दिल्ली के सराय काले खां चौक (Sarai Kale Khan ISBT Chowk) को नाम बदल दिया गया है. अब इसे बिरसा मुंडा चौक के नाम से जाना जाएगा. इसकी घोषणा शहरी मामलों के मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने की. सराय काले खां (अब बिरसा मुंडा चौक) दिल्ली के आईएसबीटी के पास है. केंद्र सरकार ने बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर बदलने की घोषणा की. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने 'जनजातीय गौरव दिवस' के रूप में मनाई जा रही है बिरसा मुंडा की जयंती पर बांसेरा उद्यान में उनकी भव्य प्रतिमा का अनावरण किया.
इस मौके पर गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, 'बिरसा मुंडा ने जल, जंगल और जमीन के संस्कार को पुनर्जीवित किया और कहा कि आदिवासियों के लिए यही सब कुछ है. वह समाज में कई प्रकार की जागरूकता लाए.'
उन्होंने आगे कहा कि साल 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिरसा मुंडा की जयंती को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा थी. आज ही के दिन झारखंड के एक छोटे से गांव में बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था. बिरसा मुंडा की 150वें जयंती वर्ष पर केंद्र सरकार ने सराय काले खां चौक का नाम बदलकर 'बिरसा मुंडा चौक' करने का निर्णय लिया है. आइये जानते हैं कौन थे बिरसा मुंडा और उनके योगदान के बारे में.
कौन थे बिरसा मुंडा?
बिरसा मुंडा एक महान आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया था. उन्हें 'उलगू मुंडा' या 'धरती आबा' के नाम से भी जाना जाता है. वे छोटानागपुर के मुंडा जनजाति से थे और उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आदिवासियों को एकजुट किया था. बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को बंगाल प्रेसीडेंसी के रांची जिले के उलिहातु गांव में हुआ था - जो अब झारखंड के खूंटी जिले में है.
बिरसा मुंडा के योगदान
बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को एकजुट करके ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया. आदिवासी धर्म में सुधार किए और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. इसके अलावा उन्होंने जंगलों को बचाने के लिए आंदोलन चलाया और आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा की.
सराय काले खां का नाम बदलकर बिरसा मुंडा चौक क्यों रखा गया?
दिल्ली के सराय काले खां चौक का नाम बदलकर बिरसा मुंडा चौक रखने के पीछे यह विचार था कि बिरसा मुंडा जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी को श्रद्धांजलि दी जाए. यह फैसला उनके योगदान को याद रखने और युवा पीढ़ी को उनके बारे में प्रेरित करने के लिए लिया गया था.
काले खां कौन थे?
काले खां 14वीं शताब्दी के एक सूफी संत थे जिनके नाम पर इस चौक का नाम रखा गया था. शेरशाह सूरी के समय (1472 से 1545 तक) जन्मे काले खां का नाम मुगल शासन काल में दिल्ली में स्थित इस आश्रय स्थल यानी सराय के साथ जोड़ दिया गया और इसके साथ ही यह सराय काले खां कहा जाने लगा. दिल्ली में इंदिरा गांधी एयरपोर्ट के रास्ते में सूफी संत काले खां की मजार भी है.
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