ज्ञानवापी: कौन हैं अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जो शिवलिंग पर जल चढ़ाने पर अड़े

जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य अविमुक्तेश्वरानंद पहले भी कई मामलों को लेकर चर्चा में रह चुके हैं. हाल ही में मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में श्रीराम मंदिर में साईं की मूर्ति देखकर वे भड़क गए थे. मंदिर से साईं की मूर्ति हटाए जाने के बाद उन्होंने मंदिर में प्रवेश की बात कही थी.

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स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती. -फाइल फोटो स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती. -फाइल फोटो

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 04 जून 2022,
  • अपडेटेड 11:16 AM IST
  • साईं की मूर्ति को लेकर हाल में चर्चा में रहे थे अविमुक्तेश्वरानंद
  • ज्ञानवापी में पूजा को लेकर अड़े हैं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद

वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद में कथित तौर पर शिवलिंग मिलने के बाद स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद वहां पूजा करने को अड़ गए हैं. शनिवार को ज्ञानवापी जाने से पहले अविमुक्तेश्वरानंद के मठ को वाराणसी पुलिस ने घेर लिया था और उन्हें नजरबंद कर दिया था. इसके बाद अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि पूजा उनका अधिकार है और जबतक वे ज्ञानवापी में पूजा नहीं कर लेते, भोजन नहीं ग्रहण करेंगे. इसके बाद वे मठ के दरवाजे पर ही अनशन पर बैठ गए.

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बता दें कि ज्ञानवापी से पहले हाल ही में अविमुक्तेश्वरानंद चर्चा में रहे थे. हाल ही में मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में श्रीराम मंदिर में दर्शन के लिए अविमुक्तेश्वरानंद पहुंचे थे. इस दौरान मंदिर की दीवार पर साईं बाबा की मूर्ति देखकर वे भड़क गए थे. उन्होंने कहा था कि श्रीराम के मंदिर में साईं का क्या काम. 

उन्होंने कहा था कि आपको साईं की पूजा करनी है तो फिर राम और कृष्ण की क्या जरूरत है. इस दौरान दर्शन के लिए बुलाने वाले एक शिष्य को उन्होंने फटकार भी लगाई थी और कहा था कि क्या अब हम साईं के दर्शन करेंगे. उन्होंने ये भी कहा था कि जबतक मंदिर से साईं की प्रतिमा नहीं हटाई जाएगी, मैं मंदिर में प्रवेश नहीं करूंगा. इसके बाद साईं की प्रतिमा को हटा दिया गया था.

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कौन हैं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद 

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में जन्मे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य हैं. अविमुक्तेश्वरानंद का मूलनाम उमाशंकर है. प्रतापगढ़ में प्राथमिक शिक्षा के बाद वे गुजरात चले गए थे. गुजरात में उन्होंने संस्कृत की शिक्षा भी ली थी. पढ़ाई के बाद अविमुक्तेश्वरा नंद को शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य का सान्निध्य और आशीर्वाद प्राप्त हुआ. 

जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य अविमुक्तेश्वरानंद ने वाराणसी में मंदिर तोड़े जाने का विरोध किया था. इसके अलावा उन्होंने छत्तीसगढ़ के कवर्धा में सनातन धर्म के ध्वज को हटाने के विरोध में हजारों लोगों के साथ रैली निकालकर ध्वज को स्थापित भी किया था. 

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