मुहम्मद साहब की कब्र को मदीना से हटाकर उनके अवशेष को किसी अज्ञात जगह में ले जाने के प्रस्ताव से मुस्लिम जगत दो भागों में बंट गया है. इंग्लैंड के अखबार द इंडिपेंडेंट ने यह खबर दी है. अखबार ने लिखा है कि इस्लाम के पवित्रतम स्थलों में से एक है मदीना का अल-मस्जिद अल-नबावी और वहीं पर है पैगंबर मुहम्मद की कब्र. मस्जिद के हरे गुंबद के नीचे पैगंबर के अवशेष हैं. वहां हर साल लाखों तीर्थ यात्री जाते हैं और अपना सम्मान व्यक्त करते हैं. अब सऊदी अरब के एक नामी विद्वान ने प्रस्ताव किया है कि उस जगह से कि इस जगह को तोड़ दिया जाए और उनके अवशेष किसी अज्ञात जगह ले जाकर दफना दिए जाएं.
इस प्रस्ताव से वहां काफी विवाद खड़ा हो गया है. मुसलमानों का एक बड़ा तबका इस तरह के किसी भी प्रस्ताव का विरोध कर रहा है. उसका कहना है कि यह गलत होगा. सऊदी अरब के ही एक अन्य विद्वान ने इसका विरोध किया है. उसने मक्का के पवित्र जगहों को तोड़े जाने का विरोध किया था.
बताया जाता है कि उस विद्वान ने अपने 61 पेज के दस्तावेज में कहा है कि मुहम्मद साहब के कब्र के आस-पास के कक्ष को नष्ट कर दिया जाए. ये कक्ष शिया मुलसमानों के लिए बहुत पवित्र हैं और वे बड़ी तादाद में वहां जाते हैं. वहां पर मुहम्मद साहब की पत्नी और बेटियां रहती थीं. प्रस्ताव में कहा गया है कि मुहम्मद साहब के अवशेष पास के अल-बकी कब्रगाह में ले जाकर अज्ञात जगह पर दफना दिए जाएं ताकि किसी को पता नहीं चले.
लेकिन शिया धर्मावलंबी इस प्रस्ताव का जबर्दस्त विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि इस तरह के कदम से असंतोष फैलेगा और उसके गंभीर परिणाम होंगे. अल-मस्जिद अल-नबावी शिया और सुन्नी दोनों ही के लिए बहुत महत्व का तीर्थ स्थल है.
दरअसल सऊदी अरब के कट्टर इस्लाम में इस तरह के स्थल की अराधना साफ मना है. वे नहीं चाहते कि उस जगह जाकर कोई प्रार्थना करे. उनका कहना है कि इस्लाम में मूर्ति पूजा मना है और यह उसी का एक रूप है. इसलिए वे वहां से मुहम्मद साहब की कब्र हटा देना चाहते हैं.
सऊदी अरब के बादशाह अब्दुल्ला इस स्थल के कस्टोडियन हैं और आखिरी फैसला उन पर ही निर्भर करता है. उन्होंने बड़े जतन से मस्जिद के आस-पास के इलाके का विकास करवाया था. अल-मस्जिद अल-नबावी में मुहम्मद साहब और उनके परिवार के लोगों की जीवनी बड़े ही खूबसूरत ढंग से लिखी गई है. बताया जा रहा है कि उन सभी को नष्ट करने का प्रस्ताव है. इस दस्तावेज पर अब विचार होगा. इसे वहां की मस्जिदों की देखरेख करने वाली समितियों के पास भेज दिया गया है. वहां की एक पत्रिका में इन प्रस्तावों के बारे में काफी कुछ छपा है.