इंसान ही नहीं, जानवरों को भी गॉसिप में आता है मजा, डॉल्फिन करती है जमकर लगाई-बुझाई

कुछ समय पहले यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की एक स्टडी आई, जो कहती है कि लोग लगभग रोज 52 मिनट गॉसिप करते हैं. वैज्ञानिकों ने यह भी माना कि कॉम्प्लेक्स यानी मुश्किल संरचना वाले दिमाग के चलते इंसान गॉसिप कर पाते हैं. तो क्या इंसानों के अलावा पशु-पक्षी गॉसिप नहीं करते! ज्यादातर जानवर निंदा-रस का आनंद नहीं ले पाते, लेकिन कुछ हैं, जिनका दिमाग बिल्कुल हम जैसा है.

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डॉल्फिन्स का ब्रेन भी हमारी तरह जटिल होता है. (Unsplash) डॉल्फिन्स का ब्रेन भी हमारी तरह जटिल होता है. (Unsplash)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 17 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 5:47 PM IST

जटिल संरचना वाले दिमाग की वजह से इंसान सिर्फ बात ही नहीं करते, वे गैरजरूरी बात यानी गॉसिप भी कर पाते हैं. गॉसिप पर वैज्ञानिकों ने लगातार कई अध्ययन किए और कई मजेदार फाइंडिंग्स निकालीं. इनमें से एक तो ये भी है कि गॉसिप से हम आपस में जुड़ते हैं. दो गॉसिप करने वाले अक्सर अच्छे दोस्त बन जाते हैं. यही कारण है कि गॉसिप की तुलना रसीले फलों या चटपटी चाट से भी होती है. इंसानों के अलावा भी धरती पर कई स्पीशीज हैं, जिनको गॉसिप में मजा आता है. डॉल्फिन्स इसमें सबसे ऊपर हैं. 

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क्या दिखा स्टडी में
नेचर इकोलॉजी एंड इवॉल्यूशन नाम के जर्नल में इस बारे में एक स्टडी आई. स्टेनफोर्ड और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक्सपर्ट्स ने समुद्र के भीतर की दुनिया को टटोला और पाया कि डॉल्फिन्स एक-दूसरे का नाम भी रखती हैं. और मौका पाते ही एबसेंट डॉल्फिन के बारे में गॉसिप भी करती हैं. उनके गॉसिप पैटर्न को समझने के लिए एक खास तरह का माइक्रोफोन इस्तेमाल किया गया. इसमें जो साउंड आए, उन्हें डीकोड करने पर साइंटिस्ट्स ने पाया कि ये इंसानी बातचीत की तरह थे. 

आपस में नरमी से बात करती हैं
एक डॉल्फिन कुछ कहती है, जो लगभग 5 शब्दों का वाक्य होता है. इसके बाद एक छोटा-सा पॉज होता है, फिर दूसरी डॉल्फिन बदले में कुछ कहती है. कोई भी मछली किसी दूसरे की बात नहीं काटती है. ये वैसा ही है, जैसे दो सज्जन लोग पोलाइट बातचीत या फिर सॉफ्ट गॉसिप कर रहे हों. वैज्ञानिक बातचीत के अर्थ तो नहीं समझ सके, लेकिन इतना समझ आ गया कि ये आम जानवरों की बातचीत से अलग है, जो सिर्फ खतरे की चेतावनी के लिए या गुस्से में आवाजें निकालते हैं. 

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डॉल्फिन लगभग 5 शब्दों के वाक्य में बातें करती है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

ब्रेन डेवलपमेंट है गॉसिप की एक वजह
एक्सपर्ट ने इसे कल्चरल ब्रेन हाइपोथीसिस माना. ये वर्टिब्रेट्स की खूबी है, जिनका ब्रेन बाकियों की तुलना में ज्यादा विकसित होता है. खासकर इंसानों में. यही वजह है कि वे जरूरत की बातचीत नहीं करते, या संकेतों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि एक्सप्रेस करते हैं. यहां तक कि जरूरी के अलावा गैरजरूरी जानकारियों के लिए भी उनके दिमाग में जगह होती है. कुछ-कुछ यही बात डॉल्फिन्स पर भी लागू होती है. वे सोशल ग्रुप में रहती, और बातचीत के जरिए दोस्त और दुश्मन भी बनाती हैं. 

गॉसिप करना बुरी बात है!
नहीं. कम से कम वैज्ञानिक तो यही मानते हैं. सेज जर्नल्स मे साल 2019 में छपी स्टडी इस बारे में विस्तार से बात करती है. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के साइकोलॉजी डिपार्टमेंट की इस रिपोर्ट में बताया गया कि हर दिन के 52 मिनट यानी लगभग 1 घंटा इधर-उधर की बातें करते हैं. ये हमेशा ही किसी की बुराई हो, ये जरूरी नहीं. बल्कि इसका 15 प्रतिशत हिस्सा ही किसी की लगाई-बुझाई से जुड़ा होता है, बाकी शुद्ध आनंद होता है. 

आपकी सोच से अलग है गॉसिप की दुनिया
स्टडी में कई ऐसी बातें निकलकर आईं, जो हमारी बंधी-बंधाई सोच से अलग है. माना जाता रहा कि महिलाएं, पुरुषों से ज्यादा गॉसिप करती हैं, जबकि अध्ययन इस बात का उल्टा बताता है. महिलाएं आमतौर पर अपने ही दर्द बता पाती हैं, जबकि पुरुष दूसरों की बात करते हुए उसका तख्त तक हिला देते हैं. ये भी पाया कि लोअर-इनकम और कम पढ़े-लिखे लोग कम गॉसिप करते हैं, जबकि संभ्रांत लोगों का मन गॉसिप में खूब लगता है. 

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महिलाओं से 20 मिनट ज्यादा गॉसिप करते हैं पुरुष
साल 2019 में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की एक स्टडी में माना गया कि पुरुष गॉसिप करने में अव्वल होते हैं. 18 से 58 साल के लगभग तीन सौ पुरुषों और महिलाओं पर हुए अध्ययन के तहत उनकी टेलीफोनिक बातचीत को सुना गया. नतीजे हमारी-आपकी सोच से एकदम अलग हैं. पुरुष दिन के लगभग 76 मिनट शुद्ध गॉसिप को देते हैं, जबकि महिलाएं 50 से 55 मिनट. मार्केट रिसर्च एजेंसी वनपोल के अध्ययन में भी ये फासला दिखा. 

 

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