बीते साल 18 दिसंबर को नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्राइब्यूनल (NCLAT) ने टाटा संस को पब्लिक लिमिटेड से प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में कनवर्ट करने की कवायद को 'अवैध' करार दिया था. NCLAT के इस आदेश के बाद रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (RoC) ने एक याचिका दायर कर NCLAT से आदेश में बदलाव करने का अनुरोध किया था.
इस याचिका को NCLAT ने खारिज कर दिया. इसके बाद टाटा संस ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने अब NCLAT के याचिका खारिज के फैसले पर रोक लगा दी है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और संबंधित मंत्रालय से जवाब मांगा है.
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क्या है पूरा मामला?
दरअसल, NCLAT ने अपने आदेश में कहा था कि टाटा संस को पब्लिक से प्राइवेट कंपनी में बदलने का फैसला ‘अवैध’ है. इसके साथ ही NCLAT ने टाटा संस के बर्खास्त चेयरमैन साइरस मिस्त्री को फिर बहाल करने का निर्देश दिया था. इस फैसले पर रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज को आपत्ति थी और उसने याचिका दायर कर दी.
याचिका के मुताबिक 18 दिसंबर को आए आदेश में जरूरी संशोधन किया जाए, ताकि RoC का कार्य गैरकानूनी नहीं दिखे. RoC का तर्क है कि उसने यह कदम कंपनी कानून के प्रावधानों के साथ नियमों के तहत उठाया था. इसके अलावा RoC ने NCLAT से इस आरोप को भी हटाने को कहा है जिसमें कहा गया था कि RoC मुंबई ने टाटा संस की जल्दबाजी में मदद की.
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सितंबर, 2017 में मिली थी मंजूरी
टाटा संस को सितंबर, 2017 में खुद को पब्लिक लि. कंपनी से प्राइवेट लि. कंपनी में बदलने के लिए शेयरधारकों की मंजूरी मिली थी. इससे कंपनी को महत्वपूर्ण फैसलों के लिए शेयरधारकों की मंजूरी की जरूरत नहीं रह गई थी. ऐसे फैसले सिर्फ निदेशक मंडल की मंजूरी से लिए जा सकते थे. यहां बता दें कि टाटा संस, टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी है. फिलहाल टाटा संस में 66 फीसदी हिस्सेदारी टाटा ट्रस्ट की है.
मिस्त्री ने किया था प्रस्ताव का विरोध
इससे पहले जब टाटा संस को पब्लिक से प्राइवेट कंपनी बनाने का प्रस्ताव आया था, उस वक्त के चेयरमैन साइरस मिस्त्री ने इसका विरोध किया था. यहां बता दें कि मतभेदों की वजह से साइरस मिस्त्री को अक्टूबर 2016 में टाटा संस के चेयरमैन पद से हटा दिया गया था. मिस्त्री की बर्खास्तगी के कुछ महीनों बाद ही इस प्रस्ताव को मंजूरी मिली थी.
प्राइवेट और पब्लिक का अंतर
प्राइवेट और पब्लिक कंपनी में कई अंतर है. प्राइवेट पर न तो पब्लिक कंपनी के जैसी रेगुलेटरी पाबंदियां होती हैं, न ही उन्हें हर फैसले के डिस्क्लोजर सार्वजनिक करने पड़ते हैं. वहीं पब्लिक कंपनी को मेंबर्स की जनरल मीटिंग बुलाना जरूरी होता है. साथ ही प्राइवेट कंपनी को इंडिपेंडेंट डायरेक्टर नियुक्त करने की भी जरूरत नहीं होती.