लखनऊ के मड़ियांव थाने से 19 साल पुराने एक सनसनीखेज मामले की केस डायरी गायब हो जाने से पुलिस महकमे में हड़कंप मचा हुआ है. यह मामला वर्ष 2006 में दर्ज डकैती और हत्या के प्रयास की एफआईआर से जुड़ा है, जिसमें तत्कालीन पुलिस अधिकारियों और कर्मियों पर गंभीर धाराओं में मुकदमा कायम किया गया था. अब केस डायरी न मिलने पर तत्कालीन थाने में तैनात दो पुलिसकर्मियों पर केस दर्ज कराया गया है, जिनमें से एक की मौत हो चुकी है जबकि दूसरा रिटायर हो चुका है.
दरअसल, 16 जून 2006 को बिट्टा देवी नाम की महिला ने तत्कालीन सीओ अलीगंज हबीबुल हसन, इंस्पेक्टर एसपी सिंह, एसआई डीएन सिंह, ब्रजभूषण दूबे, सुरेश कुमार सिंह, थाने के ड्राइवर और दो दीवान के खिलाफ मड़ियांव थाने में डकैती, हत्या का प्रयास और एससी-एसटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज करवाई थी. लंबी जांच के बाद 30 जून 2015 को पुलिस ने इस केस में फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी.
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फाइनल रिपोर्ट और केस डायरी को कोर्ट में दाखिल करने के लिए 12 जुलाई 2018 को सीओ अलीगंज ऑफिस से डाक रनर हेड कांस्टेबल सूर्यभान सिंह को सौंपा गया. उन्होंने जीडी में इसका जिक्र भी किया और आगे हेड कांस्टेबल राजेंद्र सिंह को दस्तावेज उपलब्ध कराए. राजेंद्र सिंह का कहना है कि उन्होंने यह फाइनल रिपोर्ट और केस डायरी थाने के तत्कालीन कांस्टेबल प्रदीप मिश्रा को कोर्ट में दाखिल करने के लिए सौंपी थी. लेकिन चौंकाने वाली बात यह रही कि इस सुपुर्दगी का जिक्र थाने की जीडी में दर्ज ही नहीं किया गया. जांच में सामने आया कि प्रदीप मिश्रा ने फाइनल रिपोर्ट और केस डायरी कोर्ट में दाखिल ही नहीं की.
पेंशन के लिए भटक रहे अफसर
मामले ने नया मोड़ तब लिया जब साल 2023 में ईओडब्ल्यू से रिटायर हुए तत्कालीन सीओ हबीबुल हसन की पेंशन अटक गई. सर्विस रिकॉर्ड चेक करने पर सामने आया कि उनके खिलाफ मड़ियांव थाने में अब भी एक एफआईआर लंबित है. उन्होंने जब केस का स्टेटस खंगालना शुरू किया तो पता चला कि फाइनल रिपोर्ट लग चुकी है लेकिन उसका रिकॉर्ड कोर्ट में उपलब्ध ही नहीं है. हसन ने कई बार पुलिस और कोर्ट से फाइनल रिपोर्ट से जुड़ी केस डायरी की जानकारी मांगी लेकिन दस्तावेज नहीं मिले. ढाई साल तक भटकने के बाद आखिरकार उनकी शिकायत पर पुलिस को एफआईआर दर्ज करनी पड़ी.
डीसीपी गोपाल कृष्ण चौधरी ने मामले को गंभीर बताते हुए कहा कि जांच में तथ्य सामने आने के बाद जिम्मेदारों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी.