दिल्ली सरकार ने प्राइवेट स्कूलों में फीस बढ़ोतरी को कंट्रोल करने और पैरेंट्स के अधिकारों को लेकर विधानसभा में एक बिल पेश किया है. यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब कुछ ही दिन पहले पैरेंट्स ने जंतर-मंतर पर निजी स्कूलों की ओर से फीस वसूली में ट्रांसपेरेंसी की मांग को लेकर प्रदर्शन भी किया था. ऐसे में सवाल है कि जब ये बिल पास होगा तो प्राइवेट स्कूलों में फीस को लेकर नियम कितने बदल जाएंगे और किस तरह फीस में बढ़ोतरी को कंट्रोल किया जाएगा...
बता दें कि लंबे वक्त से स्कूलों और पैरेंट्स ग्रुप के बीच फीस बढ़ोतरी का विवाद चल रहा है. यह मामल इसी महीने चरम पर पहुंच गया था, जब एक स्कूल ने फीस विवाद को लेकर कई छात्रों को निष्कासित कर दिया था. इसके बाद ये मामला हाईकोर्ट पहुंचा, जिसने स्कूल को छात्रों को वापस लेने का आदेश दिया. वहीं, पैरेंट्स को अगली सूचना तक विवादित बढ़ोतरी का 50 फीसदी भुगतान करने को कहा.
क्या होगा बदलाव?
अभी भी खुश नहीं हैं पैरेंट्स
प्राइवेट स्कूलों में फीस से जुड़े इस बिल को लेकर अभी भी कुछ मुद्दों पर पैरेंट्स खुश नजर नहीं आ रहे हैं. दिल्ली पैरेंट्स एसोसिएशन की अध्यक्ष अपराजिता गौतम का कहना है कि बिल कहता है कि प्रॉफिट और कमर्शियलाइजेशन को रोका जाएगा, लेकिन असल में यह उन्हें कानूनी जामा पहनाने का प्रयास है. उन्होंने बताया, 'किसी स्कूल कमिटी के खिलाफ शिकायत तभी मानी जाएगी जब कम से कम 15% पेरेंट्स एक साथ बोलें. यानी, व्यक्तिगत पेरेंट्स कुछ नहीं कर सकते. सेक्शन 2(6) में स्कूल द्वारा डायरेक्ट और इनडायरेक्ट रूप से ली गई फीस को वैध बताया गया है, जो गलत है.'
उन्होंने बताया, 'नए नियमों के हिसाब से टर्म फीस 12 की जगह 13 महीनों की ली जाएगी. इसके अलावा प्ले स्कूलों को बिल से बाहर रखा गया, जबकि ये सबसे ज्यादा चार्ज करते हैं और अब तक किसी रडार में नहीं हैं. वही, कमेटी में 11 लोग होंगे, जिसमें अधिकांश मैनेजमेंट से जुड़े होंगे. फैसले पहले ऊपर (मैनेजमेंट कमिटी) में लिए जाएंगे. बिल के सेक्शन 17 में कहा गया है कि सिविल कोर्ट की जूरिस्डिक्शन नहीं होगी, यानी, पेरेंट्स कोर्ट भी नहीं जा सकते.' साथ ही पैरेंट्स ने मांग की है कि इसमें कैंपिग की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि फीस की अधिकतम सीमा तय हो.