कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने 16 दिसंबर को पुणे में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में विवादास्पद बयान दिया, जिसने पूरे देश में राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया. उन्होंने हालिया ऑपरेशन सिंदूर का उदाहरण देते हुए कहा कि इस ऑपरेशन में थलसेना की एक किलोमीटर भी हलचल नहीं हुई. सब कुछ सिर्फ हवाई और मिसाइल युद्ध था.
उन्होंने सवाल उठाया कि भविष्य में भी युद्ध इसी तरह लड़े जाएंगे – हवाई और मिसाइल से. ऐसे में क्या हमें 12 लाख सैनिकों वाली बड़ी थलसेना रखने की जरूरत है? या इन सैनिकों को दूसरे कामों में लगाया जा सकता है?
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यह बयान इसलिए और विवादास्पद है क्योंकि सरकारी और सैन्य सूत्रों के अनुसार, ऑपरेशन सिंदूर भारत की रणनीतिक सफलता थी. मई 2025 में पहलगाम में 26 नागरिकों की हत्या के जवाब में भारत ने पाकिस्तान और PoK में आतंकी ठिकानों पर सटीक मिसाइल और हवाई हमले किए.
ऑपरेशन 10 मई को सीजफायर के साथ खत्म हुआ. इसे भारत की संयमित लेकिन दृढ़ कार्रवाई माना गया. चव्हाण के बयान पर बीजेपी ने तीखा हमला बोला है. भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा कि कांग्रेस की पहचान ही सेना का अपमान करना है. यह सरेंडर माइंडसेट है. कई लोगों ने इसे सेना के मनोबल पर हमला बताया है.
चव्हाण का तर्क है कि आधुनिक युद्ध अब टेक्नोलॉजी आधारित हो गए हैं – ड्रोन, मिसाइल, साइबर और प्रिसिजन स्ट्राइक की भूमिका बढ़ गई है. बड़ी इन्फैंट्री (पैदल सेना) की जरूरत कम हो रही है. यह सुझाव आंशिक रूप से सही है...
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व्यावहारिक पक्ष...
अव्यावहारिक और जोखिम भरा पक्ष...
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को सेना को आधुनिक बनाना चाहिए (टेक्नोलॉजी बढ़ाकर संख्या स्थिर रखते हुए), लेकिन बड़ी कटौती अभी जोखिम भरी होगी.
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चव्हाण के सुझाव के विपरीत, वैश्विक ट्रेंड सेनाओं और रक्षा खर्च में बढ़ोतरी का है. SIPRI की 2025 रिपोर्ट के अनुसार...
सेना के कर्मियों की संख्या में भी कुल बढ़ोतरी (खासकर यूरोप और एशिया में). कुछ विकसित देश टेक्नोलॉजी पर फोकस करके संख्या स्थिर रख रहे हैं.
ये पांच देश दुनिया के कुल खर्च का 60% हिस्सा खर्च करते हैं.
कुल मिलाकर, वैश्विक ट्रेंड बढ़ोतरी का है. शांति की उम्मीद कम है. खर्च आगे बढ़ेगा. भारत जैसे देशों के लिए संतुलन जरूरी – टेक्नोलॉजी अपनाओ, लेकिन जमीनी ताकत बनाए रखो.
ऋचीक मिश्रा