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ट्रंप और जिनपिंग मुलाकात में किसने मारी बाजी... मुलाकात को 10 में से 12 नंबर क्यों दे रहे अमेरिकी राष्ट्रपति?

चीन ने कहा है कि वो अमेरिका से सोयाबीन की खरीद को फिर से बहाल करने के लिए तैयार है और दूसरा वो अमेरिका को Rare Earth Minerals का निर्यात करना भी जारी रखेगा. हालांकि ये निर्यात अगले एक साल के लिए ही बढ़ाया गया है. इसके अलावा दोनों देशों के बीच एक और मुद्दे को लेकर सहमति बनी है और वो मुद्दा है फेंटानिल ड्रग का.

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साउथ कोरिया में ट्रंप और शी जिनपिंग की मुलाकात पर थी सबकी नजरें (Photo:AP)
साउथ कोरिया में ट्रंप और शी जिनपिंग की मुलाकात पर थी सबकी नजरें (Photo:AP)

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच गुरुवार को बहुतप्रतीक्षित बैठक हुई. दोनों नेताओं की यह मुलाकात साउथ कोरिया के बुसान में हुई. दोनों नेताओं ने एक-दूसरे को खास बताते हुए अच्छा दोस्त कहा. लेकिन ट्रंप और जिनपिंग की इस मुलाकात में किसने बाजी मारी? 

कोरिया के बुसान शहर में शी जिनपिंग के साथ हुई मुलाकात को ट्रंप ने 10 में से 12 नंबर दिए हैं. राष्ट्रपति ट्रंप का कहना है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ इससे शानदार मुलाकात हो ही नहीं सकती थी और वो उनसे अपने मुद्दों पर चर्चा करके खुश हैं. लेकिन हकीकत ये है कि जब आप इस मुलाकात की तस्वीरों और इसमें चर्चा के दौरान तय हुई बातों का विश्लेषण करेंगे तो आपको पता चलेगा कि चीन इस मुलाकात में पूरी तरह से अमेरिका पर हावी रहा है.

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इस मुलाकात के बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन पर लगाए गए रेसिप्रोकल टैरिफ को 10 फीसदी कम कर दिया है. अब अमेरिका के बाजार में चीन के सामान पर 57 फीसदी की जगह 47 फीसदी टैरिफ लगेगा. बदले में चीन ने दो मुद्दों पर सहमति जताई है.

अमेरिका का आरोप था कि चीन से इस ड्रग की अवैध तस्करी हो रही है और इसकी वजह से अमेरिका ने चीन पर fentanyl को लेकर 20 फीसदी टैरिफ लगा दिया था. लेकिन आज अमेरिका यहां भी झुक गया और उसने इस टैरिफ को भी 20 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी कर दिया.

लेकिन बड़ी बात ये है कि राष्ट्रपति ट्रंप इस मुलाकात को 10 में से 12 नंबर दे रहे हैं. लेकिन सच ये है कि इस बैठक में ट्रेड डील को लेकर कोई ऐलान नहीं हुआ. ट्रेड डील तो छोड़िए राष्ट्रपति ट्रंप राष्ट्रपति शी जिनपिंग से इतना तक नहीं कह पाए कि चीन, रूस से सबसे ज्यादा कच्चा तेल खरीद कर यूक्रेन युद्ध में उसकी मदद कर रहा है. ये एक बहुत बड़ी बात है, जिससे ये भी सवाल उठता है कि क्या राष्ट्रपति ट्रंप को डर था कि अगर उन्होंने कच्चे तेल की बात की तो चीन नाराज हो जाएगा.

अगर वाकई में उन्हें ऐसा डर था तो सवाल ये भी है कि फिर राष्ट्रपति ट्रंप इस मुलाकात को 10 में से 12 नंबर कैसे दे रहे हैं. क्या ये मजाक नहीं है कि राष्ट्रपति ट्रंप रूस  से कच्चा तेल खरीदने के लिए भारत की आलोचना करते हैं और ये कहते हैं कि भारत ऐसा करके यूक्रेन युद्ध में रूस की मदद कर रहा है और इसके लिए वो हम पर 50 फीसदी टैरिफ लगा देते हैं. लेकिन जो चीन पूरी दुनिया में रूस से सबसे ज्यादा कच्चा तेल खरीदता है, उस चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ वो मुलाकात में कच्चे तेल का जिक्र तक नहीं करते.

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राष्ट्रपति ट्रंप के लिए ये मुलाकात इसलिए अलग थी क्योंकि इसमें ना तो चीन ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से ज्यादा तवज्जों दी और ना ही शी जिनपिंग ने उनकी बढ़-चढ़कर तारीफ की जबकि ऐसी मुलाकातों में राष्ट्रपति ट्रंप को अच्छा लगता है कि उनकी शान में तारीफों के पुल बांधे जाए.

लेकिन आज ऐसा कुछ नहीं हुआ. ये मुलाकात एक घंटे 40 मिनट तक चली और इसमें राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तरफ से जितने भी बयान आए, उनमें एक संतुलन और सधी हुई प्रतिक्रिया दिखी जबकि दूसरी तरफ राष्ट्रपति ट्रंप के सभी बयानों से ऐसा लग रहा था कि उन पर इस मुलाकात को शानदार और सफल साबित करने का एक दबाव है और इसी वजह से शायद उन्होंने इस मुलाकात को खुद ही 10 में से 12 नंबर दे दिए.

लेकिन चीन ने ऐसी किसी कोई जल्दबाजी नहीं की. जब मुलाकात शुरू हुई, तब राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ये बता दिया कि अब चीन किसी भी मामले में अमेरिका से कमतर नहीं है. उन्होंने ना सिर्फ चीन की अर्थव्यवस्था के आंकड़े गिनाए बल्कि ये भी कहा कि अमेरिका और चीन के बीच हर मुद्दे पर एक राय होना जरूरी नहीं है.

राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ये भी कहा कि अमेरिका और चीन के बीच जो मतभेद हैं, उनका मतलब सिर्फ दुश्मनी नहीं हो सकता लेकिन दूसरी तरफ राष्ट्रपति ट्रंप ने जिनपिंग की एक बार नहीं बल्कि कई बार तारीफ की और ऐसा लग रहा था कि राष्ट्रपति ट्रंप चीन के राष्ट्रपति को मना रहे हैं और उनकी पलड़ा कमजोर दिख रहा था.

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राष्ट्रपति ट्रंप ने ये भी कहा कि चीन, यूक्रेन युद्ध का समाधान ढूंढने में अमेरिका की मदद कर सकता है. और ये आज आपको सबको याद रखनी है. राष्ट्रपति ट्रंप चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से ये कह रहे हैं कि वो यूक्रेन युद्ध में मध्यस्थता के लिए आगे आएं जबकि यही चीन रूस से सबसे ज्यादा कच्चे तेल का आयात कर रहा है.

इस वक्त अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जो 2 हजार 690 लाख करोड़ रुपये की है जबकि चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जो एक हजार 695 लाख करोड़ रुपये की है यानी अभी चीन अमेरिका की अर्थव्यव्था से 1 हजार लाख करोड़ रुपये पीछे है. लेकिन S&P Global का अनुमान है कि अगर चीन की अर्थव्यवस्था मौजूदा दर से ही आगे बढ़ती रही तो साल 2038 तक चीन अमेरिका को पीछे छोड़कर दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा और अगर उसकी विकास दर में कमी भी आई तो तब भी साल 2046 तक चीन की अर्थव्यवस्था अमेरिका से आगे निकल जाएगी.

चीन ने सबसे बड़ी रणनीति ये अपनाई है कि वो अब दुनिया के अलग अलग देशों को युआन अपनाने के लिए कह रहा है. उसने दुनिया के जितने भी देशों को कर्ज दिया है, उन सबसे चीन ने ये कहा है कि वो अपने कर्ज का भुगतान डॉलर की जगह युआन में कर सकते हैं और ऐसा करने से उन्हें अच्छा खासा डिस्काउंट भी मिल सकता है.

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