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'1978 के दंगे में कोई जांच नहीं हो रही...', संभल के SP केके बिश्नोई ने दिया ये बयान

Sambhal Riot: 1978 में संभल की जामा मस्जिद के मौलवी की हत्या के बाद भड़के दंगे में 184 लोग मारे गए थे. करीब 2 महीने तक जिले में कर्फ्यू लगा रहा था. इस दंगे के पीड़ितों ने हाल ही में अपनी आपबीती सुनाई थी.

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संभल हिंसा में कई लोगों की मौत हो गई थी (फाइल फोटो)
संभल हिंसा में कई लोगों की मौत हो गई थी (फाइल फोटो)

उत्तर प्रदेश के संभल में 1978 में हुए सांप्रदायिक दंगे की फाइल रिओपन करने की खबर सामने आने के बाद SP केके बिश्नोई ने बयान जारी किया है. SP ने बताया कि संभल में 1978 में जो दंगे हुए थे उसमें कोई जांच नहीं हो रही है. ये भ्रामक है कि हम 1978 दंगों में कोई जांच कर रहे हैं. बकौल SP- बीजेपी के एक एमएलसी ने 1978 दंगों के बारे में रिपोर्ट मांगी थी, हम वो सूचना एक हफ्ते के अंदर दे देंगे.

दरअसल, बीते दिनों मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में संभल के 1978 के दंगे का जिक्र किया था. इसी के बाद से कयास लगाए जा रहे थे कि इस दंगे की जांच फिर से शुरू हो सकती है. हालांकि, अब इस बारे में एसपी ने एक बयान जारी कर जांच की बात से इनकार किया है. 

आपको बता दें कि 1978 में संभल की शाही जामा मस्जिद के मौलवी की हत्या के बाद भड़के दंगे में 184 लोग मारे गए थे. करीब 2 महीने तक संभल में कर्फ्यू लगा रहा था. हाल ही में जब संभल में 46 साल बाद कार्तिकेय महादेव मंदिर का ताला खुला तो कई दंगा पीड़ित लोग वहां दर्शन करने पहुंचे थे. इस दौरान पीड़ितों ने 'आज तक' के सामने आपबीती सुनाई थी. 

सीएम योगी ने किया था जिक्र

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में संभल के 1978 के दंगे का जिक्र करते हुए पूछा था कि आखिर दंगा पीड़ितों को तत्कालीन सरकार में न्याय क्यों नहीं मिला. जिसके बाद विधान परिषद के सदस्य श्रीचंद शर्मा के द्वारा 1978 के दंगे पर रिपोर्ट मांगी गई थी. बताया जा रहा है कि इस मामले से संबंधित कुछ दस्तावेज उच्चाधिकारियों के द्वारा संभल के अफसरों से मंगाए गए हैं. 

ये भी पढ़ें- 'दंगाई गेट तोड़कर घुसे, मेरे पिता को मार डाला...', संभल पहुंचे पीड़ित ने सुनाई 46 साल पुरानी आपबीती

बताया जाता है कि संभल में 1978 में हुए सांप्रदायिक दंगे में बड़ी तादात में लोगों के मारे जाने के बाद केस का ट्रायल कोर्ट में चला था. जिसमें लगभग 80 से ज्यादा आरोपी थे, लेकिन एडीजे सेकेंड की कोर्ट से बरी कर दिए गए थे. जिसके बाद तत्कालीन सरकार की तरफ से पैरवी नहीं किए जाने के कारण 1978 के दंगे की फाइल बंद हो गई थी.

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