बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, राज्य के चुनावी समीकरण में महिलाएं एक बार फिर केंद्र में आ गई हैं. हाल ही में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 35% आरक्षण की घोषणा की है. यह कदम उनकी उस रणनीति का हिस्सा है, जिससे उन्होंने महिला वोटरों का बड़ा समर्थन हासिल किया है.
नीतीश कुमार को कई कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से महिला मतदाताओं के बीच एक वफादार आधार बनाने का श्रेय दिया जाता है. पिछले 15 सालों से बिहार की राजनीति में महिला वोटरों का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है.
2020 के विधानसभा चुनाव में 243 में से 167 सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों से ज़्यादा वोट डाले और इनमें से ज़्यादातर सीटें उत्तरी बिहार में थीं, जहां NDA को भारी बहुमत मिला था.
बदल गया है चुनावी ट्रेंड
आगामी 2025 के चुनावों के लिए पार्टियों ने रणनीतियां बनानी शुरू कर दी हैं, लेकिन एक ट्रेंड को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि महिलाएं बड़ी संख्या में वोट देने निकल रही हैं. यह अब महज़ एक इत्तेफाक नहीं, बल्कि एक पैटर्न बन चुका है.
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यह ट्रेंड अचानक नहीं आया, बल्कि बीते 15 वर्षों में महिला वोटरों की सक्रियता बिहार की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभा रही है.
2020 के विधानसभा चुनावों में जहां पुरुषों का मतदान प्रतिशत 54% था, वहीं महिलाओं का 60% था. 166 सीटों पर महिला वोटरों ने पुरुषों को पछाड़ा. सबसे बड़ा अंतर पूर्णिया के बैसी में देखने को मिला, जहां महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से 22% ज़्यादा था.
इसके बाद कुशेश्वरस्थान में यह अंतर 21% था. ये दोनों सीटें NDA ने जीती थीं, जिसमें नीतीश कुमार की पार्टी एक अहम हिस्सा रही है. इसके उलट, पटना ज़िले की बिक्रम सीट पर पुरुषों ने महिलाओं से 11% ज़्यादा वोट डाले और यह सीट महागठबंधन ने जीती थी.
2010 से हुई शुरुआत
यह ट्रेंड 2015 में और भी स्पष्ट था, जब 202 सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों से ज़्यादा मतदान किया था. उत्तरी बिहार एक बार फिर महिला वोटरों के बढ़ते प्रभाव का केंद्र बना रहा.
यह बदलाव 2010 में शुरू हुआ, जो बिहार के लैंगिक मतदान परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, उस वर्ष, 162 निर्वाचन क्षेत्रों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से अधिक रहा. यह पहली बार था जब कुल महिला मतदान प्रतिशत पुरुषों से अधिक रहा.
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महिला मतदाताओं का प्रभाव अभी भी मज़बूत है, मधुबनी, जहां 10 विधानसभा क्षेत्र हैं, वहां 2020 के विधानसभा चुनावों में आठ सीटें एनडीए को मिलीं. सुपौल ज़िले की सभी पांच सीटें एनडीए ने जीतीं. सीतामढ़ी में, एनडीए ने आठ में से छह सीटें जीतीं, जबकि दरभंगा में, पिछले चुनावों में उसने दस में से नौ सीटें जीतीं.
दशकों तक, बिहार के मतदान प्रतिशत में पुरुषों का दबदबा रहा. 1962 के विधानसभा चुनावों में, 55% पुरुषों ने मतदान किया, जबकि महिलाओं ने केवल 32% मतदान किया. यह लैंगिक अंतर 2000 तक बना रहा. फरवरी 2005 तक, यह कम होने लगा था- उस वर्ष हुए दो विधानसभा चुनावों में से पहले चुनाव में 50% पुरुषों और 43% महिलाओं ने वोट डाला.
फिर 2010 आया, जो ऐतिहासिक मोड़ था: 54% महिलाओं ने मतदान किया, जो पहली बार पुरुषों के 51% मतदान प्रतिशत से अधिक था. 2015 में, यह अंतर और बढ़ गया, जहां 60% महिलाओं ने मतदान किया जबकि पुरुषों ने केवल 50% मतदान किया.
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1962 के बाद से, महिलाओं के मतदान प्रतिशत में 28 प्रतिशत अंकों की वृद्धि हुई है, जिसने मतदान केंद्र में लैंगिक अंतर को प्रभावी ढंग से समाप्त कर दिया है और महिलाओं को आज बिहार में सबसे शक्तिशाली मतदाता समूहों में से एक के रूप में स्थापित किया है.
1962 से 2015 तक का सफर
1962 के विधानसभा चुनाव में 55% पुरुषों ने वोट डाला था, जबकि महिलाओं का प्रतिशत महज़ 32% था. यह अंतर 2000 तक बना रहा. 2005 तक यह फासला कम होने लगा और 50% पुरुषों के मुकाबले 43% महिलाओं ने वोट दिया. 2010 का साल ऐतिहासिक रहा, जब पहली बार महिलाओं का मतदान प्रतिशत (54%) पुरुषों (51%) से ज़्यादा हुआ. 2015 में यह अंतर और बढ़ गया, जब 60% महिलाओं के मुकाबले सिर्फ़ 50% पुरुषों ने वोट डाले.
1962 से अब तक महिलाओं के मतदान प्रतिशत में 28% की वृद्धि हुई है, जिसने चुनावी गणित को पूरी तरह से पलट दिया है. अब बिहार में महिलाएँ सबसे शक्तिशाली वोटिंग ब्लॉक बन चुकी हैं.
शुभम सिंह