scorecardresearch
 

यहां 'राखी' है हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक

वैसे तो रक्षाबंधन 'भाई-बहन' के पवित्र प्रेम का त्योहार माना जा रहा है, लेकिन बुंदेलखंड में यह 'हिंदू-मुस्लिम' एकता का प्रतीक भी है.

Advertisement
X
रक्षाबंधन
रक्षाबंधन

वैसे तो रक्षाबंधन 'भाई-बहन' के पवित्र प्रेम का त्योहार माना जा रहा है, लेकिन बुंदेलखंड में यह 'हिंदू-मुस्लिम' एकता का प्रतीक भी है. यहां मुस्लिम महिलाएं सिर्फ राखी का निर्माण ही नहीं करतीं, बल्कि उसे हिंदू भाइयों की कलाई पर बांध कर अपनी रक्षा का वचन भी लेती हैं.

एक ऐसी ही मुस्लिम महिला है जमीला खातून जो पिछले दो दशक से राखी बनाने के अलावा अपने मुंहबोले हिंदू भाई की कलाई में 'राखी' बांधती आ रही है.

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में कभी हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच सांप्रदायिक विवाद नहीं हुआ, यहां तक कि बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराए जाने पर जब पूरा देश जल रहा था, तब भी बांदा की धरती पर हिंदू समुदाय के लोग मुस्लिम वर्ग के गले मिल रहे थे.

इतना ही नहीं, एक-दूसरे के हर त्योहार दोनों समुदायों के लोगों के बीच मिलजुल कर मनाने की परंपरा जैसी है. ईद में हिंदू सेवइयों का स्वाद लेते हैं तो दशहरा में मुस्लिम 'पान' खाकर सामाजिक सौहार्द कायम करते हैं.

अब भाई-बहनों के पवित्र रिश्ते के त्योहार रक्षाबंधन को ही ले लीजिए, बांदा शहर में रहुनिया और खुटला मुहल्ले के तीन दर्जन मुस्लिम परिवार राखी बनाने के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. इनमें से एक जमीला खातून का परिवार दो दशक से सिर्फ राखी ही नहीं बनाता, बल्कि जमीला खुद अपने एक मुंहबोले हिंदू भाई की कलाई में हर साल पहली राखी बांधती है.

Advertisement

जमीला कहती है, 'हिंदू-मुस्लिम दोनों सगे भाई की तरह हैं, कोई भी मजहब आपस में बैर करना नहीं सिखाता है. यहां हिंदू समुदाय के लोग मुस्लिम त्योहार मनाते हैं और मुस्लिम वर्ग हिंदुओं के त्योहार में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता है.'

वह बताती है कि उसका पूरा परिवार दो दशक से राखी बनाने का व्यवसाय कर रहा है और वह खुद कई साल से अपने एक हिंदू भाई की कलाई में राखी बांधकर रक्षा का वचन लेती है.

वह कहती है, 'जब तक मेरी राखी उसकी कलाई में नहीं बंध जाती, तब तक 'मेरा भाई' अपनी सगी बहनों से राखी नहीं बंधवाता.'

खुटला के रहने वाले अब्दुल का कहना है, 'हम उनके हैं और वे हमारे हैं, हम अपने त्योहार में उनका 'खैर मकदम' करते हैं तो वह दीवाली-दशहरा में हमारा स्वागत करते हैं.'

नब्बे के दशक में मुलायम सिंह यादव सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके बांदा के बुजुर्ग समाजवादी चिंतक जमुना प्रसाद बोस का कहना है, 'देश के किसी भी हिस्से में दो समुदायों के बीच कितना भी दंगा-फसाद हो, पर उसका असर यहां कभी नहीं हुआ. हमेशा हिंदू-मुस्लिम वर्ग मिल-जुल कर हर तिथि-त्योहार मनाता आया है.'

बोस बताते हैं कि यहां के मुस्लिम सिर्फ राखी का ही निर्माण नहीं करते, बल्कि दशहरे में जलाए जाने वाला 'रावण' हमेशा एक बुजुर्ग मुस्लिम बनाता है और उसमें आग भी वही लगाता है. यानी हिंदू-मुस्लिम के बीच सामाजिक सौहार्द यहां आज भी कायम है.

Advertisement
Advertisement