यूपी में SIR: लखनऊ, प्रयागराज, गाजियाबाद में कट सकते हैं सबसे ज्यादा वोटर, जानिए वजह 

यूपी में SIR प्रक्रिया ने बीजेपी के सामने नया संकट खड़ा कर दिया है. डुप्लीकेट वोट हटने और एक ही स्थान पर वोट अनिवार्य होने के बाद बड़ी संख्या में शहरी मतदाताओं ने शहर की बजाय अपने पुश्तैनी गांव में नाम रखना चुना है. इसके चलते लखनऊ, प्रयागराज, गाजियाबाद जैसे शहरों में लाखों वोट कटने की आशंका है. लगभग 2.45 करोड़ SIR फॉर्म अब तक वापस न आने से बीजेपी की शहरी पकड़ कमजोर पड़ने का खतरा बढ़ गया है.

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अब तक 2.45 करोड़ SIR फार्म वापस जमा नहीं हुए हैं (Representative Photo ITG) अब तक 2.45 करोड़ SIR फार्म वापस जमा नहीं हुए हैं (Representative Photo ITG)

कुमार अभिषेक

  • लखनऊ,
  • 10 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 10:19 AM IST

उत्तर प्रदेश में जारी SIR प्रक्रिया भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनौती बनकर उभर रही है. बीजेपी की चिंता सिर्फ इस बात से नहीं है कि बड़ी संख्या में SIR फॉर्म अभी तक वापस नहीं आए, बल्कि इस बदलती प्रवृत्ति से है कि शहरों में रहने के बावजूद लोग अपने वोट गांव में ही रखना चाहते हैं. 

दरअसल, SIR के तहत निर्वाचन आयोग ने साफ कर दिया है कि एक व्यक्ति एक ही जगह वोटर रह सकता है. यानी शहर और गांव दोनों जगह नाम होना अब मुमकिन नहीं है. जैसे ही यह दिशा-निर्देश आया, शहरी क्षेत्रों में डुप्लीकेट वोटों की सफाई शुरू हुई और लोग अपने वास्तविक, स्थायी पते को लेकर फैसला लेने लगे. यहीं से पूरी कहानी बदल गई.

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अधिकांश लोगों ने अपने पुश्तैनी गांव को प्राथमिकता दी. इसके पीछे कई कारण हैं जैसे:गांव में पुश्तैनी जमीन, जायदाद और परिवारिक सामाजिक पहचान, पंचायत चुनाव में हर परिवार का सीधा हित, गांव में नाम कटने से भविष्य के विवादों की संभावना, शहर में किराए/कामकाजी स्थिति स्थायी न होना है. वहीं बड़े शहरों में रहने वाले लाखों लोगों ने अपने SIR फॉर्म ही नहीं भरे, ताकि उनका वोट गांव की सूची में बना रहे. इस रणनीति से गांव की मतदाता सूची मजबूत हुई लेकिन शहरों की मतदाता संख्या अचानक कम होने लगी.

लखनऊ, वाराणसी, गाजियाबाद, नोएडा, आगरा, मेरठ, कानपुर और करीब दो दर्जन टियर-2 शहरों में SIR फॉर्म सबसे कम जमा हुए. परिणामस्वरूप शहरी सीटों पर वोट कटने की स्थिति स्पष्ट दिखने लगी है. अब तक प्रदेश भर में 17.7% SIR फॉर्म जमा नहीं हुए हैं, जिसका मतलब है कि लगभग 2.45 करोड़ वोटर अभी भी गणना प्रपत्र नहीं लौटा पाए हैं. सूत्रों के मुताबिक लखनऊ में करीब 2.2 लाख, सबसे ज्यादा प्रयागराज में 2.4 लाख, गाजियाबाद में करीब 1.6 लाख और सहारनपुर में लगभग 1.4 लाख वोट कट सकते हैं. 

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दो दशक बाद इतनी बड़ी सफाई क्यों?

पिछले 20-25 सालों में मतदाता सूची का इतना व्यापक परीक्षण कभी नहीं हुआ था. माना जा रहा है कि इस बार तीन वजहों से भारी नाम कट सकते हैं

बड़े पैमाने पर पलायन : IT, शिक्षा, नौकरी और फैक्टरियों की वजह से लाखों लोग या तो यूपी के अलग-अलग शहरों में या यूपी से बाहर बस गए.

मृतकों के नाम हटना : दो दशकों में बड़ी संख्या में अप्राकृतिक वृद्धि हुई थी.

फर्जी और डुप्लीकेट वोटरों की पहचान : यह पहली बार इतने बड़े स्तर पर एक साथ हो रहा है.

लेकिन इन सबके बीच एक नई प्रवृत्ति उभरी है कि शहरी मतदाता का गांव वाले वोट की तरफ लौटना. यह वह पहलू है जिसने बीजेपी को सबसे ज्यादा असहज किया है.

चुनाव आयोग भी बढ़ा सकता है समय

इतनी बड़ी संख्या में फॉर्म न आने के बाद आयोग भी चिंतित है. संकेत हैं कि SIR फॉर्म जमा करने की प्रक्रिया को एक सप्ताह और बढ़ाया जा सकता है, ताकि छूटे हुए मतदाता अपने प्रपत्र जमा कर सकें. आयोग भी जानता है कि 2.45 करोड़ लोगों का नाम अचानक मतदाता सूची से हटना बड़ा विवाद खड़ा कर सकता है.

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