कच्चे तेल की कीमतों में लगातार गिरावट (Crude Oil Price Fall) का सिलसिला जारी है. अंतरराष्ट्रीय मार्केट ये अब फिसलकर 67 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच चुकी है. ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि फ्यूल एक्सपोर्टर देशों के संगठन ओपेक द्वारा क्रूड ऑयल प्रोडक्शन में इजाफा करने को मंजूरी दी जा सकती है, जिससे कीमतों पर दबाव देखने को मिल रहा है और ये टूट रहा है. बता दें कि कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का असर तमाम इसका आयात करने वाले देशों में पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर भी देखने को मिलता है, क्योंकि Petrol-Diesel Price के निर्धारण में क्रूड की कीमतों का भी रोल रहता है.
क्रूड के दाम में लगातार आ रही कमी
बात क्रूड ऑयल के ताजा रेट अपडेट की करें, तो ब्रेड क्रूड ऑयल बीते कारोबारी दिन सोमवार की बड़ी गिरावट मंगलवार को भी टूटकर रेड जोन में ट्रेड कर रहा था. ये लगातार पांचवां कारोबारी दिन है, जबकि क्रूड फिसला है. मंगलवार को क्रूड 0.60% फिसलकर 67.56 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा था. इसके अलावा WTI Crude का दाम घटकर 63.03 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया था. बीते दो महीने में कच्चे तेल की कीमतों में करीब 9 फीसदी से ज्यादा की कमी आ चुकी है.
क्या हैं कच्चे तेल में गिरावट की वजह?
क्रूड ऑयल की कीमतों में गिरावट के पीछे के कारणों पर गौर करें, तो एक नहीं बल्कि कई वजह सामने आती हैं. रिपोर्ट्स की मानें, तो एक ओर जहां ओपेक द्वारा नवंबर के लिए कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाने पर विचार कर रहा है, जिसे लेकर 5 अक्टूबर को OPEC+ की बैठक में फैसला लिए जाने की उम्मीद जताई जा रही है. इसे 1.37 लाख बैरल प्रति दिन तक किए जाने की योजना है. वहीं दूसरा बड़ा कारण इजरायल के गाजा पट्टी में युद्ध रोकने के लिए सहमत होने की खबरों को भी बताया जा रहा है और इस सीजफायर से सप्लाई बढ़ने की आस है. इसके चलते भी कच्चे तेल की कीमतों पर दबाव देखने को मिल रहा है और ये लगातार टूट रही हैं.
पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर कैसे असर?
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट या उछाल का असर इसके खरीदार देशों में पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर भी देखने को मिलता है. एक्सपर्ट्स की मानें, तो भारत के मामले में इंटरनेशनल मार्केट में अगर क्रूड प्राइस एक डॉलर कम होता है, तो फिर देश में पेट्रोल-डीजल का दाम 50 से 60 पैसे तक कम होने की उम्मीद बढ़ जाती है. इसी तरह कच्चे तेल के दाम बढ़ने से पेट्रोल-डीजल की कीमतें भी इसी अनुरूप बढ़ोतरी भी देखने को मिल सकती है.
दरअसल, इसके पीछे वजह ये है कि ऑयल मार्केटिंग कंपनियों द्वारा अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत, एक्सचेंज रेट, टैक्स, पेट्रोल-डीजल के ट्रांसपोर्टेशन का खर्च समेत अन्य खर्चों के आधार पर ही देश में पेट्रोल-डीजल की कीमत निर्धारित की जाती हैं. भारत में साल 2014 तक कीमतों के निर्धारण सरकार करती थी और हर 15 दिन में इसमें संशोधन किया जाता था, लेकिन जून 2014 के बाद से अब तक ये काम तेल कंपनियों के जिम्मे है और कीमतें हर रोज संशोधित की जाती हैं. इसके अलावा फ्यूल प्राइस कम होने से ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट में भी गिरावट आती है और महंगाई घटने की उम्मीद बढ़ती है.