UP चुनाव: मायावती को बड़ा झटका देने की तैयारी में अखिलेश, सपा ने बसपा के लिए बनाया चक्रव्यूह

अखिलेश मायावती को लेकर मीडिया के सामने मुखर नही हैं पर जिस तरह से मायावती ने 2019 में गठबंधन तोड़ा और सपा पर आरोप लगाए उसको लेकर अखिलेश अब मायावती की पार्टी को तोड़ने में लग गए हैं. बिना कुछ बोले, बिना कुछ कहे अपनी मंद मंद मुस्कान से अपनी 'बुआ' की पार्टी कमजोर करने में लगे हैं.

Advertisement
फाइल फोटो फाइल फोटो

समर्थ श्रीवास्तव

  • लखनऊ,
  • 17 अक्टूबर 2021,
  • अपडेटेड 9:39 AM IST
  • अखिलेश सीधे तौर पर नहीं दे रहे मायावती के खिलाफ बयान
  • मायावती की पार्टी के बड़े नेताओं को अपने साथ लाने में जुटे अखिलेश

2019 लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा ने गठबंधन किया था. लेकिन चुनाव में मिली हार के बाद गठबंधन टूट गया. तभी से सपा और बसपा में मनमुटाव जारी है. हालांकि, अखिलेश यादव सीधे तौर पर बसपा प्रमुख मायावती के खिलाफ कुछ भी बोलने से बचते नजर आते हैं. लेकिन कहा जा रहा है कि अखिलेश इस चुप्पी के सहारे मायावती को बड़ा झटका देने की तैयारी में हैं. 

Advertisement

रविवार को बसपा के दिग्गज नेता और प्रदेश अध्यक्ष रहे आर एस कुशवाहा ने सपा की सदस्यता ली और शामिल होने के ठीक बाद उन्होंने कहा, "सब मौके की तलाश में हैं कि कब उन्हें मौका मिले और कब सपा की सरकार बनवा दें. बीएसपी में मैंने 30 साल तक काम किया, लेकिन जो बाबा साहेब का नारा था, आज वो पार्टी अपने मूल विचार से भटक गई है. इसलिए आज एक एक करके सब पुराने साथी दुखी होकर सपा में आ रहे हैं. बड़ी तादाद में आ रहे हैं.''

ऐसा नहीं है कि बसपा नेताओं का एकदम से अपनी पार्टी से मोहभंग हो गया. यह माइंड गेम पहले से चल रहा है. आइए समझते हैं, आखिर क्या है अखिलेश का माइंड गेम. 

मायावती की पार्टी तोड़ने में जुटे अखिलेश 

अखिलेश मायावती को लेकर मीडिया के सामने मुखर नही हैं पर जिस तरह से मायावती ने 2019 में गठबंधन तोड़ा और सपा पर आरोप लगाए उसको लेकर अखिलेश अब मायावती की पार्टी को तोड़ने में लग गए हैं. बिना कुछ बोले, बिना कुछ कहे अपनी मंद मंद मुस्कान से अपनी 'बुआ' की पार्टी कमजोर करने में लगे हैं. 

Advertisement

अखिलेश की कोशिश है कि एंटी बीजेपी वोट सिर्फ सपा को जाए, जिसके चलते उनकी नजर मायावती के बड़े नेताओं पर है. यूं तो मायावती 4 बार सीएम रही हैं और अखिलेश एक दफा, पर अखिलेश अपनी अनकही नीति से बसपा को चारों खाने चित्त करना चाहते हैं. यूपी चुनाव से पहले हर राजनीतिक दल माहौल बनाना चाहता है और सपा भी ठीक वैसा ही कर रही है. अखिलेश यादव ऐसे ही बसपा के दिग्गज नेताओं को शामिल नहीं कर रहे हैं, बल्कि माहौल बनाकर कर रहे हैं. 

सब कुछ प्लान के तहत हो रहा

सबसे पहले अखिलेश उन बड़े नेताओं से मिलते हैं, फिर सोशल मीडिया पर एक शिष्टाचार भेंट के कैप्शन के साथ उनके साथ तस्वीर साझा करते हैं, चर्चाएं होती हैं कि मायावती के बड़े नेता अखिलेश के दरवाजे में लाइन लगा रहे हैं. उसके ठीक कुछ दिन बाद उनको पार्टी में शामिल कर लिया जाता है. 

इन नेताओं ने थामा सपा का दामन

लगभग एक महीने पहले बसपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे आर एस कुशवाहा के साथ अखिलेश ने तस्वीर साझा की थी, जिसके बाद यह साफ हो गया था कि मायावती को एक बड़ा झटका लगने वाला है. उससे कुछ दिन पहले अखिलेश ने एक तस्वीर साझा कि जिसमें उनके अगल-बगल बीएसपी की रीढ़ की हड्डी कहे जाने वाले लाल जी वर्मा और राम अचल राजभर मौजूद थे, माहौल बना, फिर पार्टी सूत्रों से पता चला कि अखिलेश अंबेडकरनगर में बड़ी रैली में दोनों को पार्टी में शामिल करवाएंगे. 

Advertisement

बीएसपी के वीर सिंह, मायावती के बेहद करीबी नेता, सपा में आए. उदय लाल मौर्य दो बार बीएसपी के विधायक रहे वो भी कुशवाहा के साथ आ गए. बीएसपी में 6 विधायकों को हाल ही में निष्कासित किया था, वह भी आजकल अखिलेश के साथ ही नजर आ रहे हैं. मुज़फ्फरनगर से सांसद रहे कादिर राणा मायावती के सहयोगी नेता कहे जाते थे और उनका अपने क्षेत्र में वर्चस्व रहा पर, आज वो भी अखिलेश के साथ आ गए.  

माहौल बनाने में जुटे अखिलेश

बताया जा रहा है कि इन सब के जरिए अखिलेश एक माहौल भी बनाना चाहते हैं कि इस बार यूपी में सपा सरकार बन रही है. ऐसा पहली बार नहीं है, पहले भी जब चुनाव नजदीक आए हैं और अंदेशा हुआ है कि कोई पार्टी कड़ी टक्कर दे रही है या पावर में आ सकती है तो बसपा के बड़े नेता दूसरी पार्टियों में गए हैं. मोदी लहर के बीच 2017 यूपी चुनाव से पहले भी बसपा के दिग्गज नेता कहे जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक भाजपा से आ मिले थे. ठीक वही फॉर्मूला इस बार सपा भी इस्तेमाल करती नजर आ रही है. 

अखिलेश जानते हैं कि यादव और मुस्लिम पहले से ही उनके साथ हैं तो अब वह पिछड़े वर्ग को साधने की कोशिश में जुट गए हैं. अखिलेश यादव से जब आज तक ने इस बारे में सवाल भी किया तो उन्होंने यही कहा कि एक समय था जब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और राम मनोहर लोहिया साथ में मिलकर काम करना चाहते थे, तो यह वही लोग हैं जो अंबेडकर के रास्ते पर चलने वाले हैं, संविधान को बचाने वाले हैं. इस बयान के कई मायने हैं, उन्होंने बिना बोले मायावती पर यह हमला बोल दिया कि अब बसपा अंबेडकर के पद चिन्हों पर नहीं चलती है. 

Advertisement


 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement