संसद सत्र में विपक्ष ही नहीं सहयोगी दल भी बनेंगे NDA की मुसीबत

पूरा विपक्ष एकजुट होकर मोदी सरकार को घेरने की तैयारी में है लेकिन सरकार के सहयोगी दल शिवसेना और रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने सर्वदलीय बैठक में सरकार के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)

परमीता शर्मा / हिमांशु मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 18 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 11:07 AM IST

आज संसद का मॉनसून सत्र शुरू हो रहा है. कल (मंगलवार) सर्वदलीय बैठक में मोदी सरकार की तरफ से विपक्ष को इस बात की जानकारी दे दी गई थी कि सरकार विपक्ष के द्वारा उठाये जाने वाले हर मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार है, लेकिन चर्चा के साथ- साथ महत्वपूर्ण बिलों को संसद के दोनों सदनों में पास करने में सरकार का साथ दें. पिछले बजट सत्र में एक दिन भी संसद में कोई काम नहीं हुआ बजट को भी हंगामे के बीच पास किया गया था.

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पूरा विपक्ष एकजुट होकर मोदी सरकार को घेरने की तैयारी में है लेकिन सरकार के सहयोगी दल शिवसेना और रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने सर्वदलीय बैठक में सरकार के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है. शिवसेना चाहती है कि लिंचिंग के मुद्दे पर संसद में बहस हो. बता दें कि कल ही सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को निर्देश दिया है कि सरकार जल्द से जल्द लिंचिंग पर कानून बनाये, अगर लिंचिंग के मुद्दे पर संसद में बहस होती है तो विपक्ष को सरकार को घेरने का अच्छा खासा मौका मिल जायेगा.

सहयोगी दलों ने भी उठाई ये मांग

बैठक में सरकार के सहयोगी रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों एससी/एसटी एक्ट में जो बदलाव किए गए हैं उनसे एससी/एसटी कमजोर हो गया है. सरकार को एससी/एसटी एक्ट को मजबूत करने के लिए संसद के इसी सत्र में संशोधन बिल लाना चाहिए. इसके साथ चिराग पासवान ने ये भी कहा कि प्रमोशन में रिजर्वेशन मामले में SC ने नागराज के मामले में जो फैसला दिया है उसकी वजह से प्रमोशन में रिजर्वेशन का मामला अटक गया है. एससी/एसटी के मामले में पिछड़ेपन, क्षमता और प्रतिनिधित्व को लेकर जो फैसला किया गया है, उसे दुरुस्त करने हेतु संविधान में संशोधन करना चाहिए.

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मतलब साफ है कि चुनावी साल है, विपक्ष तो पूरा जोर लगाकर संसद में और संसद के बाहर सरकार को घेरने की कोशिश करेगा लेकिन एनडीए सहयोगी दलों को चुनाव में जाना है इसलिए वो अपनी पार्टी के वोट बैंक को प्रभावित करने के लिए अपनी विचारधारा से जुड़े मुद्दे उठा रहे हैं ताकि उनका वोट बैंक खिसके नहीं, चाहे फिर उनके द्वारा उठाये गए मुद्दों के कारण क्यों ना मोदी सरकार मुसीबत में आ जाये.

दिख रहे हैं सहयोगी दलों के तेवर

जब से टीडीपी आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने के मुद्दे पर एनडीए से बाहर गई तब से एनडीए कई सहयोगी दलों ने बीजेपी पर दबाव बनाना शुरू कर दिया. शिवसेना ने तो घोषणा भी कर दी है कि वो 2019 का चुनाव बीजेपी के साथ मिलकर नहीं लड़ेगी. यूपी में एनडीए के सहयोगी दल के ओमप्रकाश राजभर आए दिन योगी सरकार और बीजेपी के खिलाफ बयान देते रहते हैं.

जेडीयू के साथ सीटों के बंटवारे पर रस्साकशी चल रही है. राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष आरजेडी के नेताओं के साथ मंच साझा कर बीजेपी की दिल की धड़कन पहले ही बढ़ा चुके हैं वो बिहार में नीतीश कुमार की सरकार में उनकी पार्टी को शामिल नहीं करने को लेकर पहले से ही नाराज चल रहे हैं. अकाली दल ने राज्यसभा में डिप्टी चेयरमैन का पद मांग कर बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं.

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इन सबके बीच यह देखना होगा कि पीएम मोदी और अमित शाह किस तरह से विपक्ष के साथ अपने सहयोगी दलों से निपटेंगे है.

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