दिल्ली में सर्दियों की शुरुआत होते ही प्रदूषण का स्तर भी तेजी से बढ़ने लगा है. गुरुवार सुबह शहर में वायु गुणवत्ता बेहद खराब श्रेणी में रही, जबकि आनंद विहार गंभीर श्रेणी में रही। दिवाली के बाद दिल्ली की वायु गुणवत्ता और भी खराब हो गई है और हवा की धीमी गति ने स्थिति और बदतर बना दी है।
ऐसे में राष्ट्रीय राजधानी और आसपास के क्षेत्रों में प्रदूषण से निपटने के लिए अब कृत्रिम बारिश (क्लाउड सीडिंग) का सहारा लिया जाएगा. क्लाउड सीडिंग को अंजाम देने वाला सेसना का विशेष एयरक्राफ्ट कानपुर से मेरठ के लिए रवाना हो चुका है. सूत्रों के अनुसार, बादलों की अनुकूल स्थिति को देखते हुए, कल शुक्रवार से लेकर अगले तीन दिनों (72 घंटों) में कभी भी क्लाउड सीडिंग की जा सकती है.
हालांकि भारत में नकली बादलों से असली बारिश कराना कोई नई बात नहीं है. आर्टिफिशियल तरीके से बारिश कराने का प्रयोग 1951 से अब तक कई बार किया जा चुका है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी के वैज्ञानिक भी इस बात की पुष्टि करते हैं. वहीं दुनिया में पहली बार 1946 में अमेरिका ने कृत्रिम बारिश का प्रयोग किया था.
भारत में कब-कब हुई कृत्रिम बारिश
1951 में पश्चिमी घाट, 2003-2004-2019 में कर्नाटक में, 2004 में महाराष्ट्र में, 2008 में आंध्र प्रदेश और तीन बार तमिलनाडु में कृत्रिम बारिश कराई जा चुकी है. इन राज्यों में सूखे से निपटने के लिए कृत्रिम बारिश कराई गई थी. यानी दिल्ली-एनसीआर में होने वाली आर्टिफिशियल बारिश का एक्सपेरिमेंट देश में पहली बार नहीं होगा.
भारत में सबसे पहले कृत्रिम बारिश की कोशिश 1951 में टाटा फर्म द्वारा पश्चिमी घाट पर जमीन आधारित सिल्वर आयोडाइड जनरेटर का इस्तेमाल करके किया गया था.
क्या है कृत्रिम बारिश कराने का तरीका
कृत्रिम वर्षा कराने के लिए क्लाउड सीडिंग एक प्रकार से मौसम में बदलाव का वैज्ञानिक तरीका है. इसके तहत आर्टिफिशियल तरीके से बारिश करवाई जाती है. इसके लिए विमानों को बादलों के बीच से गुजारा जाता है और उनसे सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस और क्लोराइड छोड़े जाते हैं.
इससे बादलों में पानी की बूंदें जम जाती हैं. यही पानी की बूंदें फिर बारिश बनकर जमीन पर गिरती हैं. हालांकि, यह तभी संभव होता है, जब वायुमंडल में पहले से पर्याप्त मात्रा में बादल मौजूद हों और हवा में नमी हो. यानी कम से कम 40 फीसदी पानी के साथ इतनी ही मात्रा में बादल.
दिल्ली में कैसे होगी कृत्रिम बारिश?
राजधानी में कृत्रिम बारिश के लिए पाइरोटेक्निक नामक विशेष तकनीक का उपयोग किया जाएगा. एयरक्राफ्ट की दोनों विंड्स (पंखों) के नीचे 8 से 10 पॉकेट (पाइरोटेक्निक फ्लेयर्स) रखी गई हैं, जिनके माध्यम से क्लाउड सीडिंग को अंजाम दिया जाएगा. एयरक्राफ्ट में मौजूद बटन दबाकर इन पॉकेट में रखे केमिकल्स को बादलों के नीचे ब्लास्ट किया जाएगा.
इस तकनीक में फ्लेयर्स निकलती हैं जो नीचे से ऊपर की ओर बादलों के साथ रिएक्ट करती हैं और संघनन (Condensation) को बढ़ाकर बारिश कराती हैं. इस क्लाउड सीडिंग का असर लगभग 100 किलोमीटर की रेंज में महसूस होने की संभावना है, जिससे दिल्ली-एनसीआर को प्रदूषण से राहत मिल सकती है.
केजरीवाल सरकार ने भी कृत्रिम बारिश का बनाया था प्लान
दिल्ली की पूर्व केजरीवाल सरकार ने भी प्रदूषण से निपटने के लिए कृत्रिम बारिश का प्लान तैयार किया था. आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने दिल्ली में धुंध साफ करने के लिए क्लाउड सीडिंग के जरिए कृत्रिम बारिश कराने का प्रोजेक्ट तैयार किया था और पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों ने इस परियोजना को मंजूरी दे दी थी. लेकिन किन्हीं कारणों से ऐसा नहीं हो सका.
aajtak.in