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बदल रही बिहार की इकोनॉमी... मैन्‍युफैक्‍चरिंग सेक्‍टर कर रहा कमाल, देखें ये आंकड़े

बिहार का मैन्‍युफैक्‍चरिंग सेक्‍टर तेजी से ग्रोथ दिखा रहा है. पहली बार ऐसा हुआ है कि बिहार के उद्योग ने एग्रीकल्‍चर सेक्‍टर को पीछे छोड़कर राज्‍य के विकास में ज्‍यादा योगदान दिया है.

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बिहार के मैन्‍युफैक्‍चरिंग सेंक्‍टर में तेज ग्रोथ. (Photo: ITG)
बिहार के मैन्‍युफैक्‍चरिंग सेंक्‍टर में तेज ग्रोथ. (Photo: ITG)

बिहार की अर्थव्यवस्था का स्वरूप बदल रहा है. यहां इंडस्‍टीज सिर्फ पनप ही नहीं रही है, बल्कि अब विकास की बागडोर संभालने लगी है. ऐसा पहली बार हुआ है कि राज्य के आर्थिक उत्पादन में उद्योग की हिस्सेदारी कृषि से आगे निकल गई है. जबकि पहले एग्रीकल्‍चर ही बिहार के विकास में सबसे आगे था. आइए कुछ आंकड़ों में देखते हैं कि बिहार की इकोनॉमी कैसे बदल रही है... 

सबसे पहले ये आंकड़ें देखें 

  • नए परमाणु ऊर्जा मिशन के तहत पहला परमाणु प्‍लांट स्थापित करने वाले पहले छह राज्यों में बिहार को चुना गया है. 
  • अडानी पावर 26,482 करोड़ रुपये के निवेश से 2,400 मेगावाट का बिजली प्‍लांट स्थापित करेगी. 
  • बिहार बिजनेस कनेक्ट 2024 में रिन्‍यूवेबल एनर्जी और मैन्‍युफैक्‍चरिंग सेक्‍टर समेत 1.8 लाख करोड़ रुपये से अधिक के निवेश प्रस्तावों पर हस्ताक्षर किए गए. 
  • बिहार सरकार ने राज्य में उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए नए बिहार औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन पैकेज को मंजूरी दे दी है. 

उद्योग ने कृषि को पीछे छोड़ा
वित्त वर्ष 2011-12 में बिहार के ग्रॉस वैल्‍यू असेट (GVA) में कृषि का योगदान 25.7 प्रतिशत था, जबकि उद्योग का योगदान लगभग सात प्रतिशत अंक कम यानी 18.8 प्रतिशत था. वित्त वर्ष 2012-13 में यह अंतर और भी बड़ा, 12.3 प्रतिशत अंक था, जब कृषि का योगदान 27.7 प्रतिशत और उद्योग का केवल 15.4 प्रतिशत था. हालांकि इसके बाद यह अंतर कम हुआ, लेकिन फिर भी 2023-24 तक कृषि का योगदान उद्योग के योगदान से अधिक रहा. 

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वित्त वर्ष 2024-25 में, पहली बार उद्योग ने राज्य में कृषि के योगदान को पीछे छोड़ दिया. सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अनुसार, पिछले वित्तीय वर्ष में कृषि का योगदान 22.4 प्रतिशत और उद्योग का योगदान 23.2 प्रतिशत रहा. 

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मैन्‍युफैक्‍चरिंग सेक्‍टर की डबल ग्रोथ 
बिहार में मैन्‍युफैक्‍चरिंग सेक्‍टर में वृद्धि एक दशक पहले शुरू हुई थी. नीति आयोग के अनुसार, भारत में विनिर्माण क्षेत्र में 5.5 प्रतिशत की वृद्धि के मुकाबले, बिहार में 2013-14 और 2022-23 के बीच 17.4 प्रतिशत की क्षेत्रीय वृद्धि देखी गई. इसी अवधि में, बिहार में कृषि की वृद्धि दर 2.6 प्रतिशत रही, जबकि देश की औसत वृद्धि दर 4.1 प्रतिशत रही. 

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उद्योग में कैपिटल ग्रोथ 
स्थायी पूंजी - वह धन जो स्थायी संपत्तियों या दीर्घकालिक संपत्तियों में निवेश किया जाता है जिनकी किसी कंपनी को व्यवसाय शुरू करने और चलाने के लिए आवश्यकता होती है, जैसे पॉपर्टी, प्‍लांट और उपकरण आदि, ऐसी चीजें बिहार में बढ़ रही है. 2013-14 में लगभग 8,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 2022-23 में लगभग 32,000 करोड़ रुपये हो गई. यह ग्रोथ सिर्फ महंगाई के कारण नहीं हुई. इसी अवधि में बिहार में स्थायी पूंजी भारत के कुल 0.34 प्रतिशत से बढ़कर 0.78 प्रतिशत हो गई.

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ईंधन की खपत बढ़ रही है
ईंधन की खपत को आमतौर पर आर्थिक विकास का एक व्यापक संकेतक माना जाता है. बिहार के सीमावर्ती जिलों में डीजल की खपत में तेजी देखी गई है. 2023-24 में डीजल की खपत में दश साल का एवरेज (वित्त वर्ष 2015-24) से विचलन किशनगंज, बांका, शेखपुरा, मधुबनी, नवादा और औरंगाबाद जैसे जिलों में सबसे अधिक रहा. 17 जिलों में यह 10 प्रतिशत से भी अधिक था.

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सुधार की गुंजाइश
बिहार में विनिर्माण क्षेत्र में ग्रोथ तो हुई है, लेकिन इससे होने वाला वैल्‍यू असेट वास्तव में क्षेत्रीय विकास के अनुरूप नहीं रहा है. उत्पादन का सकल मूल्य बिक्री राजस्व के समान है, और GVA लाभ है. राजस्व तो बढ़ा है, लेकिन लाभ नहीं बढ़ा है. ऐसा मध्यवर्ती वस्तुओं की ऊंची लागत या कम मूल्यवर्धन के कारण है. बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2025 के अनुसार, बिहार में सकल घरेलू उत्पाद (GVO) के प्रतिशत के रूप में GVA केवल 11.2 प्रतिशत के साथ सबसे कम है.

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इसके विपरीत, तेलंगाना में यह अनुपात 20.1 प्रतिशत, झारखंड में 18.5 प्रतिशत, कर्नाटक में 17.3 प्रतिशत और 2022-23 में अखिल भारतीय औसत 15.2 प्रतिशत था.

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