कोचिंग देने लगे थे. देखा जाए तो उस दौर में 6000 रुपये की प्रचलित फीस से ये बहुत कम थी.
कुछ बातें जो बनाती हैं अलग
आनंद कुमार खुद जिस तरह के बैकग्राउंड से आए थे, वो अपने जैसे बच्चों के जीवन संघर्ष को बेहतर समझते थे. ये किस्सा साल 2000 का है, जब एक छात्र आनंद के पास आया. उसने कहा कि वह फीस नहीं दे सकता है लेकिन IIT-JEE परीक्षा की तैयारी करना चाहता है. यही वो दिन था जब आनंद कुमार ने ऐसे छात्रों को सपोर्ट करने का फैसला किया जो वंचित थे. जो प्रतिभाशाली तो थे लेकिन बड़े बड़े कोचिंग संस्थानों से आईआईटी-जेईई परीक्षा के लिए तैयारी नहीं कर सकते थे. इसी सोच के चलते 2002 में 'सुपर 30' की नींव पड़ी.
क्या है सुपर-30
'सुपर 30' कोचिंग का आइडिया अनूठा था और हिट भी. यहां गरीब परिवारों के सर्वश्रेष्ठ और उत्कृष्ट दिमाग वाले टॉप 30 छात्रों का चयन किया जाता था.एक साल के लिए स्टडी मटेरियल के साथ मुफ्त भोजन और रहने की व्यवस्था की जाने लगी. हुआ ये कि ये सुपर-30 बैच आईआईटी जेईई में सेलेक्ट होने लगा. कुछ सालों में उनके पढ़ाए सैकड़ों छात्रों ने अपने पहले प्रयास में ही परीक्षा को क्लियर करके इतिहास रचा और आईआईटीज में एडमिशन लिया. उनकी सुपर-30 की चर्चा पूरे देश में होने लगी. देश के कोने कोने से यहां बच्चों के आवेदन आने लगे. बीबीसी ने भी उन पर डॉक्यूमेंट्री बनाई.
वर्ष 2008 से 2012 तक, उनके संस्थान ने 30 में से लगातार 30 चयन दिए, जो किसी भी संस्थान द्वारा हासिल किया गया एक प्रमुख बेंचमार्क था. फिर साल 2003 से उन्होंने 450 छात्रों को पढ़ाया, जिनमें से 391 छात्रों ने IIT-JEE परीक्षा उत्तीर्ण की. इस उपलब्धि को कारण आनंद के 'सुपर 30' कार्यक्रम को एशिया 2010 के सर्वश्रेष्ठ खंड में 'टाइम' मैग्जीन में लिस्टेड किया गया.
तमाम पुरस्कार और रिकॉर्ड उनके नाम होने लगे. विदेशों तक आनंद कुमार की ख्याति फैलने लगी थी. ब्रिटिश कोलंबिया सरकार, कनाडा सरकार और साथ ही जर्मनी के शिक्षा मंत्रालय से आनंद कुमार पुरुष्कृत हुए. साल 2017 में बाल दिवस के अवसर पर उन्हें वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा 'राष्ट्रीय बाल कल्याण' पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उनके संघर्ष पर बॉलीवुड में सुपर-30 फिल्म भी बनी है. अब पद्मश्री मिलने के बाद उन्हें देश-विदेश से उनके छात्र बधाई दे रहे हैं.
सम्मान मिलने पर जताई खुशी
पद्म श्री सम्मान मिलने के बाद सुपर 30 के आनंद कुमार ने खुशी जताई है. उन्होंने कहा, 'ऐसा लग रहा जैसे गुरु दक्षिणा मिल गई हो. पद्म श्री सम्मान ने मेरी जिम्मेदारी और बढ़ा दी है. छात्रों के लिए ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों मोड में नया प्रोजेक्ट लेकर आऊंगा. गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देंगे. पीएम मोदी ने परीक्षा पे चर्चा का आयोजन कर मिसाल कायम की है. बिहार सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में और काम करना चाहिए. पद्म श्री सम्मान मिलने के बाद मेरी मां और परिवार वाले खुश हैं.'
(शशि शर्मा के इनपुट के साथ)