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'बांग्लादेश में हमारी कोई सुनवाई नहीं', डर के साये में जी रहे ढाका के हिंदुओं का दर्द

बांग्लादेश के हिंदू डर के साये में जी रहे हैं. वह दिन के उजाले में अपनी बात तक खुलकर नहीं रख सकते. उनका दर्द जानने के लिए आजतक की टीम आधी रात को ढाका के एक अल्पसंख्यक इलाके में पहुंची.

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बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ीं (Photo: ITG)
बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ीं (Photo: ITG)

बांग्लादेश में उस्मान हादी की हत्या के बाद हिंदू समुदाय के लोगों पर हमले की घटनाएं बढ़ गई हैं. हिंदुओं पर हमले की घटनाएं लगातार हो रही हैं. कथित ईश निंदा के आरोप में दीपू दास नामक युवक की लिंचिंग के बाद बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों में अब डर का माहौल है. बांग्लादेश की राजधानी ढाका के साथ ही आसपास के इलाकों में रहने वाले हिंदू भय के साये में जी रहे हैं.

राजधानी ढाका के कई इलाकों में रविदास समाज के हिंदू रहते हैं, जो भय के साये में जी रहे हैं. ये लोग दिन के उजाले में कुछ भी बोलने से डर रहे. दिन में ये लोग खुलकर अपनी बात नहीं कह सकते और ना ही मीडिया तक पहुंचने का कोई साधन ही इनके पास है. ऐसे में आजतक की टीम ढाका के एक ऐसे ही इलाके में आधी रात को पहुंची, जहां अल्पसंख्यक हिंदू रहते हैं.

असंख्यक हिंदू आजतक की टीम को छिपते-छिपाते अपने इलाके में ले गए. अंधेरी तंग गलियों में हिंदू समाज के लोगों ने अपना दर्द, अपनी व्यथा आजतक के जरिये सामने रखी. सुरक्षा के लिहाज से इन अल्पसंख्यकों की पहचान गुप्त रखी गई है. पहचान उजागर होने पर इनकी जान को खतरा हो सकता है. अल्पसंख्यक हिंदुओं ने आजतक से अपना दर्द साझा करते हुए कहा कि हिंदू लोगों की यहां अब कोई सुनवाई नहीं है.

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ढाका के हिंदुओं का कहना है कि जब भी कोई सरकार बदलती है, तो उसका खामियाजा अल्पसंख्यक हिंदुओं को भुगतना पड़ता है. हिंदुओं की प्रताड़ना, हिंदुओं के साथ हिंसा शुरू हो जाती है. हिंदुओं ने अल्पसंख्यक समाज की महिलाओं की स्थिति को लेकर भी बात की और कहा कि सुदूर इलाकों में बहन-बेटियों को लेकर भी हमेशा फिक्र रहती है.

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बांग्लादेशी हिंदुओं का कहना है कि हिंदी बोलने वाला कोई व्यक्ति अगर कहीं बाहर जाता है, तो उसे भारत यात्रा का एजेंट समझा जाता है. बांग्लादेश में हिंदुओं की हालत अब बहुत खराब है. अल्पसंख्यकों का कहना है कि शेख हसीना की अगुवाई वाली सरकार जब बांग्लादेश में थी, तब हिंदुओं की भी सुनी जाती थी. लेकिन अब ऐसा नहीं है. अधिकतर हिंदुओं ने यह डर जाहिर किया कि जो दीपू दास के साथ हुआ, वह कहीं हमारे साथ भी न हो.

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