जेंडर न्यूट्रल यानी लैंगिक तटस्थता, एक ऐसा मुद्दा जिस पर पूरी दुनिया सोच रही है. भारतीय समाज में हमेशा हाशिये पर रहे ट्रांसजेंडर समुदाय को लैंगिक भेदभाव से मुक्त कराने के लिए ये एक सशक्त कदम है. राष्ट्रीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने भी अब देशभर के स्कूलों में इस नये बदलाव को लाने को कहा है.
इसके लिए एनसीईआरटी ने नई गाइडलाइन जारी की हैं जो ट्रांसजेंडर स्टूडेंट्स को स्कूलों में होने वाली परेशानियों पर केंद्रित है. नई गाइडलाइन में ट्रांसजेंडर स्टूडेंट्स को कई तरह से सहूलियतें देने की बात की गई है. इसमें स्कूलों को रेगुलर वर्कशॉप, आउटरीच प्रोग्राम और जेंडर न्यूट्रल यूनिफॉर्म (Gender Neutral Uniform) रखने का सुझाव दिया है. ये गाइडलाइन एनसीपीसीआर की सिफारिश पर जारी हुए हैं.
अभी NCERT की नई गाइडलाइन के आधार पर यह तय नहीं हुआ है कि आखिर ये यूनिफॉर्म कैसी होगी लेकिन इस पर चर्चा अभी से शुरू हो गई है. aajtak.in ने इस मुद्दे पर कुछ छात्राओं से बातचीत की, जिस पर लड़कियों का कहना है कि जेंडर न्यूट्रल यूनिफॉर्म में कोई ऐसी ड्रेस नहीं होनी चाहिए जो एक जेंडर को ही दर्शाए.
लड़कियों का सोचना है कि स्कूल इस गाइडलाइन को फॉलो करते हुए सभी के लिए पैंट-शर्ट पहनने का नियम लागू कर सकते हैं. लड़कियों का कहना है कि अगर ऐसा हुआ तो ये तो मेल डॉमिनेंट यूनिफॉर्म होगी न कि इसे जेंडर न्यूट्रल कहा जा सकेगा. वहीं कुछ छात्राओं ने इसे बहुत ही अच्छा कदम बताया है, भले ही वो कुछ भी हो.
लड़कियां बोलीं- स्कर्ट न हो तो मेस्कुलिन भी न हो यूनिफॉर्म
एल्कॉन इंटरनेशनल स्कूल में 11वीं की छात्रा आकर्षी का कहना है कि यह काफी अच्छा डिसिजन है, यूनिफॉर्म जेंडर न्यूट्रल होनी ही चाहिए. ट्रांसजेंडर छात्रों के लिए हमें सोचना ही चाहिए, इससे उन्हें एक तरीके से ये फील होगा कि सभी समान हैं. एक तरह से यूनिफॉर्म का नियम ही इसलिए शुरू हुआ ताकि बच्चों में अमीर-गरीब का डिफरेंस खत्म हो लेकिन अब ये विमर्श जब जेंडर तक पहुंचा है तो ये यूनिफॉर्म जेंडर न्यूट्रल होनी चाहिए. सभी स्टूडेंट्स बराबर होने चाहिए. स्कर्ट लड़कियों पर ज्यादा मैच होती है लेकिन लड़कियां कुछ भी पहन लें तो उन्हें ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. लेकिन लड़के कोई ऐसी यूनिफॉर्म नहीं पहनेंगे जो फेमिनिन हो. इसलिए यूनिफॉर्म ऐसी हो जो पूरी तरह मेस्कुलिन भी न हो.
एल्कॉन की ही दूसरी छात्रा समृद्धि कहती हैं कि सलवार या स्कर्ट की जगह पजामा में स्पोर्टस में भी हेल्प मिलती है. अगर हमें पूछेंगी तो ऐसा ओपन माइंडसेट हो गया कि हमें इससे फर्क नहीं पड़ता. लेकिन लड़कों को सोसायटी ने ऐसा बनाया है कि उनके ड्रेस कोड को आसानी से चेंज नहीं कर सकते हैं. लड़कियां पैंट पहनें तो कूल लेकिन लड़कों को स्कर्ट पहननी हो तो उसे फनी माना जाता है. सिनेमा और समाज सभी ने इसे ऐसे ही पोट्रेट किया है तो हम ऐसी मांग भी नहीं कर सकते कि लड़कों की यूनिफॉर्म लड़कियों वाली हो, लेकिन इसके लिए मुझे लगता है कि कोई पैंट के ऊपर कुर्ता टाइप ड्रेस हो सकती है जो सभी पहन सकते हैं. या फिर स्कूल में स्कर्ट या पैंट च्वाइस के हिसाब से यूनिफॉर्म होनी चाहिए. इसमें ट्रांसजेंडर भी अपनी च्वाइस से पहन सकेंगे, उसमें कलर कोड कॉमन होना जरूरी है.
पैसिफिक वर्ल्ड स्कूल की 11वीं कक्षा की छात्रा अन्वी दीक्षित ने कहा कि लड़के- लड़कियां स्कूल में एक जैसी पोशाक पहनेंगे, यह सुनकर अच्छा लग रहा है. इस पोशाक की सबसे अच्छी बात यह हो कि यह ठंड के दिनों में ज्यादा आरामदायक हो. साथ ही भावनात्मक रूप में देखें तो इससे ट्रांस छात्रों को समानता का अनुभव मिलेगा. हमारे अभिभावक और विद्यालय के शिक्षकगणों को भी लग रहा है इससे विद्यालय में ज्यादा समानता रहेगी. साथ ही मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि जब से मेरा स्कूल शुरू हुआ है यहां लड़के व लड़कियों की सर्दियों की पोशाक समान है. साथ ही हमारी सर्दियों की हाउस ड्रेस भी एक समान है.
केरल में ये थी जेंडर न्यूट्रल यूनिफॉर्म
बता दें कि भारत के लिए जेंडर न्यूट्रल यूनिफॉर्म का मुद्दा नया नहीं है. इससे पहले बीते साल 2021 में केरल के एर्नाकुलम जिले के पेरुम्बवूर के पास वलयनचिरंगारा सरकारी लोअर प्राइमरी स्कूल में जेंडर न्यूट्रल यूनिफॉर्म का नियम लागू किया था. यहां 754 छात्रों के लिए एक नई यूनिफॉर्म पेश की थी जिसमें 3/4 शॉर्ट्स और शर्ट लड़के और लड़कियों दोनों के लिए लागू की गई थी. इसमें स्थानीय अभिभावक संघ ने भी अपनी सहमति दी थी.
यूनिफॉर्म से ज्यादा सोच बदलने की जरूरत
इस बारे में दिल्ली अभिभावक संघ की अध्यक्ष अपराजिता गौतम का कहना है कि स्कूलों की यूनिफॉर्म बदलने से ज्यादा जरूरी है बच्चों को इस कम्यूनिटी की वर्तमान स्थिति उनकी समस्याओं और जरूरतों के प्रति जागरूक करना. ट्रांसजेंडर कम्यूनिटी को लेकर अगर बच्चों में संवेदनशीलता आएगी तो वो उन्हें बेहतर ढंग से समझेंगे और अपनाएंगे. एनसीईआरटी इस दिशा में जो भी प्रयास कर रही है, उसे जरूर सराहा जाना चाहिए.
जुड़ेंगे नये टॉपिक्स भी
एनसीईआरटी गाइडलाइंस में न सिर्फ यूनिफॉर्म की बात कही गई है, बल्कि पाठ्यक्रमों में कई नए टॉपिक्स जोड़कर जाति और पितृसत्तात्मकता व्यवस्था पर जोर न देने को कहा है. एनसीईआरटी के नये मसौदे का टाइटल ‘Integrating Transgender Concerns in Schooling Processes’ है.
ट्रांसजेंडर छात्रों के लिए अलग टॉयलेट
NCERT की नई गाइडलाइन में टॉयलेट के मुद्दे पर कहा गया है कि स्कूलों में ट्रांसजेंडर स्टूडेंट्स के लिए खास तरह के टॉयलेट होने चाहिए. NCERT के नये मसौदे में लिखा है कि अगर किसी स्कूल में विशेष जरूरत वाले बच्चों (CWSN) के लिए टॉयलेट हैं तो इसका इस्तेमाल भी ट्रांसजेंडर स्टूडेंट्स कर सकते हैं.