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क्या है वियना संधि का लंदन में हुई खालिस्तानी करतूत से कनेक्शन, जिसे लेकर भारत ब्रिटेन पर भड़का?

अमृतपाल सिंह पर पंजाब में चल रही कार्रवाई के बीच खालिस्तान सपोर्टरों ने नया हंगामा किया. उन्होंने लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग के सामने से तिरंगा उतारकर उसकी जगह अपना झंडा फहराने की कोशिश की. इसपर भड़कते हुए भारत ने ब्रिटिश सरकार से जवाब मांगा कि क्यों उसकी डिप्लोमेटिक प्रॉपर्टी के आगे कोई ब्रिटिश सुरक्षा नहीं थी. साथ ही इसे वियना संधि का उल्लंघन भी बताया.

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लंदन में भारतीय हाई कमीशन की इमारत
लंदन में भारतीय हाई कमीशन की इमारत

भारत में चल रहे खालिस्तानी आंदोलन के मुखिया अमृतपाल सिंह को पकड़ने के लिए पंजाब पुलिस की कार्रवाई तीन दिनों से जारी है. पुलिस ने अब तक उसके सौ से ज्यादा सहयोगियों को पकड़ लिया है. खालिस्तान समर्थकों के खिलाफ चल रही कार्रवाई बात हर तरफ हो रही है. इस बीच ब्रिटेन में नया ही मामला उठ गया. तथाकथित खालिस्तान सपोर्टरों ने लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग के सामने अमृतपाल के पक्ष में नारे लगाते हुए भारत का झंडा उतारकर अपना झंडा फहराना चाहा. कोशिश कामयाब नहीं हो सकी, लेकिन मामला गरमाया हुआ है.

भारतीय विदेश मंत्रालय ने ब्रिटिश सरकार से इसपर जवाब मांगते हुए वियना संधि का उल्लंघन बताया, जो डिप्लोमेटिक सुरक्षा देती है. 

मिलती है डिप्लोमेटिक इम्युनिटी
आमतौर पर अपने घर या अपनी प्रॉपर्टी की सुरक्षा की जिम्मेदारी हमें खुद लेनी होती है, लेकिन उच्चायोग के मामले में ऐसा नहीं है. वियना कन्वेंशन ऑन डिप्लोमेटिक रिलेशन्स के तहत कई ऐसे नियम हैं, जिसमें डिप्लोमेटिक इमारतों और लोगों को सुरक्षा दी जाती है. यहां तक कि दो देशों के बीच बेहद तनाव के हालात होने पर भी एक देश, दूसरे देश के उच्चायोग या वहां काम करने वालों की सुरक्षा का बंदोबस्त करता है. 

क्या है वियना संधि?
यूनाइटेड नेशन्स की कई संधियों के तहत वियना कन्वेंशन भी शामिल है. साल 1961 में हुई इस इंटरनेशनल संधि का मकसद था, दो देशों के बीच राजनयिक संबंध मजबूत करना. ऑस्ट्रिया के वियना में हुई संधि दो सालों बाद लागू हो सकी और तब इसमें 192 देश शामिल हुए. संधि का ड्राफ्ट इंटरनेशनल लॉ कमीशन ने तैयार किया था. इसके तहत राजदूतों को खास अधिकार मिले, जिसे डिप्लोमेटिक इम्युनिटी कहते हैं. 

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khalistani protesters tried harming indian flag in london amid action against amritpal singh
लंदन में खालिस्तान समर्थकों ने तिरंगा हटाकर अपना झंडा लगाने की नाकामयाब कोशिश की. (Getty Images)

क्या होता है इसके तहत?
दूसरे देश में रहते हुए उनकी यात्रा से लेकर सुरक्षा तक पर कोई खतरा नहीं होना चाहिए. वे कई चीजों की जद से बाहर रहते हैं. जैसे सड़क पर अगर किसी तरह की जांच की कोई कार्रवाई चल रही हो, तभी वहां से डिप्लोमेट की गाड़ी जाए तो उसे जांच से दायरे से बाहर रखा जाएगा. कस्टम जांच के दायरे से भी वे बाहर रहते हैं. 

क्यों मिलता है खास ट्रीटमेंट?
उच्चायुक्त असल में दो देशों के बीच पुल का काम करते हैं. ये दूसरे देश में अपने देश के प्रतिनिधि होते हैं, जो दो सरकारों के बीच बातचीत का जरिया बनते हैं. नेताओं की मीटिंग करवाने और किसी संधि के दौरान भी ये बड़ा रोल निभाते हैं. साथ ही ये उस देश में बसे अपने नागरिकों की भी मदद करते हैं. जैसे ब्रिटेन में रहते भारतीयों का अगर कोई मसला है तो वो पहले वहां के उच्चायोग जाएगा. वहां से उसे डायरेक्ट किया जाएगा. 

इमारत या दूसरे एसेट्स की सुरक्षा भी इस दायरे में
साल 1963 में यूनाइटेड नेशन्स ने वियना कन्वेंशन की तर्ज पर एक और संधि तैयार की. इसे वियना कन्वेंशन ऑन कांसुलर रिलेशंस कहा जाता है. कुल 179 देशों ने इसपर दस्तखत किए. इसी के तहत दूतावास की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी होस्ट देश की होती है. संधि के आर्टिकल 31 के तहत ब्रिटेन में अगर भारतीय उच्चायोग है, तो उसकी सिक्योरिटी का पूरा जिम्मा ब्रिटिश सरकार का होगा. यही बात भारत स्थित ब्रिटिश दूतावास के लिए लागू होती है. इसी संधि की बात करते हुए भारत ने कहा कि उनकी प्रॉपर्टी को पूरी सुरक्षा क्यों नहीं मिल सकी. 

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khalistani protesters tried harming indian flag in london amid action against amritpal singh
देश अपने विरोधी देश के उच्चायोग को भी सुरक्षा देता है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

कब होता है खतरा?
कई बार ये इम्युनिटी खत्म भी हो जाती है. जैसे अगर हाई कमीशन में रह रहे लोग जासूसी के आरोप में पकड़े गए तो जिस देश में वे रह रहे हैं, वो उनपर मुकदमा भी कर सकता है. या फिर उच्चायोग भी बंद हो सकता है. कोरोना के दौरान चीन और अमेरिका के बीच भारी तनाव के बीच अमेरिका ने चीन के अधिकारियों पर जासूसी का आरोप लगाते हुए एक राज्य में उसका कमीशन बंद करवा दिया था. बदले में कार्रवाई करते हुए चीन ने भी अपने एक स्टेट में अमेरिकी उच्चायोग की प्रॉपर्टी पर ताला लगवा दिया था. 

देश छोड़ने का भी नोटिस मिल सकता है?
कन्वेंशन के आर्टिकल 9 में भी ऐसी एक स्थिति का जिक्र है. इसमें अगर मेजबान देश किसी डिप्लोमेटिक स्टाफ से नाराज है तो वो उसे अपने देश से जाने को कह सकता है. वो शख्स तक पर्सोना नॉन ग्रेटा कहलाता है और अगर एक तय समय के भीतर वो होस्ट देश से न गया तो उसकी डिप्लोमेटिक इम्यूनिटी खत्म हो जाती है और उसपर आम इंसान की तरह ही कार्रवाई भी हो सकती है. 

khalistani protesters tried harming indian flag in london amid action against amritpal singh
भारतीय उच्चायोग पर पहले से भी बड़ा तिरंगा लहरा रहा है. (Twitter)

भारतीय उच्चायोग के मामले में क्या हो रहा है?
मामले पर भारत के कड़े तेवरों के बाद एक के बाद एक ब्रिटिश अधिकारियों के बयान आने लगे. सबने खालिस्तान समर्थकों की इस कार्रवाई को गलत बताते हुए कहा कि आगे से सुरक्षा में कोई कोताही नहीं बरती जाएगी. बता दें कि वियना संधि के तहत उच्चायोग की प्रॉपर्टी पर एक निश्चित संख्या में पहरा होना चाहिए. ये सीसीटीवी से अलग है.

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खास मामलों में सुरक्षा बढ़ाई भी जाती है. जैसे किसी देश में राजनैतिक भूचाल आया हुआ हो, तो मेजबान देश अपने यहां उसकी प्रॉपर्टी की चौकसी बढ़ा देते हैं. हालांकि लंदन में इंडियन हाई कमीशन के आसपास ब्रिटिश सरकार ने किसी तरह की सुरक्षा नहीं दी थी. कम से कम भारत के रवैये से तो यही पता लगा. 

'हम देते रहे भारी सुरक्षा'
ये बात भी उठ रही है कि क्या खास देशों को मिल रहे खास ट्रीटमेंट के बीच भारत को और सख्त होने की जरूरत है. असल में अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, चीन, फ्रांस और जापान के उच्चायोग के अधिकारियों को हमारे यहां बड़ा दर्जा मिलता है, उन्हें हर यूनियन मिनिस्टर रेड कारपेट ट्रीटमेंट देता है. यहां तक कि भारतीय मीडिया तक उनकी सीधी पहुंच हो सकती है, अगर वे चाहें तो. लेकिन लंदन स्थित भारत के उच्चायोग के बाहर ब्रिटिश पहरा एकदम नदारद था. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या भारत को भी उन देशों से पहरा हटा लेना चाहिए, जिनपर वाकई में कोई खतरा नहीं. 

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