चिराग पासवान के मामले में बीजेपी ने उद्धव ठाकरे और शरद पवार से अलग स्टैंड क्यों लिया?

ये चिराग पासवान का ही मामला है जो बीजेपी पशुपति कुमार पारस के साथ यूज-एंड-थ्रो व्यवहार कर रही है. पहले उनको एकनाथ शिंदे और अजित पवार जैसा इस्तेमाल किया, और अब उनके साथ भी उद्धव ठाकरे और शरद पवार की तरह पेश आ रही है - ये है 'मोदी के हनुमान' की ताकत का कमाल है.

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पशुपति पारस ने भतीजे को पट किया था, चिराग पासवान ने चाचा को आखिरकार चित्त कर दिया पशुपति पारस ने भतीजे को पट किया था, चिराग पासवान ने चाचा को आखिरकार चित्त कर दिया

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 14 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 2:52 PM IST

चिराग पासवान की प्रेशर पॉलिटिक्स काम आ गई. बीजेपी को अपने हिसाब से डील करने के लिए मजबूर कर दिया. एनडीए में चिराग पासवान का वनवास खत्म हो गया है. 

नीतीश कुमार के एनडीए में लौटने के बाद भी चिराग पासवान बीजेपी पर दबाव बनाने में सफल हो गये हैं - और अब वो बिहार की पांच लोकसभा सीटों पर अपने मनमाफिक उम्मीदवार उतार सकते हैं. हाजीपुर लोकसभा सीट पर भी. रामविलास पासवान के चुनाव क्षेत्र हाजीपुर लोकसभा सीट से वो अपनी मां रीना पासवान को उम्मीदवार बना सकते हैं. 

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देखा जाये तो चिराग पासवान पारिवारिक दबाव से भी मुक्त हो चुके हैं. उनके चाचा पशुपति कुमार पारस और चचेरे भाई प्रिंस राज भी अब बीजेपी की जिम्मेदारियों का हिस्सा बन गये हैं. क्‍योंकि चिराग ने साफ कह दिया है कि उनके पास जो पांचों सीटें हैं वे सिर्फ उनकी है. उसमें किसी (पारस गुट) का कोटा नहीं है. बीजेपी ने भी पशुपति कुमार पारस का इस्तेमाल कर लिया है. अब अगर बीजेपी का प्रस्ताव स्वीकार है तो ठीक, वरना बाहर का दरवाजा खुला है.

बीजेपी की तरफ से पशुपति कुमार पारस को राज्यपाल बनाने और प्रिंस राज को बिहार की नीतीश कुमार सरकार में मंत्री बनाये जाने का ऑफर मिला है - अब ये उन दोनों पर निर्भर करता है कि कबूल करते हैं या नहीं. वैसे ऐसी भी खबरें आ रही हैं कि पशुपति कुमार पारस बुरी तरह नाराज हैं, और महागठबंधन के टच में हैं. 

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जहां तक चिराग पासवान की बात है, बीजेपी ने उनके तो दोहरा व्यवहार किया ही है, पशुपति कुमार के साथ भी बिलकुल वैसा ही व्यवहार हुआ है. पहले तो बीजेपी पशुपति कुमार पारस के साथ भी वैसे ही पेश आई जैसे महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और अजित पवार जैसे नेताओं के साथ. लेकिन गुजरते वक्त के साथ बीजेपी का नजरिया भी बदलता गया. 

पहले तो यही देखने में आया कि चिराग पासवान के साथ भी वैसा ही व्यवहार हो रहा था, जैसा महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ हुआ. मतलब, लोक जनशक्ति पार्टी, शिवसेना और एनसीपी तीनों ही दलों के बागियों को बीजेपी ने हाथोंहाथ लिया, लेकिन चिराग पासवान के प्रति अब इरादा बदल गया है. 

अगर चिराग पासवान ताकतवर नहीं होते तो उनके साथ भी वही सलूक होता जैसा उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ अब भी हो रहा है - लेकिन ये एकनाथ शिंदे और अजित पवार जैसे नेताओं के लिए ये बहुत बड़े खतरे का संकेत भी है - मतलब, तभी तक उनकी पूछ है, जब तक वे काम के हैं. वरना, दिन पलटते देर नहीं लगती. चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस ताजातरीन मिसाल हैं. 

चिराग की प्रेशर पॉलिटिक्स काम आ गई

नीतीश कुमार के एनडीए छोड़ देने के बाद से चिराग पासवान के रास्ते की बाधाएं साफ हो गई थीं, लेकिन उनके लौटते ही मामला गड़बड़ होने लगा, और तभी चिराग पासवान ने नीतीश कुमार वाली ही चाल चल दी. जैसे नीतीश कुमार महागठबंधन में रहते हुए बीजेपी कनेक्शन की धौंस दिखाते थे, और एनडीए में रहते महागठबंधन का, चिराग पासवान ने भी तो बिलकुल वही तरीका अपनाया - और सब देख ही रहे हैं, वो तरीका पूरी तरह कारगर भी साबित हुआ है. 

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ध्यान देने वाली बात ये है कि पहले के मुकाबले कमजोर हो चुके नीतीश कुमार भी बीजेपी पर दबाव नहीं बना पाये - क्योंकि उनको भी तो एनडीए में सीटों के बंटवारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के सामने अपनी बात मनवानी थी.

महागठबंधन के ऑफर को प्रचारित कर चिराग पासवान ने बीजेपी पर दबाव बना दिया. खबरें फैल गईं कि चिराग पासवान को 6+2+2 का ऑफर है. 6 यानी बिहार की मौजदा सभी लोकसभा सीटें, बोनस के रूप में 2 सीटें एक्स्ट्रा और अलग से यूपी में दो लोकसभा सीटें. 

मौजूदा राजनीति में एनडीए और INDIA ब्लॉक एक दूसरे के परस्पर विरोधी ही नहीं हैं, दोनों गठबंधनों के काम करने का तरीका भी बिलकुल अलग है. कांग्रेस के पूरी तरह उलट बीजेपी साथियों को साथ लेने और रखने पर ज्यादा जोर दे रही है. जैसे इंडिया बिखर गया, एनडीए लगातार मजबूत होता जा रहा है. 

बीजेपी को ये भी तो दिखा होगा कि कैसे तेजस्वी आरजेडी का दायरा यादव और मुस्लिम वोटर से आगे बढ़ाने की कोशिीश कर रहे हैं. पहले MY फैक्टर की बातें होती थीं, अब तेजस्वी यादव MY-BAAP का वैसे ही प्रचार कर रहे हैं, जैसे अखिलेश यादव यूपी में पीडीए का.

रामविलास पासवान बेशक पासवान वोट बैंक के नेता थे, लेकिन उनकी राजनीति का दायरा अपनी बिरादरी तक सीमित नहीं था. चिराग पासवान भी उसी रास्ते पर बढ़ रहे हैं. ऐसे में भला बीजेपी चिराग पासवान और तेजस्वी यादव को एक साथ कैसे खड़ा होने देती. 

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बिहार में चिराग पासवान और तेजस्वी यादव का मिल जाना तो यूपी के सपा-बसपा गठबंधन की तरह अखिलेश और मायावती की जुगलबंदी जैसा हो जाता - और उसके लिए बीजेपी को अलग से तिकड़मों की जरूरत पड़ती. 

वारिस तो बेटा ही होता है

सुनने में तो ये भी आ रहा है कि पशुपति कुमार पारस भी बिहार के महागठबंधन या INDIA ब्लॉक जो भी कहें, के संपर्क में हैं. हो सकता है, उनको लगता हो कि अभी राज्यपाल बन जाने का मतलब, राजनीतिक पारी खत्म - और ये भी हो सकता है कि बाकियों की तरह उनको बीजेपी की सत्ता में वापसी का यकीन न हो. सही बात है, राज्यपाल तो वो तभी बन पाएंगे जब फिर से केंद्र में एनडीए की सरकार बनती है. अगर बीजेपी ने चुनावों से पहले ही उनको कहीं ऐडजस्ट कर दिया, तो चुनाव बाद नये सिरे से भी फैसला लिया जा सकता है. बिहार के भी राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक की हालत भी उनकी चिंता बढ़ा रही होगी. 

लेकिन पशुपति कुमार पारस को ये नहीं भूलना चाहिये कि वो रामविलास पासवान के भाई हैं, बेटे नहीं. जैसे लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव हैं, तेज प्रताप भी नहीं. जैसे मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव हैं, और शिवपाल यादव भाई. 

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'बेटा वारिस नहीं होगा तो क्या भैंस चराएगा,' ये बात भी लालू यादव ने ही कहा था, जब पप्पू यादव आरजेडी और लालू यादव की राजनीतिक विरासत पर काबिज होने की कोशिश कर रहे थे. वैसे हर तरफ नजारा एक जैसा ही है. उद्धव ठाकरे भी तो राजनीति में बेटे होने की वजह से ही आये, और राहुल गांधी से बड़ा उदाहरण कहां मिलेगा. प्रियंका गांधी वाड्रा का संघर्ष भी दुनिया देख ही रही है. 

पशुपति कुमार पारस कई बार कह चुके हैं कि चिराग पासवान पिता की संपत्ति के वारिस जरूर होंगे, लेकिन रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत पर तो उनका ही हक बनता है. 

अब तो लगता है, विरासतों पर बेटों के अलावा भी कोई हक जता सकता है, लेकिन वक्त बदलते देर नहीं लगती - वारिस तो बेटा ही होता है. 

एक सवाल ये भी उठ रहा है कि रामविलास पासवान ने जब लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया तभी चिराग पासवान को हाजीपुर के मैदान में क्यों नहीं उतार दिया? अपने भाई पशुपति कुमार पारस को क्यों उम्मीदवार बनाया?

देखें तो चिराग पासवान जमुई में धाक जमा चुके थे, और जमा जमाया मैदान कोई क्यों छोड़े. रामविलास पासवान के मन में भी भाई के प्रति प्रेम वैसा ही होगा जैसा शिवपाल यादव को लेकर मुलायम सिंह यादव के मन में, लेकिन अस्पताल में भर्ती होने से पहले ही रामविलास पासवान ने सबकुछ साफ कर दिया था, पशुपति कुमार पारस हकीकत को समझने को तैयार नहीं हो पा रहे थे. 

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अस्पताल जाने से पहले रामविलास पासवान ने अपनी वसीयत सोशल मीडिया पर सार्वजनिक कर दी थी, 'मुझे विश्वास है कि अपनी युवा सोच से चिराग पार्टी और बिहार को नयी ऊंचाइयों तक ले जाएगा... चिराग के हर फैसले के साथ मैं मजबूती से खड़ा हूं.'

राजनीति में ब्रह्म सत्यम्, जगत मिथ्या - बस इतना ही है.

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