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प्‍लेसमेंट सिस्‍टम को दोषी मानते हैं आईआईटी स्‍टूडेंट

हाल ही में 'इंस्‍टीट्यूट स्‍टूडेंट्स मीडिया बॉडी' (Institute's students' media body) द्वारा कराए गए एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि आईआईटी के स्‍टूडेंट कैंपस सेलेक्‍शन को जल्‍द नौकरी में होने वाले बदलाव के लिए दोषी मानते .

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हाल ही में इंस्‍टीट्यूट स्‍टूडेंट्स मीडिया बॉडी (Institute's students' media body) द्वारा कराए गए एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि कैंपस सेलेक्‍शन के माध्‍यम से आईआईटी के 55 प्रतिशत ग्रेजुएट स्‍टूडेंट को अच्‍छी कंपनी में नौकरी मिली. लेकिन एक-दो साल के अंदर ही 35 प्रतिशत ने अपनी जॉब बदल दी. इसके अलावा बाकी बचे लोगों में काफी बड़ा वर्ग अपनी नौकरी को लेकर दुविधा में है. 

इसका कारण पता करने पर आईआईटी समेत कई जाने-माने इंजीनियरिंग कॉलेज कैंपस प्‍लेसमेंट की प्रक्रिया को इन सबका दोषी मानते हैं. क्‍योंकि कैंपस प्‍लेसमेंट के समय सारे स्‍टूडेंट का एक ही नजरिया होता है अच्‍छी नौकरी पाना, जो महीने के अंत में मोटी रकम दे. इन सबके चक्‍कर में खुद की पसंद नपसंद और योग्‍यता को दरकिनार कर दिया जाता है.

इसकी दूसरी बड़ी वजह सर्वे में यह भी निकल कर आई है कि शिक्षा पूरी होते ही अच्‍छी नौकरी का दबाव होता है. सभी यही सोचते है कि बस पढ़ाई पूरी हुई नहीं कि नौकरी दूसरे दिन से शुरू. इन सब के चक्‍कर में अक्‍सर स्‍टूडेंट गलत नौकरी का चुनाव कर बैठते हैं और  इसका खामियाजा उन्‍हें जल्‍द उठाना पड़ता है.

इस सर्वे को 2010, 2011, 2012 बैच के स्‍टूडेंट्स पर किया गया है. इस सर्वे में स्‍टूडेंट्स ने इस बात को खुले तौर पर स्‍वीकारा की नौकरी का मतलब शुरुआती दौर में पैसे से ही होता है.

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