हाइपरटेंशन में भारत... 21 करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित, WHO की चेतावनी

भारत में 21 करोड़ से ज्यादा वयस्क हाई बीपी से जूझ रहे हैं. WHO की 2025 रिपोर्ट कहती है, सिर्फ 39% जानते हैं अपनी बीमारी के बारे में. 83% का बीपी कंट्रोल नहीं. यह दिल-दिमाग की गंभीर बीमारियां ला सकता है. दुनिया में 140 करोड़ प्रभावित. भारत ने मुफ्त दवाओं से सफलता पाई, लेकिन जागरूकता बढ़ानी जरूरी.

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पूरी दुनिया में 140 करोड़ लोग प्रभावित है हाई ब्लड प्रेशर से. (Photo: Pexel) पूरी दुनिया में 140 करोड़ लोग प्रभावित है हाई ब्लड प्रेशर से. (Photo: Pexel)

आजतक साइंस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 26 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 9:08 AM IST

भारत में हाइपरटेंशन यानी हाई ब्लड प्रेशर एक बड़ी समस्या बन चुका है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)की नई रिपोर्ट 'ग्लोबल रिपोर्ट ऑन हाइपरटेंशन 2025' के मुताबिक, देश में 21 करोड़ से ज्यादा वयस्क (30 से 79 साल के) इस बीमारी से जूझ रहे हैं. यह देश की 30% से ज्यादा आबादी है.

मुख्य आंकड़े जो चिंता बढ़ाते हैं

  • पीड़ितों की संख्या: 21 करोड़ से ज्यादा.
  • जानकारी का अभाव: सिर्फ 39% (8.22 करोड़) लोग जानते हैं कि वे बीमार हैं.
  • नियंत्रण की कमी: 83% (17.3 करोड़) का ब्लड प्रेशर कंट्रोल नहीं है. यानी सिर्फ 17% मरीजों में ही यह नियंत्रित है.

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समस्या इसलिए खतरनाक है क्योंकि हाई बीपी दिल और दिमाग पर अतिरिक्त दबाव डालता है. अगर समय पर कंट्रोल न हो, तो हार्ट अटैक, स्ट्रोक, किडनी फेलियर, आंखों की समस्या या डिमेंशिया जैसी बीमारियां हो सकती हैं.

दुनिया भर में हाई बीपी का हाल

2024 में वैश्विक स्तर पर 140 करोड़ लोग हाई बीपी से पीड़ित थे. यह दुनिया की 34% आबादी है. लेकिन चिंता की बात, हर 5 में से सिर्फ 1 व्यक्ति ही दवा या जीवनशैली बदलाव से इसे कंट्रोल कर पाता है. 

WHO के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस एडनोम घेब्रेयसस कहते हैं कि हर घंटे 1 000 से ज्यादा लोग हाई बीपी से जुड़ी दिल-दिमाग की बीमारियों से मर रहे हैं. ये मौतें रोकी जा सकती हैं. सही नीतियां, निवेश और बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं लाखों जिंदगियां बचा सकती हैं. 

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चुनौतियां: इलाज तक पहुंच क्यों मुश्किल?

  • 195 देशों में से 99 में कंट्रोल रेट 20% से कम है.
  • गरीब देशों में दवाओं की उपलब्धता सिर्फ 28%, जबकि अमीर देशों में 93%.
  • बाधाएं: कमजोर नीतियां (शराब, तंबाकू, नमक, ट्रांस फैट पर), महंगी दवाएं, डॉक्टरों की कमी, जांच के उपकरण न होना और सप्लाई चेन की समस्या.

डॉ. टॉम फ्राइडन कहते हैं कि सस्ती और सुरक्षित दवाएं उपलब्ध हैं, लेकिन करोड़ों लोगों तक नहीं पहुंच पा रही. इस कमी को दूर करने से लाखों जानें बचेंगी. अरबों डॉलर की बचत होगी. अगर समय रहते कदम न उठाए, तो 2011-2025 के बीच गरीब-मध्यम आय वाले देशों को 3.7 ट्रिलियन डॉलर (जीडीपी का 2%) का नुकसान होगा.

सफलता की मिसालें: उम्मीद बाकी है

कुछ देशों ने कमाल कर दिखाया...

  • बांग्लादेश: 2019-2025 में कंट्रोल रेट 15% से बढ़कर 56% हो गया.
  • फिलीपींस: WHO के हार्ट पैकेज को गांवों तक पहुंचाया.
  • दक्षिण कोरिया: सस्ती दवाओं से 2022 में 59% कंट्रोल.

भारत की जीत: मुफ्त दवाओं से राहत

भारत ने इस समस्या पर काबू पाने में सफलता पाई है. 2018-2019 से सरकारी क्लीनिकों में मुफ्त जेनेरिक दवाएं दी जा रही हैं. दवाओं की कीमत पर सीमा लगाई गई. निजी दुकानों से 80% सस्ती दवाएं सरकारी स्टोर्स पर मिलती हैं.

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  • पहले: सिर्फ 14% मरीजों का बीपी कंट्रोल.
  • अब: पंजाब-महाराष्ट्र में 70-81% तक पहुंचा. औसत सिस्टोलिक बीपी 15-16 mmHg कम हुआ.

WHO की अपील

  • WHO कहता है, हाई बीपी कंट्रोल को हर देश की स्वास्थ्य योजना में शामिल करें. सही कदमों से लाखों मौतें रुकेंगी और आर्थिक बोझ कम होगा. 
  • सावधानी बरतें: स्वस्थ खाना खाएं, नमक कम करें, व्यायाम करें और नियमित बीपी चेक करवाएं. समय पर इलाज से जिंदगी स्वस्थ रहेगी.
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