ऐसा लगता है कि पराजय के भय से आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ कांग्रेस पार्टी पिछले कई महीनों से स्थानीय निकाय और पंचायती राज संस्थाओं का चुनाव टाल रही है.
आंध्रप्रदेश में स्थानीय निकायों का कार्यकाल सितंबर 2010 में और पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल अगस्त 2011 में समाप्त हो गया.
इसके बाद से ही इन संस्थाओं को प्रत्येक छह महीने में विस्तार दिया जा रहा है और विशेष अधिकारी के माध्यम से इनका संचालन किया जा रहा है जो संविधान के 73 और 74 संशोधन के प्रावधानों का उल्लंघन है.
राज्य में पिछले आठ वर्ष से सत्तारूढ कांग्रेस की सरकार को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है और पिछले महीने हुए उपचुनाव में दो सीटों के अलावा पिछले दो वर्षों में पार्टी को कोई कामयाबी नहीं मिली.
तेलंगाना क्षेत्र में सत्तारूढ पार्टी की स्थिति काफी खराब है क्योंकि पृथक राज्य के बारे में वह अभी तक किसी निर्णय तक नहीं पहुंच सकी है.
तेलंगाना मुद्दे के कारण ही सितंबर 2010 में स्थानीय निकायों का कार्यकाल समाप्त होने के तत्काल बाद इसे विशेष अधिकारी के तहत लाया गया. यही स्थिति पंचायती राज संस्थाओं की है. इतिहास इस बात का साक्षी है कि कांग्रेस राज्य में स्थानीय निकाय के चुनाव में कभी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी.