दिल्ली-NCR में सांस लेना तो मुश्किल था अब देखना भी हो गया है. सबकुछ अदृश्य. घना कोहरा. स्मोग और पॉल्यूशन. 15 दिसंबर 2025 को दिल्ली का AQI 450 से ऊपर सीवियर लेवल पर पहुंच चुका है. कुछ जगहों पर तो 500 के करीब है. घना स्मॉग छाया हुआ है. विजिबिलिटी कम है. लोग घरों में कैद हो गए हैं. सवाल उठता है कि क्या पूरे जाड़े (दिसंबर से फरवरी) में दिल्ली-एनसीआर का प्रदूषण इसी तरह हाई रहेगा? और ये इतना खतरनाक क्यों है?
नहीं, पूरे सर्दी में प्रदूषण लगातार इतना बुरा नहीं रहता... मौसम के बदलाव से कभी-कभी सुधार होता है. लेकिन सर्दियों में औसतन प्रदूषण ज्यादा रहता है. वैज्ञानिक कारण हैं – ठंडी हवा नीचे रहती है. गर्म हवा ऊपर, ये इन्वर्शन लेयर बनाती है जो प्रदूषण फैलाने वाले तत्वों को फंसाए रखती है. हवा की स्पीड कम, कोई बारिश नहीं, तो स्मॉग बन जाता है.
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लेकिन ये सिर्फ दिल्ली की समस्या नहीं. पूरे भारत में वायु प्रदूषण एक अदृश्य महामारी बन चुका है. लैंसेट की स्टडी के अनुसार, भारत में हर साल 15 लाख से 20 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण से जुड़ी होती है. ये धूम्रपान, हाई ब्लड प्रेशर से भी बड़ा खतरा है.
दिल्ली-NCR में सर्दियां आते ही प्रदूषण चरम पर पहुंच जाता है. मुख्य कारण वैज्ञानिक हैं...
2025 के डेटा से देखें तो दिसंबर में AQI 400-500 तक पहुंच रहा है. GRAP स्टेज-4 लागू है. लेकिन फोरकास्ट कहता है कि 17 दिसंबर से सुधार हो सकता है, AQI वेरी पुअर में आएगा. पूरी सर्दी में उतार-चढ़ाव रहेगा, लेकिन औसतन खराब ही रहेगा.
वायु प्रदूषण का मुख्य दोषी PM2.5 है – ये 2.5 माइक्रोन से छोटे कण हैं, जो सांस के साथ फेफड़ों में घुस जाते हैं और खून में मिल जाते हैं. WHO के अनुसार, सुरक्षित लेवल 5 माइक्रोग्राम/क्यूबिक मीटर सालाना है, लेकिन भारत में औसतन 50-100 से ज्यादा है. दिल्ली में सर्दियों में 200-500 तक पहुंच जाता है.
फेफड़े और सांस की नली: PM2.5 फेफड़ों की दीवार को खराब करता है, सूजन पैदा करता है. अस्थमा, ब्रॉन्काइटिस, COPD बढ़ता है. स्टडीज दिखाती हैं कि PM2.5 बढ़ने से अस्पताल में सांस की बीमारियों के केस 10-20% बढ़ जाते हैं. बच्चों में फेफड़ों का विकास रुक जाता है.
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दिल और ब्लड वेसल्स: कण खून में घुसकर धमनियों में सूजन पैदा करते हैं, प्लाक बनाते हैं. हार्ट अटैक, स्ट्रोक का खतरा 10-15% बढ़ जाता है. लैंसेट स्टडी: भारत में हार्ट डिजीज से मौतों का 25% प्रदूषण से जुड़ा है.
दिमाग और नर्वस सिस्टम: PM2.5 ब्रेन में पहुंचकर सूजन करता है. डिप्रेशन, अल्जाइमर, बच्चों में IQ कम होना. प्रदूषित इलाकों में बच्चों का दिमागी विकास 2-5 साल पीछे रह जाता है.
प्रदूषण सिर्फ स्वास्थ्य नहीं, अर्थव्यवस्था को भी खोखला करता है...
ये समस्या हल हो सकती है. NCAP (नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम) चल रहा है. BS-6 फ्यूल, इलेक्ट्रिक व्हीकल, पराली का वैकल्पिक इस्तेमाल करना जरूरी है. लेकिन जरूरत है सख्ती से नियम लागू करने की. लोग व्यक्तिगत स्तर पर- N95 मास्क लगा सकते हैं. इंडोर प्लांट्स लगाएं. कार पूलिंग करें.
सरकार को इंडस्ट्री पर कंट्रोल करना होगा. पब्लिक ट्रांसपोर्ट बढ़ाना होगा. ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा देना होगा. वायु प्रदूषण एक अदृश्य महामारी है जो चुपके से लाखों जिंदगियां ले रही है. दिल्ली की सर्दी इसका सबसे बुरा रूप दिखाती है, लेकिन पूरे भारत में फैला है.
वैज्ञानिक तथ्य साफ हैं – PM2.5 शरीर के हर अंग को नुकसान पहुंचाता है. अगर हम अब नहीं जागे, तो आने वाली पीढ़ियां सांस की कीमत चुकाएंगी. स्वच्छ हवा हमारा हक है. सरकार, समाज और हम सब मिलकर लड़ें. क्योंकि सांस लेना जीने का पहला अधिकार है.
ऋचीक मिश्रा