सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन क्या शुरू किया, गांधी टोपी का जमाना लौट आया. अब न सिर्फ राजनीतिक पार्टियां गांधी टोपी को बढ़ावा दे रही हैं, बल्कि अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे जनसंगठन भी टोपी पहनना नहीं भूल रहे हैं.
फर्क सिर्फ इतना है कि पहले गांधी टोपी सादी-सफेद होती थी, अब स्लोगन लिखी और रंगीन भी होती है. आजादी की लड़ाई के दौरान महात्मा गांधी ने जब सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया, तब शांति के प्रतीक सफेद रंग के लिबास को अपनाया गया. तभी से आंदोलन से जुड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने सिर पर सफेद टोपी पहनने की भी शुरुआत की. बाद में यही नेताओं की पोशाक हो गई. टोपी का नाम 'गांधी टोपी' पड़ गया.
स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े लोग आज भी गांधी टोपी पहनना नहीं भूलते. धीरे-धीरे आधुनिकता के दौर व फैशन की वजह से नेताओं ने टोपी पहनना बंद कर दिया. उसकी जगह गमछे ने ले ली. राजनीतिक दलों के नेताओं व कार्यकर्ताओं में अपनी-अपनी पार्टी के रंग के अनुरूप कंधे पर गमछा रखने का प्रचलन शुरू हुआ.
पार्टी कार्यक्रमों में गमछे के साथ हैट जैसी टोपी भी लगाने की परंपरा शुरू हो गई. टोपी व झंडा बैनर की दुकानों पर भी हैट व गमछे की डिमांड बढ़ गई. लेकिन अप्रैल 2011 में शुरू हुए अन्ना आंदोलन के बाद एक बार फिर 'गांधी टोपी' की मांग बढ़ गई. फर्क इतना रहा कि सादी टोपी की जगह उसके दोनों ओर 'मैं हूं अन्ना' या 'मुझे चाहिए जन लोकपाल' लिखी टोपी बाजार में उतर आई.
इसे लोगों ने 'अन्ना टोपी' भी कहना शुरू किया. उस समय अन्ना हजारे के आंदोलन को पूरे देश में जमकर समर्थन मिला. सड़क पर निकल रहे लोगों के सिर पर टोपी जरूर होती थी.
'अन्ना टोपी' का असर इतना बढ़ा कि मौजूदा समय में लगभग सभी पार्टियां टोपी का इस्तेमाल करने लगीं. चाहे बीजेपी हो, कांग्रेस हो या अन्य पार्टियां. पार्टी कार्यक्रमों में कार्यकर्ताओं के सिर पर हैट जैसी टोपी की जगह फिर गांधी स्टाइल की टोपी नजर आने लगी. बीजेपी वाले केसरिया, तो कांग्रेसी केसरिया, हरा व सफेद धारी वाली टोपी लगाए नजर आ रहे हैं.
बसपा के कार्यकर्ता भी उसी स्टाइल की टोपी नीले रंग में पहने नजर आने लगे. टोपियों पर तरह के वाक्य भी लिखे रहते हैं. राजनीतिक पार्टियों के साथ आंदोलन कर रहे विभिन्न संगठन भी टोपी पहनकर अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं. आंदोलन के लिए वह टोपी का पहले से आर्डर दे रहे हैं.
इस बारे में राजनीतिक पार्टियों के झंडा, बैनर व टोपी के थोक विक्रेता शीला इंटर प्राइजेज के राजेश अग्रवाल का कहना है, 'अन्ना आंदोलन के साथ ही टोपी की मांग काफी बढ़ी है. पहले गांधी टोपी की साल में हजार-पांच सौ के आसपास बिक्री होती थी. 15 अगस्त व 26 जनवरी और गांधी जयंती पर ही विशेष मांग होती थी, लेकिन अब इतनी मांग बढ़ गई है कि आपूर्ति करना मुश्किल हो रहा है.'
राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ अन्य संगठन भी टोपी का ऑर्डर बुक करा रहे हैं. हर माह औसतन पांच से सात हजार गांधी टोपी की मांग आ रही है. अभी तो आम चुनाव आना बाकी है, आगे-आगे देखिए होता है क्या...