भारत के दुश्मनों पर बरसेंगी इजरायली मिसाइलें... सुखोई में ब्रह्मोस के साथ LORA तैनात करने की प्लानिंग

ब्रह्मोस के बावजूद भारतीय वायुसेना LORA मिसाइल पर विचार कर रही है, क्योंकि यह ब्रह्मोस का पूरक है, न कि प्रतिस्पर्धी. LORA की 400-430 किमी रेंज, सटीकता और सस्ती लागत इसे गहरे और सुरक्षित हमलों के लिए उपयुक्त बनाती है. ऑपरेशन सिंदूर की सफलता और सीमा पर बढ़ते खतरे ने इसकी जरूरत को और बढ़ाया है.

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इजरायली कंपनी बनाती है LORA मिसाइल. (फाइल फोटोः Israel Aerospace Industries) इजरायली कंपनी बनाती है LORA मिसाइल. (फाइल फोटोः Israel Aerospace Industries)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 10 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 1:14 PM IST

भारतीय वायुसेना (IAF) ने एक नई रणनीति के तहत इजरायल की एयर लॉन्ग रेंज अटैक (LORA) मिसाइल को अपने लड़ाकू विमानों, जैसे सु-30 एमकेआई में शामिल करने पर विचार शुरू किया है. हालांकि भारत के पास पहले से ही ब्रह्मोस मिसाइल है, फिर भी LORA को अपनाने की योजना क्यों? 

यह सवाल तब उठा जब ऑपरेशन सिंदूर में रैम्पेज मिसाइल की सफलता के बाद IAF ने इसकी खोज शुरू की. LORA की 400-430 किमी की रेंज इसे दुश्मन के गहरे ठिकानों पर सुरक्षित हमले करने में सक्षम बनाती है, जो ब्रह्मोस के साथ मिलकर IAF की ताकत को और बढ़ाएगी. 

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LORA मिसाइल क्या है?

LORA एक सुपरसोनिक क्वासी-बैलिस्टिक मिसाइल है, जिसे इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (IAI) ने बनाया है. इसे हवा से छोड़ा जा सकता है. यह लड़ाकू विमानों जैसे सु-30 एमकेआई से लॉन्च करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. इसकी खासियतें हैं... 

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  • रेंज: 400-430 किमी, जो इसे दूर के दुश्मन ठिकानों पर हमला करने में सक्षम बनाती है.
  • गति: लगभग 6,174 किमी/घंटा.
  • सटीकता: 10 मीटर से कम का सर्कुलर एरर प्रोबेबल (CEP), जो इसे निशाने पर सटीक मार करने की क्षमता देता है.
  • प्रणाली: फायर-एंड-फॉरगेट तकनीक और उड़ान के दौरान अपडेट लेने की क्षमता.
  • उपयोग: यह हाई-वैल्यू टारगेट्स (जैसे दुश्मन के कमांड सेंटर या रडार) पर गहरे और सुरक्षित हमले के लिए उपयुक्त है.

LORA को ऑपरेशन सिंदूर (मई 2025) में रैम्पेज मिसाइल की सफलता के बाद IAF ने गंभीरता से देखना शुरू किया, जिसमें भारतीय वायुसेना के जगुआर जेट्स ने पाकिस्तान के सुखर बेस पर सटीक हमले किए थे.

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ब्रह्मोस से क्यों अलग LORA?

भारत के पास पहले से ब्रह्मोस मिसाइल है, जो एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है. 290-450 किमी (नवीनतम वर्जन) की रेंज के साथ मैक 2.8-3 की गति से उड़ती है. फिर LORA की जरूरत क्यों पड़ी? इसका जवाब इन अंतरों में है... 

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रेंज और ट्रैजेक्ट्री

ब्रह्मोस एक लो-ऑल्टिट्यूड क्रूज मिसाइल है, जो समुद्र तल के करीब उड़ती है, जिससे यह दुश्मन की एयर डिफेंस को भेदने में सक्षम है.
LORA एक क्वासी-बैलिस्टिक मिसाइल है, जो ऊंचाई से लॉन्च होती है और एक लोफ्टेड (ऊपर की ओर) ट्रैजेक्ट्री अपनाती है. यह दुश्मन के रडार को चकमा देने में मदद करती है. 430 किमी तक गहरे हमले कर सकती है.

लागत और उपलब्धता

ब्रह्मोस एक संयुक्त भारत-रूस प्रोजेक्ट है, जो महंगा है (प्रति मिसाइल की लागत 20-30 करोड़ रुपये) और निर्यात पर पाबंदी है.
LORA सस्ती और निर्यात करने योग्य है, जिससे इसे आसानी से खरीदा और स्टोर किया जा सकता है.

कंपेटिबल जेट 

ब्रह्मोस को सु-30 एमकेआई पर एक विशेष मॉड (संशोधन) के साथ लॉन्च किया जाता है, जो सीमित संख्या में ही संभव है. LORA को मौजूदा सु-30 एमकेआई विमानों में आसानी से एकीकृत किया जा सकता है, जिससे इसे तुरंत इस्तेमाल में लाया जा सकता है.

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रणनीतिक लचीलापन

ब्रह्मोस भारी हमले के लिए उपयुक्त है, जैसे दुश्मन के बंकर या बड़े ठिकाने. LORA हल्की, सटीक और लंबी दूरी के प्री-एम्प्टिव (आक्रमण से पहले) हमलों के लिए बेहतर है, जैसे दुश्मन के कमांड सेंटर या रडार सिस्टम.

इसलिए, IAF LORA को ब्रह्मोस का पूरक (कंप्लीमेंट) मान रही है, न कि इसका विकल्प. दोनों मिसाइलें अलग-अलग रणनीतियों के लिए काम करेंगी. 

LORA को अपनाने की वजह

ऑपरेशन सिंदूर की सफलता: मई 2025 में ऑपरेशन सिंदूर में रैम्पेज मिसाइल की सफलता ने IAF को लंबी दूरी की मिसाइलों पर भरोसा बढ़ाया. LORA इसी रणनीति को आगे बढ़ाएगी. यह मिसाइल दुश्मन के इलाके में गहरे प्रवेश (डेप्थ स्ट्राइक) के लिए सुरक्षित रहेगी, क्योंकि विमान को सीमा के पास जाने की जरूरत नहीं होगी.

पाकिस्तान और चीन के खतरे

पाकिस्तान की हवा से बचाव प्रणाली (एयर डिफेंस) और चीन की एडवांस्ड HQ-9 मिसाइलें IAF के लिए चुनौती हैं. LORA की ऊंची ट्रैजेक्ट्री और गति इसे इन सिस्टमों से बचाने में मदद करेगी. 400-430 किमी की रेंज से कराची, रावलपिंडी या LAC पर चीनी ठिकानों पर हमला संभव होगा.

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मेक इन इंडिया का सहयोग

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LORA को भारत में भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) के साथ IAI के सहयोग से बनाया जा सकता है. यह तकनीक हस्तांतरण और नौकरियों को बढ़ावा देगा. यह ‘आत्मनिर्भर भारत’ के तहत भारत को मिसाइल निर्यातक बनने का मौका दे सकता है.

ब्रह्मोस की सीमाएं

ब्रह्मोस की भारी वजन (2.5 टन) और सीमित विमान संगतता इसे हर मिशन के लिए उपयुक्त नहीं बनाती. LORA का हल्का और लचीला डिज़ाइन इसे हर तरह के ऑपरेशन के लिए तैयार करता है.

LORA और ब्रह्मोस का संयोजन

IAF का लक्ष्य दोनों मिसाइलों का उपयोग करना है...

ब्रह्मोस: भारी और त्वरित हमले, जैसे दुश्मन के बड़े ठिकानों पर.
LORA: सटीक और गहरे प्री-एम्प्टिव हमले, जैसे दुश्मन के कमांड सेंटर या रडार को निष्क्रिय करना.

उदाहरण के लिए, अगर युद्ध में दुश्मन की एयर डिफेंस को तोड़ना हो, तो ब्रह्मोस का इस्तेमाल हो सकता है. उसके बाद LORA से ठिकानों पर हमला किया जा सकता है. यह संयोजन IAF को रणनीतिक बढ़त देगा.

भविष्य की योजना

IAF LORA को शामिल करने के लिए IAI और BEL के साथ बातचीत कर रही है. अगर सब कुछ ठीक रहा, तो 2026-27 तक पहला स्क्वाड्रन (18 मिसाइलें) तैनात हो सकता है. यह कदम भारत को क्षेत्रीय शक्तियों (चीन और पाकिस्तान) के खिलाफ मजबूत करेगा और IAF की मारक क्षमता को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा.

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