हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल, ब्रह्मोस-2... भारत के फ्यूचर वेपन जो PAK-चीन के होश उड़ा देंगे

हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल (HSTDV) और ब्रह्मोस-2 मिसाइल भारत के भविष्य के हथियार हैं, जो अपनी गति, सटीकता और रडार-बचाव क्षमता के कारण पाकिस्तान और चीन जैसे प्रतिद्वंद्वियों के लिए एक बड़ा खतरा बनेंगे. ये हथियार न केवल भारत की रक्षा को अजेय बनाएंगे, बल्कि वैश्विक रक्षा बाजार में भारत को एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करेंगे.

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भारत मे कई नए हथियार बनाए जा रहे हैं जो भविष्य में पाक-चीन की हालत खराब कर देंगे. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी) भारत मे कई नए हथियार बनाए जा रहे हैं जो भविष्य में पाक-चीन की हालत खराब कर देंगे. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 12 मई 2025,
  • अपडेटेड 1:10 PM IST

'ऑपरेशन सिंदूर' जैसे हाल के अभियानों ने ब्रह्मोस-1 की ताकत को प्रदर्शित किया है. ब्रह्मोस-2 व HGV के आने से भारत की सैन्य शक्ति कई गुना बढ़ जाएगी. ये हथियार न केवल तकनीकी चमत्कार हैं, बल्कि भारत की रणनीतिक आत्मविश्वास और सांस्कृतिक विरासत (जैसे 'ब्रह्मास्त्र' से प्रेरणा) का प्रतीक भी हैं. आने वाले वर्षों में ये हथियार पाकिस्तान और चीन के होश उड़ाने के साथ-साथ भारत को वैश्विक सैन्य शक्ति के रूप में स्थापित करेंगे.

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1. हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल (HGV): युद्ध का भविष्य

हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल (HGV) एक ऐसी उन्नत तकनीक है, जो हाइपरसोनिक गति (मैक 5 से अधिक, यानी ध्वनि की गति से 5 गुना तेज) पर उड़ान भरने और रडार से बचते हुए लक्ष्य को सटीकता से भेदने में सक्षम है. भारत का हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल (HSTDV) इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसे DRDO विकसित कर रहा है.

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विशेषताएं

  • गति: HSTDV मैक 6 से मैक 12 (लगभग 7,400-14,800 किमी/घंटा) की गति प्राप्त कर सकता है, जिससे दुश्मन को प्रतिक्रिया का समय लगभग शून्य हो जाता है.
  • रेंज: इसकी रेंज 1,500-2,000 किलोमीटर तक हो सकती है, जो इसे पूरे पाकिस्तान और चीन के बड़े हिस्से को कवर करने में सक्षम बनाती है.
  • मार्गदर्शन और गतिशीलता: HGV पारंपरिक बैलिस्टिक मिसाइलों की तरह निश्चित प्रक्षेपवक्र पर नहीं उड़ता. यह उड़ान के दौरान दिशा बदल सकता है, जिससे इसे इंटरसेप्ट करना लगभग असंभव हो जाता है.
  • पेलोड: यह पारंपरिक और परमाणु दोनों तरह के वॉरहेड ले जाने में सक्षम है, जिससे यह रणनीतिक और सामरिक दोनों भूमिकाओं के लिए उपयुक्त है.
  • स्क्रैमजेट इंजन: HSTDV स्क्रैमजेट (Supersonic Combustion Ramjet) तकनीक पर आधारित है, जो इसे हाइपरसोनिक गति पर लंबी दूरी तक उड़ान भरने की क्षमता देता है.

विकास की स्थिति

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DRDO ने सितंबर 2020 में HSTDV का पहला सफल परीक्षण किया, जिसमें स्क्रैमजेट इंजन ने मैक 6 की गति प्राप्त की. नवंबर 2024 तक, भारत ने कई और परीक्षण किए, जिनमें हाइपरसोनिक गति और गतिशीलता को और बेहतर किया गया. अगले 2-3 वर्षों में HSTDV को पूरी तरह ऑपरेशनल करने की योजना है, जिसके बाद इसे मिसाइलों और ड्रोन्स में एकीकृत किया जाएगा.

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पाकिस्तान और चीन के लिए खतरा

पाकिस्तान: HSTDV की गति और रेंज इसे लाहौर (30-40 सेकंड), इस्लामाबाद (2-3 मिनट), और कराची (3-4 मिनट) जैसे शहरों को तुरंत निशाना बनाने में सक्षम बनाती है. इसकी रडार-बचाव क्षमता पाकिस्तान की HQ-9 और FM-90 जैसी वायु रक्षा प्रणालियों को बेकार कर देती है.

चीन: HSTDV की रेंज और गतिशीलता इसे बीजिंग, शंघाई, और दक्षिण चीन सागर में चीनी नौसैनिक ठिकानों को निशाना बनाने में सक्षम बनाती है. चीन की S-400 और HQ-9 प्रणालियां भी इसे ट्रैक करने में असमर्थ हैं.

रणनीतिक प्रभाव: HGV की तैनाती से भारत को प्रथम हमले और जवाबी हमले दोनों में बढ़त मिलेगी, जिससे पाकिस्तान और चीन की रणनीति पर गहरा प्रभाव पड़ेगा.

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2. ब्रह्मोस-2: हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल का नया युग

ब्रह्मोस-2, भारत और रूस के संयुक्त उद्यम ब्रह्मोस एयरोस्पेस द्वारा विकसित एक हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल है, जो मौजूदा ब्रह्मोस-1 का उन्नत संस्करण है. यह मिसाइल अपनी गति, रेंज और स्टील्थ क्षमताओं के कारण दुनिया की सबसे तेज और घातक क्रूज मिसाइल बनने की ओर अग्रसर है.

विशेषताएं

  • गति: ब्रह्मोस-2 मैक 7-8 (लगभग 8,600-9,800 किमी/घंटा) की गति से उड़ान भरेगी, जो इसे मौजूदा ब्रह्मोस-1 (मैक 2.8-3.0) से दोगुना तेज बनाती है.
  • रेंज: इसकी रेंज 1,500 किलोमीटर तक होगी, जो भारत को पाकिस्तान और चीन के गहरे क्षेत्रों में हमला करने की क्षमता देगी.
  • लॉन्च प्लेटफॉर्म: इसे जमीन, समुद्र, पनडुब्बी और हवा (सुखोई Su-30MKI जैसे लड़ाकू विमानों) से लॉन्च किया जा सकता है.
  • स्टील्थ और मैन्युवरेबिलिटी: ब्रह्मोस-2 में उन्नत स्टील्थ तकनीक और मैन्युवरिंग क्षमता होगी, जो इसे दुश्मन के रडार और मिसाइल रक्षा प्रणालियों से बचाने में मदद करेगी.
  • पेलोड: यह 200-300 किलोग्राम के पारंपरिक या परमाणु वॉरहेड ले जा सकती है, जो इसे सर्जिकल स्ट्राइक और बड़े पैमाने पर हमलों के लिए उपयुक्त बनाता है.

विकास की स्थिति

ब्रह्मोस-2 का डिजाइन 2011 तक पूरा हो चुका था, और 2012 से इसके प्रोटोटाइप पर काम शुरू हुआ. अप्रैल 2025 में बंगाल की खाड़ी में इसका एक सफल परीक्षण किया गया, जिसमें 800 किलोमीटर की रेंज हासिल की गई.

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नवंबर 2025 में अगला परीक्षण निर्धारित है, जिसमें स्टील्थ और सटीकता को और बेहतर किया जाएगा. मिसाइल को 2027-2028 तक भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना में शामिल करने की योजना है.

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पाकिस्तान और चीन के लिए खतरा

पाकिस्तान: ब्रह्मोस-2 की हाइपरसोनिक गति इसे पाकिस्तान के प्रमुख सैन्य ठिकानों, जैसे मुर्री, रावलपिंडी और ग्वादर को सेकंडों में नष्ट करने में सक्षम बनाती है. इसकी स्टील्थ क्षमता पाकिस्तान की रडार प्रणालियों (जैसे HQ-9 और FM-90) को अप्रभावी कर देती है.

चीन: ब्रह्मोस-2 की 1,500 किलोमीटर की रेंज इसे दक्षिण चीन सागर और तिब्बत में चीनी सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने में सक्षम बनाती है. यह चीनी नौसेना के युद्धपोतों और विमानवाहक पोतों के लिए भी खतरा है.

रणनीतिक प्रभाव: ब्रह्मोस-2 की तैनाती से भारत को समुद्री और जमीनी दोनों मोर्चों पर बढ़त मिलेगी, जिससे चीन की आक्रामक समुद्री गतिविधियों और पाकिस्तान की सीमा-पार आतंकवाद की रणनीति को चुनौती मिलेगी.

3. डायरेक्टेड एनर्जी वेपन्स (Directed Energy Weapons - DEW)

डायरेक्टेड एनर्जी वेपन्स (DEW) ऐसी उन्नत तकनीक आधारित हथियार प्रणालियां हैं, जो विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा (जैसे लेजर, माइक्रोवेव, या पार्टिकल बीम) का उपयोग करके लक्ष्य को नष्ट करती हैं. ये हथियार अपनी गति, सटीकता और लागत-प्रभावी प्रकृति के कारण भविष्य के युद्धक्षेत्र में क्रांतिकारी साबित हो सकते हैं. भारत में DRDO इस क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम कर रहा है.

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विशेषताएं

  • प्रकार: DEW में मुख्य रूप से लेजर-आधारित हथियार (High-Energy Lasers - HEL) और हाई-पावर माइक्रोवेव (HPM) हथियार शामिल हैं.
  • गति: ये हथियार प्रकाश की गति से हमला करते हैं, जिससे लक्ष्य को बचने का समय नहीं मिलता.
  • लक्ष्य: ड्रोन्स, मिसाइलों, विमानों और छोटे नौसैनिक जहाजों को नष्ट करने में सक्षम.
  • रेंज: प्रारंभिक मॉडल की रेंज 2-10 किलोमीटर है, जिसे भविष्य में बढ़ाया जाएगा.
  • लागत-प्रभावी: पारंपरिक मिसाइलों की तुलना में DEW का प्रति शॉट खर्च बहुत कम है.

विकास की स्थिति

DRDO ने 2018 में लेजर-आधारित DEW का प्रारंभिक परीक्षण शुरू किया था. 2020 में 2 kW और 10 kW की लेजर प्रणालियों का प्रदर्शन किया गया. 

  • लेजर डेजलर: DRDO ने छोटे पैमाने पर लेजर डेजलर विकसित किया है, जो दुश्मन के सेंसर और ऑप्टिक्स को अंधा कर सकता है.
  • वाहन-माउंटेड DEW: 2022 में DRDO ने एक 10 kW लेजर हथियार का परीक्षण किया, जो 1.5 किमी दूर ड्रोन को नष्ट करने में सक्षम था.
  • नौसैनिक और वायु उपयोग: 2024 तक DEW को नौसैनिक जहाजों और वायु रक्षा प्रणालियों में एकीकृत करने की योजना पर काम चल रहा है.

नवंबर 2025 तक, DRDO 25 kW और 50 kW की लेजर प्रणालियों पर काम कर रहा है, जो मिसाइलों और लड़ाकू विमानों को निशाना बना सकती हैं.

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सामरिक महत्व

ड्रोन और मिसाइल रक्षा: DEW ड्रोन्स और क्रूज मिसाइलों जैसे कम लागत वाले खतरों को तेजी से नष्ट कर सकता है, जो पाकिस्तान और चीन जैसे देशों की रणनीति का हिस्सा हैं.

पाकिस्तान और चीन के लिए खतरा: DEW की तैनाती से भारत की सीमाओं पर दुश्मन के हवाई हमलों और ड्रोन घुसपैठ को रोकने की क्षमता बढ़ेगी. 

लागत और दक्षता: बार-बार उपयोग की जा सकने वाली DEW प्रणाली पारंपरिक हथियारों की तुलना में लंबे समय में किफायती है.

चुनौतियां

ऊर्जा स्रोत: DEW को संचालित करने के लिए उच्च ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिसके लिए उन्नत बैटरी और पावर जनरेटर चाहिए.

मौसम की सीमाएं: कोहरा, बारिश और धूल लेजर की प्रभावशीलता को कम कर सकते हैं.

स्केलिंग: बड़े पैमाने पर DEW को तैनात करने के लिए अभी तकनीकी और वित्तीय चुनौतियां बाकी हैं.

भविष्यः DRDO 2030 तक 100 kW की लेजर प्रणाली विकसित करने की योजना बना रहा है, जो बैलिस्टिक मिसाइलों को भी नष्ट कर सकेगी. यह भारत को अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों की श्रेणी में लाएगा, जो DEW के क्षेत्र में अग्रणी हैं.

4. नौसैनिक जहाज पर ड्रोन

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भारतीय नौसेना ने हाल के वर्षों में ड्रोन तकनीक को अपने नौसैनिक जहाजों में एकीकृत करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. ये ड्रोन निगरानी, टोही, और सटीक हमलों के लिए उपयोग किए जाते हैं, जिससे नौसेना की सामरिक और रणनीतिक क्षमता में वृद्धि हुई है.

विशेषताएं

प्रकार: भारतीय नौसेना विभिन्न प्रकार के ड्रोन्स का उपयोग करती है, जैसे हेरोन मार्क 2 (इजरायल से प्राप्त), सी गार्डियन MQ-9B (अमेरिका से लीज पर), और स्वदेशी ड्रिस्टी ड्रोन.

क्षमताएं

  • निगरानी और टोही: ड्रोन 36-45 घंटे तक उड़ान भर सकते हैं और 35,000 फीट की ऊंचाई पर रियल-टाइम इमेजरी प्रदान करते हैं.
  • हमला: हेरॉन मार्क 2 और सी गार्डियन लेजर-गाइडेड बम, हवा-से-जमीन मिसाइल और एंटी-टैंक मिसाइल ले जा सकते हैं.
  • संचार: सैटेलाइट-आधारित संचार प्रणाली के माध्यम से ड्रोन ग्राउंड स्टेशन से जुड़े रहते हैं.
  • प्लेटफॉर्म: ड्रोन्स को INS विक्रांत, INS विशाखापट्टनम और अन्य युद्धपोतों से संचालित किया जा सकता है.
  • स्वदेशी ड्रोन: DRDO और निजी कंपनियां (जैसे टाटा और आदानी) स्वदेशी ड्रोन विकसित कर रही हैं, जैसे TAPAS-BH (Tactical Airborne Platform for Aerial Surveillance-Beyond Horizon).

विकास और तैनाती

हेरोन मार्क 2: 2020 के भारत-चीन सीमा विवाद के दौरान लद्दाख में तैनात किए गए. ये ड्रोन अब नौसैनिक जहाजों से हिंद महासागर में निगरानी के लिए उपयोग हो रहे हैं.

सी गार्डियन MQ-9B: 2020 में भारत ने अमेरिका से 2 ड्रोन लीज पर लिए, जिन्हें INS राजाली (अरक्कोणम) से संचालित किया जाता है. ये ड्रोन हिंद महासागर में चीनी और पाकिस्तानी नौसैनिक गतिविधियों पर नजर रखते हैं.

TAPAS-BH: DRDO का स्वदेशी ड्रोन, जिसका परीक्षण 2023 में सफल रहा. यह 2026 तक नौसेना में शामिल होने की उम्मीद है.

INS अन्वेष: यह DRDO का तैरता हुआ टेस्ट रेंज जहाज है, जो ड्रोन और मिसाइल परीक्षणों के लिए उपयोग होता है. यह नौसैनिक ड्रोन संचालन में भी सहायक है.

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सामरिक महत्व

हिंद महासागर में निगरानी: ड्रोन ग्वादर (पाकिस्तान) और जिबूती (चीन का सैन्य अड्डा) जैसे रणनीतिक ठिकानों पर नजर रखते हैं.

पाकिस्तान और चीन के लिए खतरा: ड्रोन सटीक हमले और रियल-टाइम खुफिया जानकारी प्रदान करते हैं, जिससे भारतीय नौसेना को समुद्री युद्ध में बढ़त मिलती है.

पनडुब्बी रोधी युद्ध: ड्रोन पनडुब्बियों का पता लगाने और नष्ट करने में सहायक हैं, जो चीन और पाकिस्तान की नौसेनाओं के लिए खतरा है.

चुनौतियां

स्वदेशी ड्रोन की सीमित रेंज और पेलोड क्षमता. ड्रोन संचालन के लिए प्रशिक्षित कर्मियों की आवश्यकता. साइबर सुरक्षा: ड्रोन के संचार सिस्टम को हैकिंग से बचाने की चुनौती.

भविष्यः भारत 2030 तक 30 सी गार्डियन ड्रोन खरीदने और TAPAS-BH जैसे स्वदेशी ड्रोन्स को बड़े पैमाने पर तैनात करने की योजना बना रहा है. नौसैनिक जहाजों पर ड्रोन डेक और स्वायत्त संचालन प्रणालियां विकसित की जा रही हैं.

5. हल्के टैंक (जोरावर)

जोरावर लाइट टैंक भारत का स्वदेशी हल्का टैंक है, जिसे DRDO और लार्सन एंड टुब्रो (L&T) ने मिलकर विकसित किया है. यह टैंक विशेष रूप से पूर्वी लद्दाख जैसे उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनाती के लिए डिजाइन किया गया है, जहां पारंपरिक भारी टैंक (जैसे T-90) की गतिशीलता सीमित होती है.

विशेषताएं

  • वजन: 25 टन, जो इसे हल्का और हवाई परिवहन योग्य बनाता है.
  • गति : 50-60 किमी/घंटा की गति और ऊंचे पहाड़ी इलाकों में तेजी से संचालन की क्षमता.
  • हथियार: 105 मम की मुख्य तोप, रिमोट-नियंत्रित मशीन गन और एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (ATGM). 
  • सुरक्षा: एक्टिव प्रोटेक्शन सिस्टम (APS) जो आने वाली मिसाइलों और प्रोजेक्टाइल को नष्ट कर सकता है.
  • पर्यावरण अनुकूलन: पानी में संचालन की क्षमता (जैसे पैंगोंग त्सो झील) और -40°C तक के तापमान में कार्यक्षमता.

विकास की स्थिति

2020 के भारत-चीन गतिरोध के बाद, भारतीय सेना ने 350 हल्के टैंकों की आवश्यकता बताई थी. जोरावर का पहला प्रोटोटाइप 2023 में तैयार हुआ. दिसंबर 2024 में लद्दाख के न्योमा में इसका परीक्षण शुरू हुआ. परीक्षण में टैंक की गोलाबारी, गतिशीलता और सुरक्षा प्रणालियों की सफलता दर्ज की गई. 2025 के अंत तक परीक्षण पूरा होने और 2026 में सेना में शामिल होने की उम्मीद है. रक्षा अधिग्रहण परिषद ने 59 टैंकों के ऑर्डर को मंजूरी दी है.

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6. भारतीय मल्टी रोल हेलिकॉप्टर: भारत की स्वदेशी उड़ान शक्ति

भारतीय मल्टी रोल हेलिकॉप्टर (Indian Multi-Role Helicopter - IMRH) भारत के रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. इसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा विकसित किया जा रहा है. यह भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना की विविध जरूरतों को पूरा करने के लिए डिजाइन किया गया है.

IMRH का उद्देश्य विदेशी हेलिकॉप्टरों पर निर्भरता को कम करना और उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों, समुद्री मिशनों और युद्धक परिदृश्यों में प्रभावी संचालन सुनिश्चित करना है. यह हेलिकॉप्टर अपनी बहुमुखी प्रतिभा, उन्नत तकनीक और मजबूत डिजाइन के लिए जाना जाएगा.

वजन और क्षमता

टेकऑफ वजन: लगभग 13 टन (मध्यम श्रेणी का हेलिकॉप्टर).

पेलोड: 3.5-4 टन, जिसमें सैनिक, हथियार, या माल शामिल हो सकता है.

सैनिक परिवहन: 24-30 सैनिकों को ले जाने की क्षमता या 12 स्ट्रेचर के साथ मेडिकल निकासी.

इंजन और प्रदर्शन

इंजन: दो टर्बोशाफ्ट इंजन, संभावित रूप से AL-31F या शक्ति इंजन (AL-20R का उन्नत संस्करण), जो HAL के ध्रुव हेलिकॉप्टर में उपयोग होता है.

गति: अधिकतम 260-280 किमी/घंटा.

रेंज: लगभग 700-1,000 किलोमीटर, बाहरी ईंधन टैंकों के साथ और अधिक.

ऊंचाई: 6,500 मीटर तक संचालन की क्षमता, जो इसे लद्दाख जैसे उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त बनाता है.

हथियार और तकनीक

  • हथियार: 20 मिमी तोप, रॉकेट पॉड, एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (ATGM जैसे हेलिना/NAG) और हवा-से-हवा मिसाइल.
  • एवियोनिक्स: उन्नत ग्लास कॉकपिट, नाइट विजन सिस्टम और मल्टी-फंक्शन डिस्प्ले.
  • सेंसर: इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल/इन्फ्रारेड (EO/IR) सेंसर, रडार चेतावनी रिसीवर और मिसाइल चेतावनी प्रणाली.
  • स्वायत्तता: ड्रोन जैसे स्वायत्त संचालन की संभावना, जो भविष्य में इसे और घातक बनाएगी.
  • सैन्य: सैनिक परिवहन, सशस्त्र हमला, खोज और बचाव, मेडिकल निकासी और कमांड-कंट्रोल मिशन.
  • नौसैनिक: पनडुब्बी रोधी युद्ध (ASW), जहाज-रोधी युद्ध (ASuW) और समुद्री निगरानी.
  • वायुसेना: सामरिक हवाई समर्थन और विशेष अभियान.
  • गैर-सैन्य: आपदा राहत, वीआईपी परिवहन, और तट रक्षक मिशन.

डिजाइनः मजबूत और मॉड्यूलर डिजाइन, जो विभिन्न मिशनों के लिए त्वरित कॉन्फिगरेशन की अनुमति देता है. फोल्डेबल ब्लेड और टेल रोटर, जो इसे नौसैनिक जहाजों (जैसे INS विक्रांत) पर तैनाती के लिए उपयुक्त बनाता है.

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