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भारत का पड़ोसी भूटान... कैसे बना दुनिया का पहला कार्बन नेगेटिव देश

Bhutan carbon negative country
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भूटान दुनिया का पहला कार्बन नेगेटिव देश है. इस छोटे से देश के प्रधानमंत्री शेरिंग तोबगे ने बताया कि कैसे उनका देश कार्बन नेगेटिव बन पाया है.  शेरिंग तोबगे ने कहा कि उनका देश जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अपने हिस्से से कहीं अधिक काम कर रहा है.भूटान के प्रधानमंत्री के अनुसार, जलवायु संकट के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार धनी पश्चिमी देश हैं. पर्यावरण संरक्षण और कार्बन उत्सर्जन में कटौती को प्राथमिकता देकर उन्हें अपने नागरिकों के स्वास्थ्य में सुधार करना चाहिए. (Photo- Pexels)
 

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भूटान के लोगों को जाता है कार्बन नेगेटिव होने का श्रेय
पूर्वी हिमालय में स्थित लोकतांत्रिक राजतंत्र और जैव विविधता का केंद्र भूटान, दुनिया के सबसे महत्वाकांक्षी क्लाइमेट लीडर में से एक है. भूटान के पीएम का कहना है कि आज कार्बन नेगेटिव होने का श्रेय हमारे लोगों के प्रकृति के साथ जुड़ाव और सकल घरेलू उत्पाद के बजाय सकल राष्ट्रीय खुशी में सुधार लाने पर फोकस मजबूत राजनीतिक इच्छा शक्ति को जाता है. (Photo- Pexels)
 

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जीडीपी से ज्यादा लोगों की खुशी पर केंद्रित है विकास एजेंडा
तोबगे ने गार्जियन के साथ एक इंटरव्यू में बताया कि अपने सीमित संसाधनों और विशाल भौगोलिक चुनौतियों के बावजूद, हम क्लाइमेट एक्शन, सामाजिक प्रगति, सांस्कृतिक संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देने में कामयाब रहे हैं. क्योंकि हमारे लोगों और हमारी आने वाली पीढ़ियों की खुशी और भलाई हमारे विकास एजेंडे के केंद्र में है.(Photo- Pexels)
 

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अगर हम ऐसा कर सकते हैं तो विकसित क्यों नहीं?
उन्होंने कहा कि अगर हम ऐसा कर सकते हैं, तो ज़्यादा संसाधनों और राजस्व वाले विकसित और समृद्ध देश अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करने और जलवायु संकट से लड़ने के लिए और भी बहुत कुछ कर सकते हैं और उन्हें ऐसा करना भी चाहिए. (Photo- Pexels)
 

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कम विकसित देशों की श्रेणी से निकल चुका है बाहर
भूटान भारत और चीन के बीच स्थित एक छोटा सा देश है. इसकी जनसंख्या 7,50,000 है. इनमें से लगभग आधे कृषक हैं. 2023 में, यह संयुक्त राष्ट्र की सबसे कम विकसित देश (LDC) श्रेणी से बाहर निकलने वाला सातवां देश बन जाएगा. इसका श्रेय गरीबी उन्मूलन, शिक्षा और जीवन प्रत्याशा जैसे क्षेत्रों में लोकतंत्र में परिवर्तन के बाद पिछले तीन दशकों में हुई उल्लेखनीय प्रगति को जाता है. (Photo- Pexels)
 

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भूटान ने आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए पर्यावरणीय नियमों को कभी नहीं तोड़ा. उल्टा मानकों को कड़ा करके और हवा, पानी और ज़मीन की गुणवत्ता को प्राथमिकता देकर कार्बन नेगेटिव बना. टोबगे ने कहा कि हमारे लिए, सकल राष्ट्रीय खुशी ही लक्ष्य है, और जीडीपी सिर्फ़ एक साधन है. जिसका अर्थ है कि आर्थिक विकास हमारे लोगों की खुशी और भलाई के लिए हानिकारक नहीं हो सकता.(Photo- Pexels)
 

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जंगल से ढंका है भूटान का 72% हिस्सा 
भूटान ने वैश्विक तापमान में नगण्य योगदान दिया है, और इसका 72% भूभाग वनों से ढंका हुा है. यह इसे एक महत्वपूर्ण कार्बन सिंक बनाता है. क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर के अनुसार , यह उन गिने-चुने देशों में से एक है जिनकी योजनाएं पेरिस समझौते के लक्ष्य, वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर सीमित रखने के लगभग पूरी तरह या  अनुरूप हैं. (Photo- Pexels)
 

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पारंपरिक और धार्मिक तौर से प्रकृति से जुड़े हैं लोग
पर्यावरण और जलवायु संरक्षण पर भूटान का ध्यान केवल संयुक्त राष्ट्र जलवायु प्रक्रिया के प्रति उसकी प्रतिबद्धता से प्रेरित नहीं है. भूटानी लोगों का मानना ​​है कि उनके देवता प्राकृतिक पर्यावरण के सभी हिस्सों में निवास करते हैं. इसका अर्थ है कि जंगल और कुछ जल निकाय प्रतिबंधित हैं और पर्वतारोहण प्रतिबंधित है. भूटान में सबसे ऊंचा, बिना चढ़े पर्वत, गंगखर पुएनसुम स्थित है, जो समुद्र तल से 7,500 मीटर से भी ऊंचा है. (Photo- Pexels)
 

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यहां का संविधान ही पर्यावरण संरक्षण को समर्पित है
इस युवा लोकतंत्र के संविधान का एक पूरा अनुच्छेद पर्यावरण संरक्षण को समर्पित है, जिसके अनुसार देश का कम से कम 60% भाग वनों से आच्छादित होना चाहिए. यह सरकार और प्रत्येक नागरिक को प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा, समृद्ध जैव विविधता के संरक्षण और सभी प्रकार के पारिस्थितिक क्षरण की रोकथाम में योगदान देने का आदेश देता है. (Photo- Pexels)
 

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उत्सर्जन से 5 गुणा ज्यादा कार्बन सोखता है भूटान
तोबगे ने कहा कि हम अपने द्वारा उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा से लगभग पांच गुना अधिक कार्बन डाइऑक्साइड को सोख लेते हैं. हम अपनी जैव विविधता और वनों का ध्यान रख रहे हैं. हम प्रकृति के प्रति सकारात्मक और कार्बन के प्रति नकारात्मक हैं. फिर भी, हम एक स्थल-रुद्ध पर्वतीय देश हैं, इसलिए जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का खामियाजा हमें ही भुगतना पड़ता है. (Photo- Pexels)
 

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फिर भी क्लाइमेट चेंज का भुगतना पड़ रहा खामियाजा
पर्वत श्रृंखलाएं वैश्विक औसत से ज़्यादा तेज़ी से गर्म हो रही हैं. इससे भूटान के ग्लेशियर पिघल रहे हैं और झीलें उफान पर हैं. बाढ़ के कारण किसान समुदाय पहले ही विस्थापित हो चुके हैं और सड़कों के रखरखाव की लागत दोगुनी से भी ज़्यादा हो गई है. (Photo- Pexels)
 

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